तीसरा कोई नहीं है एक तू है और मैं हूँ,
हे प्रिये, मैं प्रीति की पावन कहानी लिख चुका हूँ।
अब कहाँ जाऊँ अधूरी दासताँ को साथ लेकर,
ज़ान मेरी नाम तेरे ज़िंदगानी लिख चुका हूँ।।
आरजू है तू ही मेरी, तू ही तो लख़्ते जिगर है,
आज फिर क्यूँ आँसूओं की आग से तू बेखबर है।
मैं तुझे अपनी खुशी की राजधानी लिख चुका हूँ..,
ज़ान मेरी नाम तेरे ज़िंदगानी लिख चुका हूँ।।
है छुअन माथे अधर की,चुम्बनी टीका लगा है,
प्रेम के आगे मुझे हर रंग अब फीका लगा है।
पा तुम्हारा साथ खुद को और मानी लिख चुका हूँ,
ज़ान मेरी नाम तेरे ज़िंदगानी लिख चुका हूँ।।
#इन्द्रपाल सिंह
परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।
शुक्रिया सर
बहुत ख़ूब इंद्र
शानदार गीत हुआ
Very good.