ए ! जिंदगी तू भी कच्ची है,
पेंसिल की तरह छोटी होती जा रही।
रबड़ भी हर समय तुझको हमेशा,
पल पल घिसती है जा रही ।।
मत कर गुबान इस जिंदगी का,
ये मुस्टकिल नहीं आर्जी मिली तुझको।
कर इस्तेमाल इसका दूसरों के लिए,
यह पल पल कम होती हैं जा रही।।
चल रहा है दौर कोरोना का
जिंदगी कोरोना से लड़ रही।
लगे हैं मौत के अंबार हर जगह,
ये जिंदगी अब तेरी सड़ रही।।
नहीं भरोसा है इस जिंदगी का,
यह सिमटती है अब जा रही।
कर इस्तेमाल इंसानियत के लिए,
इंसानियत भी कम होती जा रही।
ये जिंदगी है पानी का बुलबुला,
बुलबुले की तरह है जी रही।
मौत अब है बहुत ही प्यासी,
पानी की तरह इसे पी रही।।
मौत अब है हर दरवाजे पर,
हर दरवाजे को खटखटा रही।
कब तक दरवाजा नहीं खोलोगे ,
वह तो खाने के लिए छटपटा रही।
बता रहा हैं रस्तोगी सभी से,
जिंदगी मौत से है बोल रही।
दो माह का बख्त दे दो मुझे
फिर दरवाजे मै हूं खोल रही।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम