यह कोई जरूरी तो नहीं रमाबाई का जिकरा करना मैं एक बार हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय मैं सर्टिफिकेट कोर्स के पेपर देने के लिए गया हुआ था वहां पर मुझे करीब 20 रोज रुकना पड़ा जिस घर में मैं रुका था वह घर दिलशाद अहमद का घरता मैं तो जब पहले दिन घर से रवाना हुआ और विश्वविद्यालय गया तो मुझे देखा की विश्वविद्यालय से दिलशाद अहमद के घर जाते वक्त मैंने एक काली माता मंदिर के पास औरत मिली वह औरत खूबसूरत तो नहीं कह सकता लेकिन जवानी में चूर थी मैं उसका नाम तक नहीं जानता था तो मैंने उसका नाम रमाबाई रखा जो एक छोटे से घर में रहती थी मैं उसके घर के पास से कांधे पर अपना काला रंग का बस्ता जिसमें दो पोशाक हुए पढ़ने की सामग्री एक हाथ में कुछ मिठाई जोकि मैंने मेरे रिश्तेदार दिलशाद अहमद के घर देनी थी वह मिठाई लेकर मैं उनके घर जा ही रहा था वह बस्ती जो कुरुक्षेत्र के निवासियों ने देखी है मैं तो पहली दफा गया था जब मैं काली माता मंदिर के पास से गुजरात तो रमाबाई घर से बाहर आई और मेरे से बोली आओ आप मेरे साथ चलो मैंने उसे कहा मैं क्यों चलो आपके साथ मैं तो आपको जानता तक नहीं क्या काम है ऐसा मेरा तो रामा भाई ने उत्तर देते हुए कहा की मैं वही करना चाहती हूं जो एक मर्द एक औरत के साथ करता है मेरे माथे पर पसीना मेरी पूरी पोशाक पसीने से लथपथ हो गई मैं उनकी बातों को सुनकर हक्का-बक्का रह गया तो मैंने उसे कहा मैं यहां कुछ दिन रुकूंगा और बाद में मिलूंगा ऐसे कहते हैं मुझे अपनी जान छुड़ाने पड़ी मैं उस बस्ती को देखकर हक्का बक्का रह गया पुराने मकानों में अजीब तरह के लोग रहते थे उस बस्ती में मैं भी सभी के सभी मकान पुराने थे मिट्टी से लिखे हुए दीवारों पर भी मिट्टी की पुताई की हुई थी उस बस्ती को देखकर ऐसा लगता था कि दूर-दूर से आए हुए लोग जो बड़े घरानों से थे पिछड़ गए लेकिन रमा की इन बातों को सुनकर मुझे भरोसा नहीं होता था क्या उसके चेहरे पर हकीकत में वासना की भूख थी या कुछ चोर किस्म की। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था मुझे ऐसा लग रहा था की उस बस्ती के लोग पिछड़ी बस्ती में जरूर रहते हैं लेकिन वह सब आगे बढ़ने की लड़ाई लड़ रहे हैं उसके घर के पास कुछ जवान लड़के थे कुछ लड़कियां थी शायद वह भी यह सब धंधा करती हो मुझे ऐसा लगता था की लड़के दलाल का काम कर रहे थे पूरे दिन लोग खामोश रहते थे बिल्कुल सुन रहते थे वह लोग अपनी खामोशी को दूर करने के लिए इन लड़कियों का सहारा लेते हो करीब श्याम 5:00 बजे से उस बस्ती में लोगों का आना जाना शुरू हो जाता था पूरी सड़क दलालों ग्राहक को गाड़ियों से भरी हुई थी बड़े-बड़े होटलों की बतिया भी छोटे होटलों के सामने फिक्की पाठ जाती थी शायद वह बत्ती उन दलालों ग्राहक को गाड़ियों के मालिकों को कुछ कहती थी कई होटलों में 5 सितारे किसी में दो किसी ने तीन किसी में कोई तारा नहीं होता था लेकिन उन तारों को हम दिमाग से महसूस कर लेते थे दूर-दूर देशों के लोग यहां आते थे अय्याशी करते थे पता चलता था की गोरे हैं पर अंदर से कितने घोड़े हैं यह तो केवल रमाबाई और वह लड़कियां ही बता सकती थी इनकी सभी को अरब देश के लोगों को खांसी पहचानती कुछ ऑस्ट्रेलिया से वेस्टइंडीज से थे दिल्ली चंडीगढ़ आसपास के शहर तो उन लड़कियों से दूर नहीं थे भिखारी हिजड़ों वह नाचने गाने वाले लोग भी यह सोचते थे की विदेशी कब आए और हमारी आमदनी में इजाफा हो वह इसको पाकर इंतजार करते रहते थे सभी विदेशी लोग व आसपास के शेहरों वाले जब वह ऊपर जाते थे तो ऊपर से नीचे की दुनिया को देखते थे हिजड़े नाचते थे बाजीगर खेल दिखाता था बच्चे भीख मांग रहे थे ऐसा लगता था की इनके आने के बाद सबको काम मिला हुआ है कुछ लोग सर्कस खेलते थे मदारी भी खेल दिखाता था इन सब के पीछे एक ही सवाल होता था गरीब भूखा पेट के लिए खाना अल्लाह के नाम पर दे दो कुछ इस तरह के वाक्य उनसे सुनने को मिलते थे यह सब ब्रह्मसरोवर मेले का जिक्र है जहां अक्सर हर अमावस्या के दिन मेला लगता है ऐसी घटनाएं देखने को मिलती है सूखे दुबले पतले हिंदुस्तानी हरियाणा वासी भूखे पेट वाले अपने पेट को पीटते थे चिल्लाते थे रोटी के लिए उन सूखे दुबले खाली पेट के काले काले बच्चों को दिखाकर भीख मांगते अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो भगवान के नाम पर कुछ दे दो आपका भला होगा आपकी उम्र लंबी होगी वह इन्हीं की दुआ करते थे जब कोई बाहर से आकर उन पर नोट की बरसात करता था तो वह सभी के सभी उन नोटों पर टूट पड़ते थे काले काले बच्चों को भी इसी काम पर लगा देते थे फिर उनमें समझौता हो गया आपस में उनके काम वह हिस्सा बनना चालू कर दिया उनमें कभी लड़ाई होती कभी नहीं होती पैसे और मांगते थे अल्लाह के नाम पर