छत पर मेरे, बैठी चिड़िया
माँगे मुझसे पानी रे।1।
बून्द बून्द को तरसे आँगन
झुलसे बाग बागानी रे।
ताल तलया सूखे सब
रीता आँख का पानी रे।
बादल रूठे,रूंख पियासे
रूठी बरखा रानी रे।
काले मेघा भूल गए मग
बिसरा चुल्लू पानी रे।
छत पर मेरे ,बैठी चिड़िया
माँगे मुझसे पानी रे।2।
बिन पानी ये जीवन सूना
कीमत क्यों न जानी रे?
बून्द बून्द से भरता सागर
सजती वसुधा धानी रे।
कोमल चंचल मुखड़े खिलते
सजे नयन जब पानी रे।
पानी तेरी ये ही कहानी
कहती दादी नानी रे।
छत पर मेरे, बैठी चिड़िया
माँगे मुझसे पानी रे।3।
स्वच्छ जल से ही कल है
जल व्यर्थ न बहाओ तुम।
एक परिंडा घर की छत पर
नित जल से भर आओ तुम।
पंछी ,पौधे और मवेशी
दुनिया ये सब ही की भाई।
जल,वायु औ गगन धरा को
बचाओ ,करो नही नादानी रे।
छत पर मेरे ,बैठी चिड़िया
माँगे मुझसे पानी रे।4।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।