कहीं सांपनाथ,तो कहीं नागनाथ

0 0
Read Time7 Minute, 27 Second

cropped-cropped-finaltry002-1.png

महाविद्यालय चाहे तो स्नात्कोत्तर पाठ्यक्रम भी शुरू कर सकता हैl राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ही अब चिकित्सा महाविद्यालय की मान्यता देगा,हर साल चिकित्सा महाविद्यालय को नवीनीकरण हेतु चिकित्सा परिषद् में चक्कर न लगाकर यह आयोग भी मामलों को देखेगाl हर वर्ष का निरीक्षण ख़त्म कर दिया गया है,अब हर दिन ऑनलाइन नजर होगीl ४७९ चिकित्सा महाविद्यालय में से ३५० ऑनलाइन जुड़ चुके हैंl अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने जुर्माने का प्रावधान  रखा हैl महाविद्यालय के खिलाफ कारवाई पहले मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड में होंगीl इसके बाद राष्ट्रीय चिकित्सा
हमारा देश प्रयोगधर्मिता प्रधान है,इसमें प्रयोग करो और न समझ में आए तो फिर प्रयोग करोl जैसे कहा जाता है कि, `लड़का सीखे नाऊ का और सर कटे गंवार का`l जितनी उच्च संस्था उतनी उसकी निष्पक्षता होना चाहिए और इसी आधार पर इनकी संरचना की जाती है पर होता कुछ और हैl यदि नाम बदलने से काम करने का ढंग बदल जाए,तो कहना ही क्याl अभी तक एमएमसीआई बहुत बढ़िया काम कर रही थीl इसमें जो अध्यक्ष या सदस्य बन जाते थे या हैं वे समझो ईश्वर के दूसरे रूप जैसे हो जाते हैंl कहा जाता है ईश्वर उसी से प्रसन्न होता है जो जितना अधिक प्रसाद देता हैl यह प्रसन्नता,प्रसाद पर निर्भर करती हैl  राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का कहना है कि,इससे चिकित्सा महाविद्यालय को प्रवेश(सीटें) बढ़ाने के लिए किसी से इज़ाज़त लेने की जरुरत नहीं होगी,वह मर्ज़ी से २५० तक सीटें बढ़ा सकते हैं ,इसके अलावा एमबीबीएस कोर्स पूरा होने पर चिकित्साआयोग को होगी और अपील केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय
में होगीl
मुद्दा-राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद भारत
वर्तमान में चिकित्सा परिषद द्वारा स्थापित मानक इतने कठिन और अव्यवहारिक तो नहीं कह सकते,पर चिकित्सा महाविद्यालय खोलना बहुत कठिन डगर हैl उसके निर्माण, स्थापना खर्च करना वैसे बहुत कठिन हैl जहाँ तक शासकीय स्तर पर चलने वाले चिकित्सा महाविद्यालय उनकी पूर्ति नहीं कर पाती है,हर साल परिषद् के निरीक्षण पर खतरे की घंटी
बजती है,पर शासन में कुछ इन्तज़ाम अली बैठे रहते हैं,वे व्यवस्था कर लेते हैं और निजी महाविद्यालयों में तो इस काम के लिए प्रबंधन समिति में प्रबंधन होता है,वह पूरे प्रबंध परिषद् से करके अपना काम कर लेते है,वैसे परिषद् बहुत ईमानदार होती है, वह कानून और पालन पर ध्यान रखती हैl `ला` यानी लाओ और `आर्डर` ले जाओ,इसीलिए इस पद पर आने के लिए करोड़ों रूपए लिए-दिए जाते हैं,और इसी आधार पर मान्यता दी जाती है क्योंकि,कौंसिल के निरीक्षण के बाद भी कमियां मिलती हैं,जिन्हें पूरा करने का आश्वासन दिया जाता हैl जैसे अंकेक्षण के समय इसके बाद अंकेक्षण प्रतिवेदन बन जाता हैl
वैसे चिकित्सा महाविद्यालय खोलना बड़ी टेढ़ी खीर होती है,वह इसलिए की हम पढ़ाई और चिकित्सा में कोई लापरवाही न कर सकेl भूमि,भवन निर्माण,सुविधाएं,मशीनें,मानव शक्ति,पूरे कर्मचारी और उसके बाद अस्पताल में मरीज़ों का भर्ती  होना,यह एक नियमित और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैl साथ में छात्रों की प्रवेश प्रक्रिया कठिन हैl आज हमारा गौरवशाली मध्यप्रदेश व्यापमं काण्ड से विश्व प्रसिद्ध हो चुका है, और अभी भी सूत्र नहीं मिल रहा हैl जो इस प्रदेश के मुखिया के रूप में जाने जाते है,वो इस काण्ड से पूर्ण अनभिज्ञ है,और चल रहा है क्रम परिषद की देखरेख में कॉलेज निर्माण में कम-से-कम ५००  करोड़ का धन व्यय होता है और उसे बाद भी कई महाविद्यालयों को मान्यता नहीं मिल पा रही हैl अब यह प्रक्रिया परिषद से लेकर आयोग के पास आने से मान्यता संबधी काम अब आयोग से शीघ्र और सुगम हो जाएंगे,ऐसी अपेक्षा है,क्योंकि कमीशन खुद कहता है कि,हमारा काम `कमीशन` से शुरू होगा और संस्थाएं हमारे पास कमीशन के साथ आएं और अपना काम कराएंl ऑनलाइन काम में जितनी अधिक अनियमिताओं की गुंजाईश होती है,जो  भौतिक निरीक्षण से पकड़ में आती हैl यह प्रयोग कितना सफल होगा,कह नहीं सकते पर वहां बैठे लोगों की निष्ठा पर यह सब आधारित होगाl स्वास्थय,शिक्षा के क्षेत्र में जितना ईमानदारी और निष्पक्षता होगी,वह उतनी ही देश-समाज और व्यक्ति के लिए लाभकारी होगी,पर हमारे देश का दुर्भाग्य है कि,यहाँ राजनीति कण-कण और खून के बून्द-बून्द में समाई हैl पता नहीं,किस मंशा से यह नाम परिवर्तन किया जा रहा हैl यह नहीं मालूम,पर गर्दन वही होगी,और उस्तरे जगह छुरा बदल जाएंगे-
`करो-करो प्रयोग और अनुसन्धान,
करने वाले बैठे हैं मानव रूपी भगवान
मानव से होशियार अब कोई हुआ है
उस पर यदि नेता के वरदहस्त से कोई बचा हुआ है,
जब तक राजनीतिक,लोभ-लालच के दंश नहीं छूटेंगे
तब तक काम कोई सुचारु न हो सकेगा इस वतन पर,
नाम बदलो या कुछ कर लो बैठेंगे तो काले बाल वाले
उनसे बड़ा कोई नहीं है इस धरा पर जानवर
करके यह विश्वास सुधार की आशा के साथ
होगा सुगम सरल यह काम जनहित मेंll`
#डॉ.अरविन्द जैन

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

श्याम सरस सुखधाम

Mon Dec 18 , 2017
तेरे प्रेमी भक्त हैं,कान्हा!कई करोड़। सबके मन से किस तरह,करते हो गठजोड़? मधुबन्ती ब्रजभूमि में,कान्हा मधु का धाम। मधुमय वंशी स्वर सरस,मधुमय राधा नाम॥ रुदन देती कभी,देती हँसी ललाम। कान्हा!तेरी बाँसुरी,गूंज रही अविराम॥ छोड़ गए ब्रज में रुदन,पीड़ा,व्यथा अनंत। कहो द्वारिकाधीश! कब,होगा इनका अंत ?॥           […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।