भगवान के नाम पर कभी विदेशी व आसपास वालों शहरों के ग्राहक उन पर हंसते कभी-कभी कागज के टुकड़े एक के थे जब कागज के टुकड़े फेंकते हैं तो फिर एक बार दौड़ पड़ते थे इस बस्ती के सब लोग खुश थे उनका इस गरीबी सी बस्ती में रहना लाजमी था इनके अलावा और कोई काम भी नहीं था पूरी की पूरी दौलत यहीं पर कमाते थे इसी को अपनी दौलत समझते थे उन्हें पूरा संसार अपनी इस बस्ती में ही नजर आता था सिर्फ उनको रहने की जगह नहीं थी वह जगह भी सरकारी जगह पर कब्जा किया हुआ था क्या पता कब सरकार की नियत खराब हो जाए और हमारे सब धंधे चौपट हो जाए 40 50 जोगी थी यह सब उन्हीं में रहते थे अपना सारा जीवन उसी में व्यतीत करते थे बस्ती में ही सिमटे हुए थे इन्हीं काबिल जुगाड़ बना लिया सभी के पास एक हाथी और अपने-अपने एक एक कोने पकड़ लिए थे मुझे जब घर से आया था तो रमाबाई को मैंने इन झोपड़ियों में देखा था उसकी उम्र जवानी की तूफान पर थी और आंखों में भी वासना झकझोर रही थी सर दुनिया के कुछ कहती थी मैंने उनकी आंखों की आवाज को दबा दिया था और अपने रिश्तेदार के घर का रास्ता मापने लगा वह 30-35 की रमाबाई काली बदसूरत और बालों में बदरंग हिजाब लगाया था बाल रमाबाई के कुछ तो हो सफेद हो गए थे कुछ सफेद होने की चाह जो रहे थे कुछ बालों के जुड़े सफेद हो गई थी मुझे उसे गौर से देखा था मुस्कुराए भी थी मेरे साथ आंख मटका कर रही थी मुझे मालूम मुझे क्या हो गया था मैं बिल्कुल सुन खड़ा था मैं घबरा गया था मेरे माथे की स्क्रीन पर पसीना छूट आ जा रहा था इससे पहले मैंने कभी ऐसी औरत नहीं देखी थी नहीं किसी औरत ने ऐसा किया था मैं उस शहर का अजनबी था वह बातें ऐसे कर रही थी जैसे मैं उसी के घर का एक मामूली सा सदस्य हूं उस दिन से मैं होशियार चतुर हो गया था जब भी आता था तो मैं उस गली को बदल देता था और दूसरे रास्ते से आना जाना शुरू कर दिया था शायद मैंने ठीक फैसले लिया था कुछ समझ में नहीं आ रहा था रमाबाई फिर दूसरे रास्ते पर भी मिल जाती आप तो रमाबाई नहीं अब पूरी बनी ठनी श्रृंगार में भरी हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी पुरानी इमारत पर ताजा पेंट किया हो अब तो दिखने में सुंदर लग रही थी वह बदसूरती पता नहीं कहां छोड़ आई अब नई नवेली लग रही थी जो मुझे देखी थी तो खा स्थिति फिर अपनी चुनरी को थोड़ा ऊपर उठाकर अपनी आंखों को मेल तरफ पाती थी मैं बेचैन हो गया था इसे पीछा छुड़ाने के लिए वही मुस्कुराहट वही विनर दिखाई दे रहा था मगर लोग अब भी उस तरह चल रहे थे वह गाड़ियों की भीड़ सब कुछ हुआ तो कुछ नहीं बदला था उस बस्ती में सूरत श्याम को समुंदर में डूब जाता था उन्हें पुराने मकान में वह लड़कियां बन ठन कर तैयार हो जाती थी वह लड़कियों को टैक्सी कार बड़े होटलों में पहुंचा देती थी होटल के सामने बड़ी इमारत की विधियां चमकती रहती थी अमीर हिंदुस्तान में विदेशी आसपास के शहरों से गाड़ियां वहां पर जरूर आया जाया करती थी यह इमारत अमीरों की नहीं थी उसमें कुछ शरीफ लोग रहते थे लड़कियां भी उन्हें इमारतों में होती थी दलाल उन इमारतों में पहुंच जाते थे अपनी दलाली को सुनने और उनको भी होटल में पहुंचाने मैं अक्सर उप्स जाता था समंदर की लहरों से दिल नहीं मिलाया जाता गांधी की मूर्ति में भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियां भी वहां परआंखें बंद करके मुस्कुराती रहती थी प्रेम के लोग लिपट थे भीख मंगे हिजड़े दलाल और ठेले वाले रिक्शा वाले सब अपना काम कर रहे थे मुझे क्या तकलीफ थी मुझे मालूम नहीं मैं क्या सोच रहा था मेरे अंदर कैसे चाहते मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था जहां पर मैं रहता था उस बस्ती में उसका नाम मशहूर
रमाबाई को पूरा शहर जानता था व्यापारी भिखारी साधु संत अमीर गरीब सब के सब उसके दीवाने थे उसको सब जानते थे उसका नाम पूरे कुरुक्षेत्र में मशहूर हो चुका था उसका नाम आसमान में तारों की तरह चमक रहा था पर उस तारे की चमक ज्यादा थी या थोड़ी वह तो शहर के लोग यह बता सकते थे मैं तो अपना कुछ समय कुछ दिन बिताने के लिए आया था मुझे उसके बारे में खोज कर भी क्या करना है एक मन करता था कि मैं उसकी जिंदगी की घटनाओं पर अमल करो पर मेरे अंदर यह डर था कि किसी को पता चल जाए तो लोग क्या कहेंगे नाक कट जाएगी मैं जो खाते हो खामोश बना रहा उस शुभ है जब मैं यूनिवर्सिटी जाता शाम को फिर लौट आता रमाबाई उस इमारत में चली जाती शायद उस इमारत में रमाबाई काम करती थी कुछ देर बाद वह बाहर आ जाती पूरे दिन अंदर बाहर आती जाती रहती थी उसके आने जाने के पीछे कुछ रास्ता शायद उसका राज उसे ही मालूम मक्खियों पता लगाऊं क्या राज है मैं तो यही समझता हूं वह भी समाज में काम करती है और कुछ आवश्यकता का समान दिन भर बाहर लाती है