माँ को
तड़पता
सिसकता
कराहता देख
मन विचलित
हो जाता है,
आँखों में आंसू नहीं
मन तड़प जाता है।
मां की जिन्दगी के
अंतिम पड़ाव का
ये हाल देखा
नहीं जाता है,
दर्द दिल का
सहा नहीं जाता है।
अन्न जल मोह
माया सभी तो
त्याग दिया है,
सांसों ने जैसे
फिर से जकड़
लिया है।
मृत्यु के ऐसे
अन्त ने मन को
झकझोरा है,
इस समय न
कोई तेरा है
न मेरा है।
धन न दौलत
पति न बेटा,
रिश्ते न नाते
डाक्टर न दवा
न कोई नेता
कोई भी कुछ
कर पाने में
असमर्थ असहाय
निरुत्तर हो गए हैं।
वाह रे ईश्वर,
वाह रे जीवन का अन्त
वह विहंगम दृश्य देख
जैसे सभी सो गए हैं।
जिस मां ने
पाल-पोसकर
इतना सामर्थ
साहसी बनाया,
उस माँ को
इस हाल में देख
कुछ नहीं कर पाया।
अपने आपको असमर्थ
असहाय पाया,
जिस माँ के
सौ वर्ष जीने की
दुआ माँगता था,
उस माँ का अन्त
सौ मिनिट देखना
मुश्किल था।
हे ईश्वर अब तो,
इस करूणामयी
माँ का दुःख
हरण कर लीजिए
हफ्तों से तड़पती
ममतामयी माँ का
अन्त कीजिए।
और हमेशा के लिए
इस तड़पती
जिन्दगी से
मुक्ति दीजिए।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।