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सुबह जब सुधीर की नींद खुलती है तो देखता है कि वो सुनसान जगह में पड़ा हुआ है। उसके आस-पास दूर तक कोई गांव नहीं दिखाई देता है। वो अपनी जेब में हाथ डालता है और एक पत्र निकालकर पढ़ने लगता है,जिसमें लिखा होता है-
‘प्रिय सुधीर,
मुझे माफ कर दो। ये जो हुआ इसमें मेरा हाथ था तुम अब पूरी तरह सुरक्षित हो,और मेरी तरफ से अब कोई खतरा नहीं है। मैंने बस तुम्हारा कीमती सामान लिया है’…….
तुम्हारी सोनम।
पत्र पढ़ने के बाद सुधीर के होंठ सूख जाते हैं,उसे प्यास लगी होती है और वो पानी की तलाश में चलने लगता है। अभी कुछ ही दूर चला होता है कि,वहां झरना दिखाई देता है। वो जल पीकर प्यार बुझाता है, और आगे चलने लगता है। थोड़ा-सा ही आगे बढ़ा होता है कि देखता है,कुछ बच्चे जो जानवर चरा रहे होते हैं,उसे बड़े अचम्भित होकर देखते है। उनमें से कुछ लड़के गांव की ओर भागने लगते है। ये सारा दृश्य देखकर सुधीर की हिम्मत नहीं करती कि वो शहर का राह पूछ सके। वो चुपचाप बैठ जाता है और देखता है कि, सैकड़ों लोग उसकी ओर भागकर आ रहे हैं।
लोग नजदीक आ कर कहते हैं-सत्यम बाबू आप! आप तो………! आपकी ये हालत कैसे हो गई! आप हमारे साथ चलो। ये सब सुधीर को कुछ समझ नहीं आ रहा होता है तो वो कहता है कि,-मेरा नाम सुधीर है, मैं कोई सत्यम नहीं हूँ।
सब आपस में बात करने लगते हैं और कहते हैं कि,शायद इनकी याददाश्त चली गई है। वो सुधीर को पकड़कर चलने लगते हैं। सुधीर पहले जाना नहीं चाहता,मगर ये सोचकर चल देता है कि,मुझे तो यहां कुछ पता नहीं हैं। इनके साथ चलना ही बेहतर होगा,और चलने लगता है। कुछ देर बाद गांव आ जाता है। सुधीर को बरामदे में बैठाया जाता है,और पानी-चाय लाकर पिलाई जाती है। सुधीर को समझ में आता है कि,कहीं मेरी शक्ल किसी और से तो नहीं मिलती है,जो मेरी इतनी खिदमत की जा रही है। खैर सुधीर खाना खाता है,तभी देखता है कि बाहर भीड़ बढ़ रही है, और सब उसे देखकर आश्चर्यचकित हैं। सब उसे तुरन्त ले चलने की बात करने लगते हैं। सुधीर कहता है कि-मुझे कहाँ ले जाओगे तुम लोग! तो सभी एक स्वर में कहते हैं कि,घर..बूढ़े मां-बाप के पास। उन पर अापके चचेरे भाई ने बहुत अत्याचार किया,जब से आप लापता हो। खैर अब आप आ गए हैं तो हमें आपको वहां पहुंचाना होगा, कल सुबह से पहले कहीं आपका चचेरा भाई आपकी हवेली को जबरन नाम न करवा ले! ये सुनकर सुधीर चल देता है।
काफी लम्बी यात्रा के बाद वो लोग सुधीर को लेकर दूसरे गांव पहुंच जाते हैं। सुधीर के पीछे धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगती है। हवेली पर पहुंचकर सुधीर देखता है कि,मेरा चित्र दिवाल पर टंगा है, उस पर माला पहनाई हुई है। ये देख वो चकित रह जाता है, और बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ जाता है।