वह अंदर ले जाती है मेरे मन में तो यही चल रहा था मैं क्या करूं मुझे कुछ नहीं समझ आ रहा था जब रमा बाहर आती उसके पास के खोखे से बीड़ी लेती शायद उसी का दम लेती इतनी देर में अंदर से फिर कोई नहीं कोई पुकार लेता आखरी क्या था उस बीड़ी के पीछे मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था आसपास के दुकानों का सामान अंदर पहुंचाती थी खोखे से चाय पान सिगरेट अघेरा वगैरह वह अंदर ले जाती थी मैं कभी-कभी सोचता था कि मेरे सही जगह क्या है मैं यह क्या देख रहा हूं क्या काम पूरी दुनिया में होता है ऐसा ही होता है मैं कुछ सोच नहीं पा रहा था या मैं इस दुनिया के छोटे से शहर में देख रहा था मैं सोचता था कि इस भीड़ में मुझे किस तरफ जाना है मैं भी आगे आगे बढ़ने के लिए मेरे सामने सैकड़ों सवाल पूरे दिन में घूमते रहते थे रात होती सवाल खत्म अगले दिन फिर सैकड़ों सवाल आते रात होती सवाल खत्म यह सिलसिला जितने दिन मैं वहां रहा इतने दिन चलता रहा क्या मैं भी इन दलालों की भीड़ में शामिल हो जाओ नहीं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए श्री कृष्ण और गांधी की मूर्ति के पास क्या मैं भी सौदा करना शुरू कर दो रात हमेशा बहुत मुझे रात को साइकिल चलाना भी मुश्किल हो जाता था क्योंकि अमीरों की गाड़ियों की रोशनी के पीछे साइकिल की क्या औकात उनकी रोशनी से आंखों में चुभन हो जाती थी कभी-कभी तो पानी भी आने लगता था गाड़ी इतनी थी कि पूरी सड़क खड़ी रहती थी एक आने वाला और एक जाने वाला कभी-कभी फुटपाथ पर कहीं भेजने वाले दिखाई देते उनके काले काले बच्चे रो रो कर रहे थे शायद उन्हें भी रोटी की चाची कार वाले उनका कोई रिश्ता बल्कि हर रोज एक दोबारा कार के नीचे आने से फोड़ देते गलती नहीं मानते थे ऐसे लोग थे उस शहर में जहां कृष्ण उपदेश दिया था जागते हुए मिलते तो कभी सोते रसोई से खाना लेता था मैं सोचता था कि रात को परेशान किया जो मुझे लेना था वह ले कर लेता था सभी अपने अपने कामों में लगे रहते थे मैं किसी को परेशान नहीं करना चाहता के साथ नाश्ता करना और नाश्ता करवा कर उठा कर फिर फिर अपनी क्लास में फिर शाम को वही देखने को मिलता हर रोज मिलता है जब मैं रात को खटोली पर पड़ता तो कई बार तो मुझे कई बार बेचैन रहता आगे पीछे कभी पीछे कभी सीधा लेटता था और अपना समय व्यतीत
करता मैं खटोली से उठा और छत पर जा पहुंचा मुझे देखा की दारू के अड्डे व मीट की दुकान रात के 2:00 बजे भी खुली थी मैं भी गली में घूम कर ठंडी हवा लगा लेता पर मैं बंधा हुआ था अपने रिश्तेदार के घर उस दारु की दुकान पर वह मीट की दुकान पर वेश्याओं की भीड़ अब भी जारी और लोग पियक्कड़ और भी तलाश कर रहे थे मैं यह नजारा छत से देख रहा था एक बार मेरा मन बौखला गया कि अभी जा और इनका हिसाब रात को ही कर दे लेकिन मैं बंधा हुआ था मैं कुछ नहीं कर पा रहा था दारू के अड्डे को छोड़कर बाकी सभी जगह सुनसान लगती थी बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था क्यों जुगनू की आवाज सुनाई दे रही थी कभी मेंढक भी टराने लग जाते थे कुछ दूरी पर लाइटो की बतिया जल रही थी उस जुगनू की आवाज और मंडे की आवाज के अलावा किसी आदमी के चीखने की आवाज सुनाई दी वह नशे में बिल्कुल सुन पड़ा था चीख रहा था पर अच्छी तरह सुनाई नहीं दे रहा था शायद पानी मांग रहा हूं या किसी और चीज की इच्छा जाहिर करता हूं कोई और मदद मच्छर पर खड़ा खड़ा उस नजर से देख रहा था मैं बंदा हुआ था मैं बाहर नहीं जा सकता था मेरा रिश्तेदार मुझे आवाज नहीं आती थी तो अभी मैं आया घसीट कर मस्जिद में ले जाता था मुझे नया सीखने का पूरा से लिखा बता रहा था कुछ कुछ नया आई जाने के बाद वह मस्जिद और रिश्तेदार वही पर रह गई दिन की बात भी मुझे हजम नहीं हो रही थी जब अल्लाह की इबादत की बात करता तो सिर फटने को हो जाता था पर मैं कुछ नहीं बोलता था जैसे उसके घर में रीति रिवाज थी मैं उसी रीति रिवाज के हिसाब से रहता था मेरा भी मन रात को बेचैन हो जाता था उस बस्ती के लोगों के चित्र मेरे दिमाग में बैठे हुए थे वह रमाबाई भी दिमाग से नहीं निकल रही थी करोगी तो क्या करूं जब मैं आदमी के पास गया घर से चुप कर जाकर देखा वह रमाबाई थी 1-2 सेकंड खड़ा रहा लेकिन बाद में वापस घर लौट गया उस घर जो वापस लौटा तो मैं घर की चाबी शाहिद कहीं पर गिरा आया और दीवार फांद कर घर में घुसा मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा था पर मेरे दिमाग में ऐसा विचार उस समाया मैं कभी छत पर जाता कभी नीचे आता ऐसा करने पर गली के कुत्तों ने मेरी परछाई देख ली और कुत्तों ने चिल्लाना शुरू कर दिया रमाबाई जहां देने में चिल्ला रही थी वह सब रोशनी में आ रही थी उसमें बाल बिखरे हुए थे मुंह मर जावा था गजरा लगा रखा था मुझे रोशनी