पड़ गई सारी उल्टी चाल,किया दिल्ली ने गुरु घंटाल,
हार गए यार केजरीवाल,बनाया ईवीएम को ढाल..
सत्तर में से सड़सठ लाए,चल गया झाडू,कूचा,
सोच रहे थे जीत लिया है हिंदुस्तान समूचा..
अब उतरी केंचुली की खाल,ले गया फिरकी कैसे काल..
पड़ गयी सारी उल्टी चाल ——।
सबको डरा रहे थे डेंगू से होगा इन्फेक्शन,
दिल्ली ने दे डाला चिकनगुनिया का इंजेक्शन..
गल पाई न फ़िर से दाल,एमसीडी जी का जंजाल
पड़ गई सारी उल्टी चाल ——-।
दो सालों से देते आए उल्टे-सीधे भाषण,
कोई मंत्री पत्नी पीटे,कोई बनाए राशन..
किया जनता ने अजब कमाल,गाल कर डाले दोनों लाल..
पड़ गयी सारी उल्टी चाल —–।
आम आदमी शब्द बना डाला है यारों गाली,
लाखों के थे चाय समोसे,नौ हजार की थाली..
मचा होटल से नया बवाल,पब्लिक ने फेंका तत्काल,
पड़ गई सारी उल्टी चाल——।
इंसानों का इंसानों से होगा भाई चारा,
इस नारे के बदले में था देशद्रोह का नारा..
दिल्ली ने बदली सुर ताल,ठोंका खूब सलामी-लाल,
पड़ गई सारी उल्टी चाल —-।
अन्ना के संग जिस मुद्दे पर बजा रहे थे ढोल,
आज वही तो इस जनता ने माँग लिया रीकॉल..
बिछाया था जो मिलकर जाल,उसी में फँस गए प्यारे लाल..
पड़ गई सारी उल्टी चाल —–।।
#देवेन्द्र प्रताप सिंह ‘आग’
परिचय : युवा कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह ‘आग’ ग्राम जहानाबाद(जिला-इटावा)उत्तर प्रदेश में रहते हैं।