गांव वाले पूछकर बताते हैं कि,तुम्हारे मां-बाप तुम्हारी अर्थियों का विसर्जन करने वाराणसी गए हुए हैं और तुम्हारी पूरी जायदाद तुम्हारे चचेरे भाई माधव ने अपने नाम करवाकर पंचायत में तुम्हारे मां-बाप की सेवा की जिम्मेदारी ली है। इतना कहने के बाद उनकी नौकरानी(जो वर्षो से हवेली पर काम करती थी) आकर सुधीर को गले से लगा लेती है।कहती है-ये सब कैसे हुआ बेटा?चलो कोई बात नहीं,अब सब ठीक हो जाएगा!। सभी लोग लौटकर चले जाते हैं और सुधीर वहीं रह जाता है।
नौकरानी सुधीर को नाश्ता लाकर देती है,और कहती है-इक बात पूछूं सत्यम बाबू,सही-सही बताओ कौन हो तुम ? यहां क्यूं आए हो? कहाँ रहते हो? किसने भेजा है? इन सब प्रश्नों को सुनकर सुधीर नजरें उठाकर नौकरानी से मिलाता है,और कहता हैं कि मैं सही में सत्यम नहीं हूँ। मुझे ये लोग जबरन सत्यम समझ पकड़ लाए हैं,मेरा यहां से कोई वास्ता नहीं हैं। मैं घर जाना चाहता हूँ, उदयपुर में रहता हूँ।
नौकरानी कहती है-जब तुम उदयपुर में रहते हो तो यहां क्या करने आए थे?वो कहता है कि-मेरे को मेरी प्रेमिका प्रेम जाल में फंसाकर यहां ले आई, मुझे लूटकर सुनसान जगह पर डाल दिया था । सुधीर कहता है कि-मैं पेशे से व्यापारी हूँ। बचपन में ही मेरे मां-बाप बिछड़ गए थे किसी मेलें में। फिर मुझे एक दम्पति ने अपनाकर शिक्षा और पालन-पोषण किया। ये सुनते ही नौकरानी हंस पड़ती हैं और कहती है कि,पहली बार शिकार शिकारी के पास चलकर आया है। मेले में तुम ही थे जिसे खोने के बाद हमने काफी खोजा,लेकिन नहीं मिले। खैर,अब मिल गए हो। तुम्हारे बाबा नें पुश्तैनी जमीन को तुम दोनों के नाम कर वारिस बनाया था,बाकी एक हिस्सा तुम्हारे मां-बाप को दिया था! उसमें से दो हिस्से तो मिल गए हैं हमको,अब तीसरा तुम दोगे। वो कहता है- हरगिज नहीं, मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। वो कहती है -तुम्हारे मां-बाप कोई वाराणसी नहीं गए हैं,यही हैं;तभी वो माधव को आवाज देती है और, माधव मां-बाप को लेकर आ जाता है। जमीन के कागजात लाकर सुधीर की और करके कहता है- दस्तखत कर दो नहीं तो ये दोनों आज गए संसार से। सुधीर के मां-बाप उसे दस्तखत करने से रोकते हैं,फिर भी सुधीर दस्तखत कर देता है।
तभी माधव और नौकरानी (माधव की मां) जोर-जोर से हंसने लगते हैं और कहते हैं-आज तक मुझे सब नौकरानी कहते थे,मगर कल से सब करोड़ों की मालकिन कहेंगें। ये तुम्हारे बुजुर्गों की गलती थी,जो तुम लोगों ने भुगती। अब तुम लोग मेरे कोई काम के नहीं हो। वो माधव को इशारा करती है, तो माधव बन्दूक चला देता है। एक गोली सुधीर की मां को लग जाती है, और दूसरी उसके पिता को..फिर सुधीर बन्दूक छीनने का प्रयास करता है,तो गोली माधव की मां को लग जाती है और माधव बन्दूक फेंककर रोने लगता है।वो पुनः बन्दूक उठाकर खुद पर चलाने का प्रयास करता है, तभी सुधीर उसे रोककर बन्दूक अलग फेंक झकझोरता है। फिर माधव रो-रोकर सुधीर से माफी माँगता है,और दोनों गले मिलकर रोने लगते हैं।
#ललित सिंह
परिचय :ललित सिंह रायबरेली (उत्तरप्रदेश) में रहते हैं l आप वर्तमान में बीएससी में पढ़ने के साथ ही लेखन भी कर रहे हैंl आपको श्रृंगार विधा में लिखना अधिक पसंद है l स्थानीय पत्रिकाओं में आपकी कुछ रचना छपी है l
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सुन्दर कहानी
जी आभार आपका