में स्पष्ट दिखाई दे रहा था एक मेली की साड़ी पहनी हुई थी उसको देखकर मुझे लगा कि रमा भी हर रोज अपने ग्राहक तलाश करती है कुछ देर बाद मसाज पार्लर का दरवाजा खोल कर एक बड़ी सी महंगी कार में आया और रमा के पास आते हैं उसे दरवाजा खोल दिया शायद उसने आज का ग्राहक मिल गया था जब भी उस गली से गुजरता तो रमा मुझे देखती और काफी सारे करती मैं उन इशारों को हर रोज नकार देता था जब वह छत से देखती थी तो उसका चेहरा काला थका और गुदा दिखाई दे रहा था बालों में फिजा गालों की झुर्रियों में पाउडर पर दो और पुती हुई लाली मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था दुख भी हुआ वह मुझे रोज देखती उसके होंठ धीरे-धीरे कांपने लगे मुंह के कोने पर लाल और थूक इकट्ठा हो गया शायद उस लाख से कुछ था ऐसे कैसे आई सोचता रहा होठों पर जाग आ गए थे दोनों तरफ मुझे डर महसूस हो रहा था इसको क्या हो गया है वह गोली तू मुझे पसंद है सच्ची बोलती मैं पूरी सच्ची बोलती पूरी सच्ची बोलती तू पसंद है मैं पूरी सच्ची बोलती मैं वहां से भाग गया क्या बोला मेरे पास आई है वह मुझे चिल्लाते करते हुए रही तू आदमी लोग उम्र की छोकरियों से मोहब्बत करें स्थिति साल की हूं मैं तो आदमी कम उम्र की छोकरी चाहते मैं जानती वह कहती तुम मुझे समझा नहीं मैं बहुत अच्छा आदमी उस टाइप का नहीं जैसा तुम सोचते भागते भागते रुक गया कुछ कहती मैं समझ गया देखो ना मैं तुम्हें बहुत पसंद करती आते जाते देखा ना मुझे मैं बोलूं तो तुमसे मोहब्बत करती पर तू समझा नहीं मैं बोला कुछ नहीं तू पगली मैं शादीशुदा और दृष्टि वाला हूं मैं समझती मैं भी बाल बच्चों वाली हूं समझा क्या मैं तुमसे मोहब्बत मांगता दोपहर को सुनसान था गर्मी में आ जाए बहुत कम थी रमा मुझे मोहब्बत की भीख मांग रही थी उसके लिए पूछते चेहरे पर अचानक मैंने बेबसी दिखाई दी उसकी आंखें कुछ कह रही थी फोटो को भी दबा रही थी तुम मेरी बात समझो उस टाइप का आदमी नहीं हूं जो तुम सोचते हो रमा ने कुछ नहीं कहा उसका काला चेहरा मुरझा गया उसका चेहरा मुरझा कर और ज्यादा काला हो गया उसने मुझसे कोई आशा न थी कई देर तक वह चुपचाप खड़ी रही गुमसुम जैसे चेहरे पर कोई सन्नाटा छा गया हो उसके माथे पर पसीना आने लगा था उसी ने की कुछ कह रही थी यह तो उसे मालूम था मैं इस पचड़े में नहीं पढ़ना चाहता था इससे बचना चाहता था मेरे को हेल्प मांगता मोहब्बत मांगता आपने लिखा कर देख रहा था वह चल आ जा मैं तुझे कुछ नहीं मांगता मैं केवल ₹100 मांगता है मामला केवल पैसे मांगता पुजारी दो-चार दिन बाद वापस लौटा दूंगी मुझ पर भरोसा करना विश्वास करना अच्छी बोलती मेरा यहां उसकी पहली बार मुलाकात खत्म हो गई थी मैं उसी राह पर जाता था वह अंदर बाहर आती थी बीड़ीफ़ू प्रीति वीडियो के लंबे लंबे दम करती थी मैं हर रोज देखता था उस मुस्कुराहट में पहले वाली बात नहीं थीक्योंकि उस वक्त मेरे पास ₹50 थे उसने मुझसे शो मांगे थे फिर भी मैंने उसे थोड़ा बहुत ₹50 दे दिया था उस ₹50 या उसका काम तो चला ही दिया कुछ दिन बाद वह उसी इमारत के सामने मेरी साइकिल रुपए तो देखा कि सामने रमाबाई खड़ी थी उसके मेले आंचल में कुछ लिखा हुआ था उसका बदन गरीबी आंचल से उसने कुछ निकाला तो देखा कि वह ₹10 ले रही थी कहा अभी तो इतना है बाबा आपकी पूरी उधारी चुका दूंगी ले बाबा मैं सच बोलती जब मैं साइकिल लेकर उसकी मार के पास से गुजरता तो उसने मेरा चेहरा देखकर मालूम हो जाता है क्योंकि मेरा चेहरा भी मुरझा गया था एक अचानक शहर में पैसे तलक थे नहीं मैं करूं तो क्या करूं वह मेरा चेहरा पढ़ रही थी उसने 1 दिन बीच रास्ते मेरी साइकिल कोई और एक प्लेट में दो रोटी थमा दी और कहा कि मैं तुमसे कल ले लूंगी अब खाना खा कर सो जा बस रोड के पास श्री कृष्ण की मूर्ति के पास कभी कभी भी रहती थी आते जाते समय मैंने उनके पास बैठना शुरु कर दिया था ज्यादातर की और हारी हुई थी मालूम होती थी 7 दिन में मार्च में काम करते थे रात को अपने ग्राहक तलाश थी थी मुझे तो ऐसा ही लग रहा था उसकी तक आउट को देखकर वह इतने थक जाती थी कि काम उसके सामने हावी हो जाता था मसाज की दुकान में काम बहुत करवाती थी मसाज की दुकान में रात को भी काम होता था और दिन में भी उसने उस इमारत में काम करना छोड़ दिया था वह मसाज की दुकान बड़े घरों के लोगों को मसाज मालिश करती थी हर 2 मिनट में उसे बुखार हो जाती थी अब यह कहकर वह कर पूरे दिन रात काम करते करते हुए थक जाती थी शराब बरोडा सीकर तक पहुंचाती थी बीच-बीच में कोई नहीं बोलता था कल तो तब भी आराम हो जाता था उनको खाना पड़ता था बड़ी रात को वह जाती थी चलाती थी मसाज की लड़कियां बस्तियों की लड़कियां रात को जाती थी घर जाकर वह खाना मांग की थी लड़कियां खूब गालियां देती थी और मारपीट तक भी