प्राचीन समय से ही हम भगवान को रूपए-पैसे चढ़ाते आ रहे हैं। पहले उसका रुप बहुत छोटा था, पर आज उसका बहुत विस्तृत होता जा रहा है। हमारी मान्यता है कि,कण-कण में भगवान है, ईश्वर एक अवर्णनीय शक्ति है, जिसे हम महसूस करते हैं। प्रकृति के रुप में उसको देखते हैं। प्रकृति का अनुशासन हमें चमत्कृत कर देता है। इस प्रकृति का संचालन भी उस अतुलनीय शक्ति द्वारा ही होता है,इसलिए हम वृक्षों की पूजा करते हैं, नदियों की पूजा करते हैं,पर्वत और सागर की पूजा करते हैं।
सूरज और चाँद की भी ।पूजा करते हैं क्योंकि, ये सब सिर्फ हमें देते हैं बदले में कुछ नहीं लेते हैं। वास्तव में यही भगवान का रुप है। भगवान हमें सिर्फ देता है,बदले में कुछ नहीं मांगता है। अगर वह कुछ मांगता है तो यह कि हम सुख-दुख दोनों में उसको स्मरण करें। कभी भी उसकी शक्ति पर अविश्वास न करें, उसके द्वारा बनाए गए हर जीव जंतु की रक्षा करें, सबको समान समझें और प्राणी मात्र के प्रति प्रेम की भावना रखें।
अब प्रश्न यह उठता है कि,मंदिर में रूपया-पैसा किसे और क्यों चढ़ाएं? अगर आप कहते हैं कि भगवान को चढ़ाएं,तो मैं कहूंगी कि जो हमें सब कुछ देता है उसे हम क्या दे सकते हैं। उसके समक्ष हमारी औकात ही क्या है।
हम सिर्फ याचक हैं, वह महादानी है। अपने विशाल हाथों द्वारा एक साथ संपूर्ण विश्व की रक्षा कर सकता है। हर व्यक्ति उसके इशारे पर चलता है। हम सब कठपुतली हैं,उसकी डोर उस परम शक्ति के हाथों में हैं। वह सर्व शक्तिमान हैं तो हम उसे क्या दे सकते हैं।
अब उत्तर यह निकलता है कि,हम रूपया पैसा,अनाज,कपड़ा,फल,मिठाई आदि जिसको हम खाते हैं या प्रयोग करते हैं उसको पहले हम उस परम शक्ति को अर्पित करके धन्यवाद ज्ञापन करते हैं कि हे प्रभु ऐसे ही कृपा बनाए रखना। हम आरती में भी गाते हैं-तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।
परम शक्ति को अर्पित करके ग्रहण करना तो सौ प्रतिशत उचित है,पर उसके नाम पर लाखों रूपए मंदिर में दान करना कहां तक उचित है। मंदिर के रखरखाव के लिए कुछ राशि अवश्य ही दान पेटी में डालना चाहिए,पर आज कुछ धनी वर्ग के लोग लाखों-करोड़ों के सोने-चांदी के गहने व लाखों-करोड़ों रूपए भी मंदिर में चढ़ाते हैं। उसका क्या औचित्य हो सकता है।
ईश्वर सिर्फ आपकी नीयत व श्रद्धा देखता है। मेरे विचार से इन करोड़ों रूपए का उपयोग गरीबों की स्थिति सुधारने में करना चाहिए। उनके रहने लिए झोपड़ी बना दी जाए, उनके लिए साधारण भोजन की व्यवस्था कर दी जाए। धूप,हवा,पानी से बचाने के लिए उन्हें साधारण वस्त्र प्रदान किए जाएं
तो वह परम शक्ति अधिक प्रसन्न होगी क्योंकि,हर प्राणी के हृदय में उसी परमात्मा का रुप आत्मा के रूप में निवास करता है।
अगर हम उस परम शक्ति को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो उसके द्वारा निर्मित हर वस्तु और व्यक्ति को खुश रखकर कर सकते हैं। उसके द्वारा निर्मित नदियों की रक्षा कर सकते हैं। उसके द्वारा निर्मित समुद्र,पर्वत,पेड़-पौधे,जंगल,जीव-जंतु आदि की रक्षा कर सकते हैं। किसी की आत्मा को तृप्त करना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य होता है,क्योंकि उस आत्मा में हमारा ईश्वर विराजमान है।
