कितने ही कड़वे अनुभव देकर साल 2020 बीत गया… इसके शुरुआती कुछ महीनों को छोड़ दें तो लगभग पूरा साल ही भय, असमंजस और आशंकाओं से भरा रहा…
जिंदगी जैसे ठहर सी गई… कामकाज ठप, आवाजाही बंद और सब अपने अपने घरों में कैद… हर कोई बेरोजगारी, पलायन, बीमारी, अकेलेपन, अवसाद, भय, इलाज और संक्रमण से दो चार होता रहा… अपने जीवन काल में शायद ही किसी ने ऐसा बुरा दौर देखा… कहीं कोई खुशी नहीं… कहीं कोई उत्साह नहीं… घुटन और बेचैनी के बीच हर समय अपनों की तबियत की फिक्र और अपनी तबियत की चिंता… पर्व त्योहार भी फीके रहे… बाहर भीतर हर जगह एक उदासी सी छायी रही…
इस संक्रमण काल ने हर किसी को न सिर्फ शारीरिक रूप से एक दूसरे से दूर रखा बल्कि कई दिलों में भी दूरियां पैदा कर दीं… दूर पार बसे कई करीबी दोस्त और परिचित तकलीफ में रहे पर कोई किसी से चाहकर भी मिल न सका… कइयों का साथ भी छूटा…
फिर भी यह रीत है कि जाते हुए वर्ष को अलविदा कहना है और आने वाले वर्ष का स्वागत करना है… इस रीत के साथ एक बेहतर कल की उम्मीद भी बंधी है…
दुनिया में नकारात्मकता हर क्षण अपना पांव जमाने के लिए तैयार बैठी रहती है पर सकारात्मकता भी हार नहीं मानती…2020 में कोरोना का शोर था तो 2021 में उसके नए स्ट्रेन की चर्चा रहेगी… पर यह भी तय है कि इन सबों के बावजूद जिंदगी भी अपनी रफ्तार में चलेगी… हमें इन्हीं स्थितियों के बीच जीने की आदत डालनी होगी… इन्हीं स्थितियों के बीच कुछ नए संकल्प के साथ आगे भी बढ़ना होगा…कुछ नया और कुछ बेहतर करने की कोशिश भी करनी होगी… थोड़ा बचते बचाते हुए, थोड़ी एहतियात बरतते हुए खुद को यह विश्वास दिलाना होगा कि दुनिया अब भी खूबसूरत है… मोहब्बतें अभी भी सुर्खरू हैं… अपने दिलों में इस अहसास को फिर से जगाना है… इसे फिर से महसूस करना है… और इसे महसूस करने के लिए सिर्फ थोड़े जज्बात और आंखों में थोड़ा पानी चाहिये… बहुत कुछ खत्म होने पर भी बहुत कुछ नर्म और मुलायम बच जाता है जो यह यकीन दिलाता है कि जिंदगी अभी बाकी है दोस्त…
डॉ. स्वयंभू शलभ