किस के लिए संवर रहीं हो तुम

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किस के लिए संवर रहीं हो तुम,
अपने आप में निखर रही हो तुम।

तेरा भंवरा तो आ चुका है तेरे ही पास,
फिर फूल बनकर क्यों बिखर रही हो तुम।

दिल से कहो धड़कना बन्द कर दे,
फिर इतना क्यों डर रही हो तुम।

राहों में जब खुद खड़ा है तेरे पास,
फिर भी राहों से गुजर रही हो तुम।

खो ना दू कहीं पाकर मै तुझको,
शायद इस बात से डर रही हो तुम।

मोहब्बत की है तूने किसी रस्तोगी से,
फिर इस बात से क्यों मुकर रही हो तुम।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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