जीवन में रिश्ते,
बनते हैं बिगड़ते हैं
सभी आपस में
लड़ते हैं ,झगड़ते हैं,
फिर मिलते हैं..
रिश्ते ऐसे ही बनते हैं।
लड़ना,झगड़ना,मिलना,
रिश्तों में चलता रहता है..
कभी खुशियां,कभी
गम मिलते रहते हैं
सास-बहू के झगड़े
होते हैं जग जाहिर हैं..
एक ही घर में होते,
फिर भी घर में एक
साथ में ही रहते हैं।
पति-पत्नी जो जीवन
भर के साथी हैं,
कभी-कभी उनके भी
मन-मुटाव झगड़े होते हैं..
एक-दो दिन मुँह फुलाते हैं
फिर आपस में मिल जाते हैं
जीवन की गाड़ी को
आग बढ़ाते हैं।
परिवार में बच्चे होते हैं,
माता-पिता को अपनी
जिद पर झुकाते हैं,
फिर भी उनकी जिद
को पूरा करते हैं..
गुस्सा करते हैं,डांटते हैं,
ज्यादा गुस्सा आने पर
एक-दो थप्पड़ मारते हैं
बच्चे हैं उनकी गलती
को माफ करते रहते हैं..
फिर भी बच्चे माता पिता
से ही प्यार करते हैं।
रूठते हैं मनाते हैं,
फिर भी प्यार में कोई
कमी नहीं करते हैं..
मोहल्ला-पड़ोस में भी
मेल-मिलाप रखते हैं,
कभी-कभी छोटी-सी
बात पर लड़ते झगड़ते हैं,
आपस में बात नहीं करते
फिर भी बात करने को
आतुर रहते हैं..
जीवन में रिश्ते ऐसे ही,
बनते हैं, बिगड़ते हैं..
फिर भी आपस में मिलते हैं,
यही तो जीवन के रिश्ते हैं।।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।