मन में उलझन
ज़हन में
विचारों का सैलाब
करवट लेते
तकिया सुधारते
गुज़री रात
आँखे कड़वाती
नींद कोसों दूर
ज़हन में
विचार का सैलाब
थमता नहीं
आख़िर ये हलचल
किस बात की
ये उलझन कैसी
क्या
अपने ही घर में
किसी अजनबी
की घुस पैठ की
आहट
जिसे अपनाया
ह्रदय में बसाया
उसका यूँ
हमारे प्रेम को
शक से देखना
बरकत और तरक्की के
लिए दिए तोफ़े
को यूँ ठुकराना
तुम्हारी एसी बेरुख़ी
छलनी कर गयी
मेरे कोमल मन को
कल कल बहते
झरने की मधुर ध्वनि
सहसा बदल गयी
सूखे रेगिस्तान की
सनसनाती गर्म हवाओं में
दुख तो इस बात का
की उसकी नासमझी
उसे हमसे इतनी दूर
कर रही है जहां से
हमारा वापस आना
शायद नामुमकिन हो
अपनों को अपने से
दूर होते देख ही
उपजी है
मन में उलझन
उमड़ा है
विचारों का सैलाब
उड़ गई है
आँखों की नीद
गुदगुदा तकिया भी
चुभ रहा है शूल सा
उसे बेख़ौफ़ सोता देख
पूछती हूँ ख़ुद से
क्यूँ सोती नहीं
जगती है रात भर
छोड़ अब ये जग भलाई
मौन रह कर
शांत मन से
सोच अपने आप की
मोड़ दे विचारों के
सैलाब का रुख़
कर वही बस
जो आह्लाद दे
आनंद दे
बस कर वही
जो मन भाए
डॉक्टर स्मिता मिश्रा, दिल्ली
परिचय
डॉक्टर स्मिता मिस्र
M.A B.ed ,M.B.A , Phd
सम्पादक प्रकाशक ज्ञान वाणी
प्रकाशन रचना संसार
आइ . पी . फ़ाउंडेशन – ट्रस्टी
ए. आइ . पी. एस्ट्रो – डायरेक्टर
बी कात्यायन पब्लिकेशन – डायरेक्टर
बबल बड प्राइवेट लिमिटेड – डायरेक्टर
एस्ट्रो ई शॉप – डायरेक्टर
एविस ट्रेडर – को पार्टनर
नव युवक दल- मार्ग दर्शक मंडल अध्यक्षता
फ़ाइव मरकेटर्स – डरेक्टर
डिस्कस इंडिया – चीफ़ एडिटर
रुचि – हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार , कविता कहानी लेखन , और पढ़ना ।