आज कुछ मंदिरों में अरबों रुपए का चढ़ावा आता है। मंदिर भी बहुत आलीशान और सोने-चांदी से बने होते हैं। हम उस मंदिर में जाते हैं और पंडितों के नियमानुसार हजारों रुपए चढ़ा देते हैं, पर मंदिर के बाहर बैठे दीन-हीन को दो रुपए देने से भी कतराते हैं। क्या भगवान इससे प्रसन्न होगा, मेरी समझ में कदापि नहीं।
भगवान कब कहता है मुझे रुपए-पैसे चढ़ाओ। वह हमारे कर्म देखता है। दीन-दुखियों को रक्षा करना,उनको ऊपर उठाना,उनको सम्मान देना ही सत्कर्म है। भगवान अवश्य ही इससे प्रसन्न होंगे।
हम बिना सोचे-समझे मंदिरों में पैसा व्यर्थ न करें। उसकी वास्तविकता व वैज्ञानिकता को समझें। आज जितना रुपया मंदिरों में बंद पड़ा है,उससे निर्धनों की बड़ी-बड़ी बस्तियां बन सकती हैं। देश व समाज का कल्याण हो सकता है,पर कोई करता नहीं है, तो क्यों न हम मंदिर में अधिक न चढ़ाकर अपने हाथों से यह शुभ कार्य करें। अपने माता-पिता की सेवा करें,उनकी देखभाल में खर्च करें, क्योंकि माता-पिता ही भगवान का रूप हैं ।
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि, मंदिर में पैसा किसको और क्यों चढ़ाएं..। अगर अब भी न समझे तो बहुत देर हो जाएगी। जीवन सिर्फ कुछ पलों का है। पता नहीं,कौन-सा पल आखिरी है। अब फैसला आपके हाथों में है,क्योंकि सबके अपने अपने विचार हैं,अपनी-अपनी सोच है।
#निशा गुप्ता
परिचय : श्रीमती निशा गुप्ता का जन्म 1963 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुआ है। आपके पति एल.पी. गुप्ता के व्यवसाय की वजह से आपका कर्म स्थान तिनसुकिया(असम) ही है,वैसे आपका मध्यप्रदेश से भी रिश्ता है। आपने एम.ए( हिन्दी,समाजशास्त्र व दर्शनशास्त्र) के साथ ही बी.एड (रूहेलखंड यूनिवर्सिटी,बरेली) भी किया है। आप वरिष्ठ अध्यापिका के रुप में विवेकानंद केन्द्र विद्यालय (लाईपुली, तिनसुकिया) में कार्यरत होकर शिक्षण कार्य में 30 वर्ष से हैं। लेखन का आपको लगभग 30 वर्ष का अनुभव सभी विधाओं में है। आपके 6 काव्य संग्रह(भाव गुल्म,शब्दों का आईना,आगाज,जुनून आदि) के साथ ही 14 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। काव्य संग्रह ‘मुक्त हृदय’ का संपादन भी किया है। 2 बाल उपन्यास (जादूगरनी हलकारा और जादुई शीश महल ),1 शिशु गीत,कहानी संग्रह ‘पगली’,दो सांझा काव्य संग्रह(‘काव्य अमृत’,’पुष्प गंधा’) भी आपके नाम हैं। 1992 से विवेकानंद केन्द्र (कन्याकुमारी) से समाजसेवा के काम में भी जुड़ी हैं। मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से आपको शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया गया था। आप नारायणी साहित्य अकादमी की राष्ट्रीय सचिव, आगमन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था की असम प्रभारी और राष्ट्रीय स्तर के एनजीओ की असम राज्य की चेयरमैन भी हैं। रामपुर,डिब्रुगढ़ तथा दिल्ली आकाशवाणी से आपके कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। देशभर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं, लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं।आपको वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव(इंडोनेशिया और मलेशिया) में ‘साहित्य वैभव अवार्ड’ और दिल्ली से ‘काव्य अमृत’ भी मिला है।