करती थी क्योंकि जगराता वह ने दारू पिला देता था और वह केवल नशे में ही मार दी थी लड़कियों को एक वेश्या के साथ उन्हें नशेड़ी बना दिया ता कभी सिगरेट फूंक दी थी तो कभी शराब पीती थी वादी हो गई थी उनका नशे से प्यार हो गया था उनको जो लगता है वह केवल नशा ही लगता है क्योंकि यह गरीबी थी गरीब बस्ती सरकारी जगह पर कब्जा की हुई बस्ती में जब महंगी शराब आती है तो क्योंनए वह लड़की भी उनका जाम लगाएं वह लड़कियां ग्राहकों का गुस्सा रात को उस रमाबाई पर निकालती थी कोई कोई ग्राहक खाना भी खाते थे वह लोग खूब पैसा उड़ाते थे अमीर लोगों के पास इतना पैसा है कि आप सोच भी नहीं सकते थे पता नहीं कहां से लाते काम करते या कोई दो नंबर का धंधा करते हमें चार्ज होता है जब वह इन पैसों को उड़ाते हैं लेकिन उन लड़कियों को बहुत कम मिलता था शायद उनके जीवन में गरीबी ही लिखी हुई है मसाज की दुकान पर किराया ₹15000 महीना था और 15000 ही बचा हुआ था पैसा कुछ तो किराए पर ले जाते कुछ दलाल ले जाते हमारे हाथ में तो केवल ठेंगा ही बचता था लड़कियों के पास बहुत कम बच पाता था बस अपने कपड़े तक ही खरीदी थी जब वह ग्राहकों को बेमन से काम करती तो ग्राहक उनको कभी पीठ भी देता था जो कि उसका दर्द हफ्तों तक रहता था मैं पूरे दिन यूनिवर्सिटी में रहता और शाम को उस श्री कृष्ण के चबूतरे पर बैठा रमा के साथ उनका इंतजार करना पड़ता था पता नहीं कभी-कभी तो रमाबाई रात को 9:00 बजे तक आती थी कभी-कभी जल्दी भी आजाद करती थी टैक्सी वाले पास वाले शहरों से विदेशों से ग्राहक लाते लड़कियों में कुछ लड़कियां नेपाली कुछ स्थानीय थी कम उम्र की लड़कियां इनको शेयर कर आते थे कभी चंडीगढ़ तो कभी दिल्ली तक ले जाते थे पता नहीं रास्ते में क्या होता था इन सुखी और मुरझाए लड़कियों पर विदेशी कपड़े बड़े अच्छे लगते थे पहली बार विदेशी कपड़े को पहन कर यह लड़कियां बड़ी खुश हो जाती थी बाद में आती थी दलाल और टैक्सी ड्राइवर काबू करके ले जाते थे बीच-बीच गाड़ी को रुकवा कर बताते थे कि ऐसी हरकत नहीं करनी है यह सब हमकोऊसिखाते थे कैसी करना है कैसे नहीं करना है यह हमको सब सिखाते हैं विदेशी लोग बड़े-बड़े होटलों में जरूर ले जाते हैं उनके खाने को देखकर हमारा भी मन ललचा जाता था उसका पूरा खाना हजम कर जाती थी विदेशी ग्राहक कभी होठों की सवारी करवाते कभी घोड़ों की अलग-अलग तरह की तस्वीर अपने कमरे में कैद करते शायद 1 तस्वीरों को बार-बार देखता है लेकिन उस शहर को भी वह लड़की नहीं भूल पाती जब पिछले ग्राहक से अच्छी सवारी कराने वाला अच्छा खाना खिलाने वाला मिलता तो वह पिछले को भूल जाती थी और अपने अंदर नए ग्राहक की तस्वीर बना लेती थी जो ऐसे करती थी रमाबाई उनको डरती थी मेरा भी मैंने ऐसा ही करता था लेकिन अब मैं थक हार कर अपने कमरे में सिमट कर रह गई हूं बस वह मसाज की दुकान का काम कर रही हूं उनको तो लड़कियां नहीं करने देगी रमा ने कहा जो तुम्हारा रहा है वह मुझ में भी चुका है यह नोट की सवारी बड़े बड़े होटल में खाना खाना आदि सब दिखावा है 1 दिन भी तुम भी मेरी तरह सिमट कर रह जाओगी अब रमाबाई केवल मसाज वाला ग्राहक को पड़ोसी दलालों आदि को ही नहीं कुश्ती बल्कि पूरी दुनिया को गाली देने लगी थी एक श्याम जब दिल्ली तो श्री कृष्ण के उपदेश देने वाली तस्वीर के पास बैठी थी पता नहीं क्या सोच रही थी शायद उसने मेरा ख्याल आया है पार्क में जोड़ें प्यार कर रहे थे लड़कियां तरह तलाश कर रही थी हिजड़े नाच रहे थे भिखारी भीख मांग रहे थे साधु बाबा ब्रह्मसरोवर पर डेरा जमाए हुए थे यह सब मैं अपनी आंखों से पाकर देख रहा था वह चाहते हैं पाप दूर होते हैं लेकिन रमाबाई की जिंदगी जोश धरती में रची बसी है कभी भी उन मूर्तियों को भगवानौ न्यूज़ का दुख नहीं बांटा लोग मेले में झूमते हैं नाचते हैं ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं सब अपने पाप धोते हैं लेकिन रमाबाई उसी धरती में पैदा हुई एक गरीब घर में उसके पापों को कौन दूर करेगा वह बोली चलो हम दूर चलते हैं मोहब्बत करते हैं लेकिन मैं उसकी बातों में आने वाला नहीं था उसकी बातें मैं दूदकारता रहता थ वह मेरे बिल्कुल करीब पार्क में आ गई थी मैं बोला मुझे नहीं करनी मोहब्बत मुझे बता तो दिया मैं शादीशुदा आदमी हूं मैं जो मेले में पढ़ने वाला नहीं हूं वह कहती सच्ची रे मैं तुमसे मोहब्बत करती क्या रे मैं बिल्कुल तुमसे मोहब्बत करती अपुन केवल तुमसे ही मोहब्बत करती समझा क्या तु्म से ही मोहब्बत करती उसका चेहरा काला हो गया और उसका शरीर कांपने लगा और नंगी गालियां देने लगी जा जा साले तुम क्या मोहब्बत करोगे तू ही जुदा है जा जा अरे बाबा मैंने बोला मैं उस तरह का आदमी नहीं हूं जिस तरह का तुम समझती हो तुम क्या मोहब्बत करोगे तेरा बाबा भी मोहब्बत नहीं करता मोहब्बत करने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए तेरे बाप ने कभी मोहब्बत नहीं की तू क्या मोहब्बत करेगा तेरी जिंदगी की किताब में मोहब्बत का पन्ना ही नहीं वह जोर-जोर से नंगी गाली देने लगी माउस की गालियों को सुनता रहा और देखता रहा जोगा गाली देती हुई थक गई तो वह लड़खड़ा कर वहां से चली गई मैं उस मंदिर को देखता रहा कुछ ना बोल सका ब्रह्मसरोवर के पानी के लहरों के थपेड़े पास आते गए और लोगों का शोर भी बहुत कम हो चुका था मेरे अभी समझ नहीं आया मैं क्या करूं इसके बाद रमाबाई ने मेरे को देखना बंद कर दिया मैं उसके पास भी गुजर जाता लेकिन वह मुझे नहीं देखती मुंह फेर लेती थी क्या रामा मेरे से हमेशा के लिए नाराज हो गई मुझे नाराजगी के अंदर की कोई सुवालिया नजर आ रहा था पता नहीं वह सवाल क्या था मुझे नहीं पता एक सवाल था उसका उत्तर भी वही जानती थी शायद जिंदगी का सवाल या गरीबी का सवाल उस सवाल से वह केवल अकेले ही लड़ेगी आप उसे किसी की जरूरत नहीं वह एस वालों का डटकर मुकाबला करेगी मैंने सोचा मैं भी उसके लिए बेकार हूं पर वह समझ ना पाई कि मैं क्या चाह रहा हूं मैं कहना चाह रहा था कि मैं शादीशुदा हूं मैं ऐसा काम हरगिज़ नहीं कर सकता जो आप मुझे कह रही हैं इसके लिए मुझे कोई मदद चाहिए तो बता देती मैं भी नाराज हूं उसके सवालों से वह सवालों में गिर चुकी थी सवाल रूपी चार्जर अपने जीवन पर और ली थी पता नहीं वह चादर कभी उतरेगी या नहीं मैं रमाबाई से मिलना चाहता था मेरा अब समय खत्म हो चुका था मुझे वापस मेरे घर आना था मैंने उसको अपनी गाथा दूसरी मुलाकात में सुनाई तो मैंने कहा कि मैं कोई पक्की नौकरी तो नहीं करता ठेकेदार की नौकरी करता हूं ठेकेदार कभी 6 महीने रखे या ना रखे रमा आप ही बताओ एक शादीशुदा आदमी के लिए 5000 की नौकरी करना आज के समय में कितना कठिन है वह बोली सच बाबा रे बाबा रामायण है तो अब श्री कृष्ण की तस्वीर के चबूतरे पर आना बंद कर दिया वह देखती रामू फेर लेती थी मैंने अनदेखा कर देती थी मैं ब्रह्मसरोवर के चारों तरफ घूम रहा था सागर जैसे पानी को देख रहा था नहीं नहीं ऊंची ऊंची इमारतें बन रही थी उसके पास में ही एक त्रिपुटी बालाजी का मंदिर भी बन रहा था और वहां पर एक मल्टी आर्ट कल्चर सेंटर भी था मैं उन इमारतों को ताकता कर देख रहा था प्रॉपर्टी वाले 1-1 फ्लैट के कई कई लाख रुपए लेते हैं मेरा तो गुजारा ही नहीं हो रहा था इमारत में फ्लैट लेने का सपना तो केवल सपना रह जाएगा बहुत से लोग तो स्मगलर बन जाते हैं बहुत से लोग लाखों रुपए देकर यह फ्लैट पीते हैं इन बातों को सुनकर मैं रह जाता हूं क्या मैं कभी अपना मकान लिस्ट या नहीं यह भी मेरे सामने एक सवाल था शायद लगता है मुझे इस जिंदगी में तो पूरा नहीं होगा लोग बहुत जल्द अमीर बन जाते हैं इस बात पर मुझे भरोसा नहीं था दिनभर धक्के खाक थीर श्याम को मैं रमा से बात करने की कोशिश करता पर रमाबाई मुझे अनदेखा कर देती शाम को जब मैं घर लौटता तो पास हर एक नई कहानी होती थी हर आदमी के पास एक कहानी होती है चाहे वह रमाबाई हो या मैं हूं या पूरे संसार में जितने भी आदमी है हर एक के पास एक कहानी है बस उस कहानी को घटने वाला चाहिए उस कार्य को कानी कार्य ही कर सकता है कहानीकार ही लड़कियों के रमाबाई जैसे औरतों के दुख को ही उठा सकता है झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले दिन भर काम करने वाले मेहनत करो की लड़ाई को अपनी कहानी में एक कहानीकार ही फिर हो सकता है मेरा भी काम छूट गया था काम मिलना मुश्किल हो गया था जहां भी जाता वहीं पर काम से ना हो जाती सभी जगह अपने अपने आदमियों को काम दिया जाता था किसी की सिफारिश पर मिलता था प्रतिभावान व्यक्ति घर में पढ़ रहा था एक पढ़ा लिखा आदमी ₹200 से भी कम प्रतिदिन कमाता और एक अनपढ़ आदमी ₹500 प्रतिदिन कमाता और उसका घर वाले खूब आदर सत्कार करते यही मेरे साथ बनती है पता नहीं संसार में प्रतिभावान व्यक्ति की कोई जगह है या नहीं जिसको काम की जानकारी है वह घर पर है जिसको काम की कोई जानकारी नहीं है उसे धड़ल्ले से काम मिल रहा है शायद इसमें मजदूरी का लालच है क्योंकि नया आदम कम मज दूरी लेगा। यह जानकर ज्यादा इसलिए सभी मजदूरी कंजूसी करते हैं और काम करवाते हैं तभी वह काम करवाने वाला जल्द अमीर बन जाता है गरीब और रमाबाई जैसे घर रह जाते हैं अब तो रमाबाई ने दिखना भी बंद कर दिया था अब मेरा 1 सप्ताह के अंदर काम पर लगना पक्का हो गया था मैं बड़ा खुश था कि मुझे काम मिला है ज्यादा पैसों का नहीं बल्कि उससे कम पैसों का सोचा खाली बैठा था विचारधारा वाला ही काम कर लूं कुछ तो आमदनी होगी कुछ तो खर्च निकलेगा घर का मुझे अमित लगी थी आपकी बारी है नौकरी छह माह की नहीं बल्कि पूरी उम्र