गये थे आज मंडी में
लेने को कुछ फूल।
वहां जाकर देखा तो
एकदम दंग रह गए।
की जो फूल लेने को
हम यहाँ आये है।
वो फूल पहले से ही
पैरों में पड़े हुए है।
अब मैं कैसे उन्हें लू
प्रभु चरणों के लिये।।
लगता है हमें आजकल
किसी की भी कीमत नहीं।
हर चीज को लोगों ने
व्यापार जो बना लिया।
तभी फूल जैसा नाजुक
पड़ा है लोगों के पैरों में।
जब प्रभुको भी नहीं बख्शा,
तो हमसब की औकात हैं क्या।।
इसलिए इस कलयुग में
नहीं दिखते है प्रभु।
क्योंकि मंदिरों को भी
लोगों ने व्यापार बन लिया।
अब रहेगी कैसे आस्था
प्रभु में लोगों की।
क्योंकि पूजा की सूचीयाँ
लगा दी है जो मंदिरों में।।
गए थे फूल लेने को,
पर खाली हाथ आ गये।
नहीं चढ़ाना अब प्रभुको,
फूल पैसे आदि।
जो करते थे खर्च हम,
इन सब चीजों में।
अब उन पैसों से,
हम बच्चों को पढ़ायेंगे।
और उन्हें नेक इंसान
इस कलयुग में बनायेगें।।
संजय जैन, मुंबई