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अनगिनत कविताएं लिख रहा हूँ
हर तरफ शोर मचता है
आलोचना का शिकार होना पड़ता है
वाह वाही भी खूब मिलती है
लेकिन
कमियां ज्यादा निकाली जाती है
ताल,लय,छंंद, मात्राओंं से परे….
लेकिन.. प्रकट करता हूँ..
हृदय स्पंंदित होता है…
भाव है बस मेरे पास… यूूं ही उमड़ पड़ते है
किसी आंधी के तेज झौंके की तरह…
बिखेर देता हूँ…
कागज़ के कैनवास पर …
आज करूंगा समीक्षा मैं भी…औरों की तरह
बांंध भरकर निकालूंगा…
गलतियों के पहाड़…
शून्य में भेज दूूंगा….
कुछ समय की खातिर….जहां बादलों से टकराकर
बारिश की बूूंंदों संग …घुल जायेंगे
कविता के सभी विकार…
शब्द ब्रह्म होते है….सुना है मैनेें…
फिर मेरी कविता की कूक….
कर्कश क्योंं लगती है….?
सिर्फ इसलिए… क्योंकि… मैं नहीं हूँ…
एक स्थापित नाम….
घोर अंधेरे में समा जाती है…. कविताएं…
उस बूढी़ मां को, उस तैरते बचपन को
हाड़ मांस के पुतले को…
आशा, निराशा,जीवन मरण को…
उस मशाल को….
उस बरगद, नीम,जामुन के पेेेड़ को…
रंगोली.. को…तीज त्योंहारों को….
रिश्तों को…
और न जाने
क्या क्या पिरोया है…?
गूंंथा है माला में…
वो गुड़हल केे फूल….मिट्टी की खुशबू..
बारिश की फुुहार….
रिमझिम रिमझिम…
वो बैलों केे गलोंं के घुुंघरूं….
रंभाती गायेें….
मेरी कविताओं में गांव की पगडंडियां ही तो है…
नदियां भी है, हैैं झरने…
और ताल तलैया….
बाग बगीचे… झुरमुट…
तंदूर की रोटियोंं…..मेें….
कलम की ताकत दिखती नहीं है…
लेकिन… बेेपरवाह….
आनंंद के साथ….
दीवाली, होली….और लिख लेता हूँ….
सरहद पार का वह गांव कैसा है ?
स्वप्न मेें ही बांध देता हूँ….
अनगिनत कविताओं को…..
लोगों का काम….कहना है… कहते रहे…
मैं तो लिखता हूँँ भाव
मात्राओं मेेंं बंधकर…
बंधन में…. कवि लिखेेगा तो….
क्या पैदा हो पायेगा ?
पैनापन….
क्लिष्ट शब्दों के बोझ से भी… मैं लादना नहीं चाहता….
मैं नहीं चाहता कि …
पाठक वर्ग….
किसी कविता को पढने बैैैठे तो….
शब्दकोश को पहले चाटे…..
विचार जैसे मंंडरायेंगे …
वैसे लिखूूंगा….
लिखूंगा कंगूरा…. और
लिखूंगा मां के कंगन…..
आंसू लिखूूंगा….लिखूूंगा लहू….
काग़ज़ की कश्तियांं लिखूंगा….
नजरअंदाज करते हुए….
हर किसी को…..
क्योंकि मेरा काम लिखना है….
किसान… मजदूर… मजबूर…. मेहनत…
आशा निराशा….
सब लिखूंगा….
अर्थ नहीं निकालूूंगा….
न ही करूंगा कोई समीक्षा….
क्योंकि समीक्षा….करना…
मेरा कर्म नहीं है….
मेरा कर्म है…..
लिखना….
मंदिर लिखूंगा, लिखूंगा मस्जिद….
राम लिखूंगा…. लिखूंगा
रहीम
अब…विचार कर रहा हूँ…
समीक्षा की भी….
समीक्षा करने मेंं व्यस्त हो जायेंगे….
कविवर….
मैं नहीं हूूंं कवि….
मैं तो हूं….
एक परिंदा….
कविता के साथ…जीने वाला परिंदा…
अब आप लगातेे रहेे….
कयास….
मुझे फर्क नहीं पड़ता है….।
#सुनील कुमार
परिचय :सुनील कुमार लेखन के क्षेत्र में धार्विक नमन नाम से जाने जाते हैं। आप वर्तमान में डिब्रूगढ़ (असम)में हैं,जबकि मूल निवास झुन्झुनूं (राजस्थान) है। शैक्षणिक योग्यता एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य,समाज शास्त्र,)सहित एम.एड., एमफिल और बीजेएमसी भी है
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