की होगी रमा से बात करना चाहता था मैं श्री कृष्ण के चबूतरे पर कई देर तक बैठता रहता था अब रमा का आना जाना ही बंद हो गया था मेरे सामने से लोग हंसते खिलखिलाते गुजर रहे थे सूरज पानी में डूब गया था रमाबाई नहीं आई यह कोई नई बात नहीं थी रमा आए क्योंकि उसने मुझे मिले काफी दिन हो गए थे देर रात तक बैठने के बाद मैं वहां से उठ गया और रास्ते पर चलते चलते मुझे एक इमारत की तरफ देखा रमाबाई वह भी दिखाई नहीं दी यह बात नहीं की अबकी बार मुझे अजीब लगा पता नहीं क्यों उस रास्ते पर जब जाता था तो रमाबाई रोज मिलती थी पता नहीं अभी है रास्ता रमाबाई को निकल गया है या मेरी आंखें कमजोर पड़ गई है अब तो वह इमारत मसाज की दुकान बस्ती श्री कृष्ण का चबूतरा तक घूम मारा रमाबाई नहीं मिली पता नहीं क्या हो गया था रमाबाई को मुझे ख्याल है कि रमा कहीं और चली गई इस ख्याल से मैं परेशान सा हो गया था मैं किसी से रामा के बारे में कुछ पूछना चाहता था पर चाह कर भी नहीं पूछ रहा था लेकिन ऊंची इमारतों में रहने वाले लोगों की बातें सोचने लगा लाखों रुपए खर्च करने वालों के बारे में स्मगलर ओं के बारे में अमीर बिल्डरों के बारे में सोचने लगा वह छोटी-छोटी लड़कियां उनके बारे में भी मैं सोचने लगा लेकिन मैं रमाबाई के बारे में भी सोचता रहा लेकिन एक रात पूरी बात हो गई मुझे लौटने में काफी देर हो गई थी मुझे काम पर बुलाया था मैं थका लेकिन काफी खुश था मैं रात को चलता रहा मैंने देखा की किराने की दुकान के आगे एक औरत पड़ी है मैं आगे चला गया फिर लौट आया मैंने देखा वह रमाबाई लीची कुछ समय समझ नहीं पा रहा था रात काफी हो चुकी थी सड़क भी करीब-करीब खाली हो चुकी थी मुझे लगा कि रमा सो गई है मैं फिर गुजरा मुझे लगा कि सोए नहीं है छोकरियों के साथ इसने भी शराब पी ली है मैं अपने कमरे तक गया ताला खोलने से पहले फिर लौट आया रमा को देखा मुझे लगा मैं बेहोश है वह हिचकिचाहट कर आवाज दी रमाबाई रमाबाई तो उसने कोई जवाब नहीं दिया मैं एकदम उसके पास पहुंच गया मैंने रमाबाई को हराया मुझे लगा कि रमा बहुत बीमार है उसका शरीर बहुत गर्म हो रहा था उसके मुंह के चारों तरफ बाल बिखरे हुए थे हॉट भी सूख गए थे होठों से झाग निकल रहे थे मुझे समझ नहीं आया मैं क्या करूं रमा आप अपने आप आई है या किसी और मोटर कार्य बड़े घराने वाले ने डाली है वहां पर कोई नहीं था ऊंची इमारतों की बतिया चमक रही थी 12 गाड़ी की आवाजाही थी सड़क सुनसान थी कि कोई दिखाई नहीं दे रहा था ऑटो रिक्शा वाला कार ड्राइवर टैक्सी वाले सभी अपनी गाड़ियों में सोए हुए थे किसको जगाए किस कोने से गाय क्या करूं क्या ना करूं मुझे कुछ ख्याल नहीं था इसको अस्पताल तक ले कर गया तो दो अस्पताल वालों ने मना कर दिया था सरकारी हस्पताल खचाखच भरे पड़े थे नर्सों के ड्यूटी रूम में मैंने अपनी चद्दर बिछाकर उस पर लेट गया उसको ऑक्सीजन लगा दी नरेश ने कहा एक ग्लूकोस की बोतल भी लगानी है अस्पताल में दवाई नहीं है आप बाहर से दवाई ले आओ मैं बाहर से दवाई खरीदने चला गया मैं चुपचाप सुबह का इंतजार करता रहा वह रात इतनी लंबी हो गई थी कि सुबह आने का नाम ही नहीं ले रही पूरे हस्पताल में वर्णों में पलंग पर जमीन पर हर जगह मरीज ही मरीज पड़े थे एक तरह मरीजों का मेला लगा था इतनी भीड़ थी कि अस्पताल में पैर रखने की जगह नहीं थी देर रात नींद आई और जब सुबह उठा तो लोगों ने चलना फिरना गाड़ियों को दौड़ना शुरू होगा था ड्यूटी रूम में जाकर रमा की तरफ देखा तो भी वह बेहोश मिली उसके सफेद काले बाल बिखरे हुए थे उसका रो पहले से ज्यादा बिगड़ गया था मैं पूरे दिन चलता रहा कहीं हस्पताल में तो कहीं दवाई की दुकान पर मेरा एक 13 साल में था एक पैर दवाई की दुकान में पूरे दिन चलता रहा जहां मैं काम पर जाता था उसने कि मुझे काम से हटा दिया अबकी बार सोचा कि तू काम जरूर लग जाएगा लेकिन ऐसा लगा कि मैं फुटपाथ पर आ गया पता नहीं कैसे धन देखने को मिले इस तरह में दवाइयां और ग्लूकोस की बोतल जैसे तैसे कर कर ले आया कुछ लोगों ने मेरी मदद की अब तो मेरे अंदर भी थकावट आ गई थी जब अस्पताल पहुंचा तो रमाबाई की हालत गंभीर हो चली थी उसके मुंह पर उल्टी आ रही थी उसके उल्टी से उसके बाल का वक्त कपड़े तरस गए थे मुझे लगा कि वह मर जाएगी उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया औटौट इस समय मुझे ऐसा लग रहा था रमा अब बच्ची ने मुश्किल है रमा को इस तरह नहीं मरना चाहिए हे परमात्मा ईश्वर ए मेरे अल्लाह ताला कोई ना कोई इसको बचाले मैं दौड़कर बड़ी नरेश के पास गया बड़ी मुश्किल से उसने मेरी तरफ ध्यान दिया और रमाबाई को दवाई दी और रमा उल्टी करती रही और उसका वीडियो की तरफ कोई ध्यान नहीं था उसकी उल्टी या फेफड़ों में चली गई रमाबाई को जांचने के लिए एक मशीन