किसे ढूंढ रहें हैं

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कल से कल तक मैं
आज को ढूंढ रहा हूँ।
जीवन के बीते पलो को,
आज में खोज रहा हूँ।
शायद मुझे वो पल
आज में मिल जाये ।।

गुजरा हुआ समय,
कभी वापिस नहीं आता।
मुँह से बोले शब्द भी,
कभी वापिस नहीं आते।
इसलिए बहुत सोच समझकर,
शब्दो को बोलना चाहिए।
जिससे सुनने वाला आपकी,
वाणी से प्रभावित हो जाये।।

दिल और मन बहुत
छोटे होते हैं।
दोनों पर वाणी का बहुत,
जल्दी असर होता हैं।
जिससे कभी कभी बड़ी, दुश्मनी भी दोस्ती में बदल जाती हैं।
और कभी कभी बने बनाये, रिश्त भी बिगड़ जाते हैं।।

वैसे तो इस युग में कोई,
किसी का होता नहीं हैं।
फिर भी कुछ तो झूठे,
मायाचारी रिश्ते होते हैं।
जो दिल दिमाग और
मन से सोचते हैं।
और कलयुग में भी जिंदगी,
हंसते खिलखिलाते जीत हैं।।

संजय जैन (मुम्बई)
जय जिनेन्द्र देव की

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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