कहानी पत्थर की
सुनता हूँ तुमको।
बना कैसे ये पत्थर
जरा तुम सुन लो।
नरम नरम मिट्टी और
रेत से बना हूँ में।
जो खेतो में और नदी के
किनारे फैली रहती थी।
और सभी के काम में
बहुत आती थी सदा।।
परन्तु खुदगरजो ने
मुझ पत्थर बना दिया।
न जो सोचता है और न
पिघलता है किसी पर।
बस अपनी कठोरता के
कारण खड़ा रहता है।
और टूटकर भी अकड़
इसकी कम नहीं होती।।
बहुत सहा है दर्द को
और पीया है गमों को।
तभी जाकर ये
बन गया एक पत्थर।
न जो हंसता है और
न ही रोता है कभी।
और हिमालय की तरह
अकड़कर खड़ा रहता है।।
बड़ी अजब कहानी है
इस पत्थर की।
कोई इसको तराश कर
बना देते है भगवान।
और कोई इस पत्थर को
लगा देता है कब्रो पर।
और पूजे जाते है दोनों
अपने अपने अंदाज से।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)