मंगवाई गई किसी डॉक्टर के द्वारा वह अंदर डॉक्टर ने नली लगाई और अब रमाबाई एक-एक सांस खींचकर बिल बिल आने लगी लंबी लंबी सांस लेने लगी थी रमा ने आंखें खोल पर चारों तरफ देखा और सो जा मुझे अब बस जाना चाहिए बच कर भी मैं क्या करूंगी रमाबाई कि आप सभी तरह की आवाज चुप हो गई थी अब मशीन हटा दी फिर गुलपोश की बोतल लगा दी अचानक उसको तेज बुखार हो गया मैं समझ नहीं रहा था क्या करूं कैसे करूं क्या करूं अस्पताल मुझे खाने लगा था अब तो ऑक्सीजन भी खत्म हो गई थी 12 सिलेंडर था जो दूसरे मरीजों पर लगे हुए थे रमाबाई के बारे में सोचता था अस्पताल में सो जाऊं मैंने सोचा रमाबाई का इस दुनिया में कौन है अम्मा लोग वहां से लौटा था जहां स्मगलर अमीर विदेशी लड़कियां दलाल हिजड़े सब अपने-अपने काम कर रहे थे कई सितारों वाले होटल में बतिया जगमग थी महंगे होटलों में अजीब धुन बज रही थी मसाज की दुकान के सामने खूब सारी गाड़ियां खड़ी थी शायद आज मुझे लगा कि कोई खास दिन था गांधीजी की मूर्ति को बल्बों से सजाया गया और सामने कोई नेता अपना भाषण दे रहा था उस भाषण के दौरान काफी भीड़ थी लोगों का जमावड़ा था उस जगह सब और जब मैं उस मूर्ति के पास बैठा था जहां पर अक्सर रमाबाई बैठा करती थी नेताजी अपने भाषण में गांधीजी नेहरू जी की पढ़ाई कर रहे थे वहीं पर अंबेडकर की भी बात कर रहे थे लेकिन अब यह हिंदुस्तान मैं गांधी का था अंबेडकर का था और ना ही नेहरू का था क्योंकि यहां पर कितनी औरतें कितनी लड़कियां कितने गरीब मरते हैं बस कुछ समय बीता था दलाल एक कार वाले को पटाने की कोशिश कर रहा था पहली बार मुझे ख्याल आया कि मैं किस दुनिया में हूं किसलिए इस दुनिया को ऐसा बना दिया क्या इन राजनेताओं ने पता नहीं कैसे बना दिया इसे ऐसा ही छोड़ कर अपनी आंखें बंद कर लूं चारों तरफ दलालों की भीड़ है यह भी दलालों की दुनिया में आ गए हैं दलालों की दुनिया में शामिल हो जाऊं मुझे लगा ऐसा मैं हरगिज़ नहीं कर सकता मैं आंखें बंद नहीं कर सकता मैं बेकार बेघर बेसहारा ही सही फिर दिल वालों की दुनिया में हरगिज़ नहीं आऊंगा नौकरी मिले या ना मिले मुझे इसका कोई डर नहीं रमा मर जाएगी कोई बात नहीं रास्ता मुझे मालूम नहीं इसकी भी मुझे कोई बात नहीं लेकिन इस संसार में कितनी रमाबाई पैदा होती है पूनमा भाइयों को रोकने के लिए अपनी कलम चलाना चाहता हूं इन सबके लिए मेरे अंदर प्यार की जगह नहीं है सिर्फ और सिर्फ नफरत है इन दलालों के लिए इन पूंजीपतियों के लिए केवल नफरत है रात भर अनेक आवाज आती है रात भर बाजे बजते रहते हैं और दोस्ती रहती है रात भर बतिया चलती रहती है पूरी रात सो नहीं सकता या सो गया और सपने देखता रहता रमाबाई मर गई बाजे बजते रहे बतिया चमकती रहे हर बार मजाक कर उठ बैठता था के लिए मुझे पूरी रात सपने में रमाबाई पता नहीं कितनी बार मरती हुई दिखाई दी क्या रमा मर जाएगी मुझे अब यह क्या हाल रात को भी आने लगे रमा मरी नहीं थी जिंदा थी मैं सबसे पहले अस्पताल पहुंचा तो बोतल को हटा दिया था नरेश ने कहा इसे चाय कॉफी दूध लाकर दे दे यह पी लेगी मैं एक गिलास में चाय लेकर उसके पास आया और बेटा उसने आंखें खोली मैंने चम्मच से चाहती वह चुपचाप चाय पीती रही मैंने लगा कि अब उसकी आंखें बंद हो गई है मैंने बुरी नजर से पूछा और कहा अब मैं इसे ले जाऊं तो मेरे कहने से पहले ही बड़ी नर्स ने कह दिया कि हां आप इसे ले जाएं और अपनी जगह खाली कर दें आपातकालीन मैं रख लिया था अब उसकी जान को कोई खतरा नहीं है आप ड्यूटी रूम में उसे नहीं रखा जा सकता रमाबाई को ले जाने के लिए बड़े नरेश ने मना कर दिया लेकिन मैं माना नहीं मैंने कहा मैं जिसके घर ले जाऊंगा तब मैंने सोचा इसका घर कहा है वह मसाज की दुकान वह बस्ती वह इमारत वह दलाल वह विदेशी वह पूंजीपति कहां है इसका घर रमा को मैंने धीरे से खड़ा किया मैं उसे घसीटते घसीटते अस्पताल के दरवाजे तक ले आया और वह कहने लगी तू नहीं आता तो मैं मर जाती इस समय उसकी आंखें डूब गई थी मैं मैंने को कहा मैं मोहब्बत नहीं कर सकता मैं उस टाइप का आदमी नहीं हूं इतनी सुनते ही रमा की आंखें नम हो गई और रमा इस दुनिया से चली गई पता नहीं कितने रमा बाई हर रोज मरती है और हर रोज अपना जिस्म बेचती है रोटी के लिए गरीबी को मिटाने के लिए यह एक सवाल था और यह सवाल ही रहेगा मुझे लगता है इस संसार में इसका उत्तर किसी के पास नहीं है ऐसी ऐसी रमाबाई हर रोज पैदा होती हैं हर रोज मरती है अपनी गरीबी की वजह से अपनी रोजी रोटी की वजह से और अंत में उनको यह काम करना पड़ता है अपना पेट पालने के लिए पता नहीं कब राजा रमाबाई जैसी लड़कियों को इंसाफ मिलेगा यह सवाल है इस पूरे हिंदुस्तान और इस मिया के हर इंसा इंसान के लिए यह सवाल है क्या है इसका उत्तर ।
खान मनजीत भावड़िया मजीद
सोनीपत