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मुझमें तू हिन्दुस्तान देख
हूँ कितना परेशान देख।
हैं योजनाएँ तो कई मगर
अब तक हूँ अंजान देख ।
तीन ज़रूरतें हैं मेरी बस
रोटी ,कपड़ा,मकान देख।
हस्ती मेरी समझ न पाया
हूँ मैं कितना नादान देख।
छ्ला गया हर दौर में मैं
हुआ किसे नूकसान देख ।
तू भी अजय करेगा क्या
जाके अपनी दुकान देख।
-अजय प्रसाद
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