हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है

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मैं नहीं जानती मेरा ये आलेख किसी को पसन्द आएगा भी या नहीं, कुछ तो शायद इसे बिना पढ़े ही पन्ने पलट देंगे, क्योंकि कौन इस व्यस्त जीवन मे इतना लंबा भाषण सुने…। अधिकाँश महिलाएँ पारिवारिक कहानियाँ, रोमांटिक कविताएं या दुःखी किस्सों को चांव से पढ़ती है । एक समय था जब बेटियों को इतना पढ़ा दो कि ससुराल से मायके चिठ्ठी पत्री लिख -बांच सके । फिर बदलते फैशन के साथ समाज का ऊपरी चोला आधुनिक हो गया है । सनद रहे ऊपरी चोला कहा है । अब सभी को पढ़ी लिखी बहू चाहिए । माता पिता पर भी बेटियों को पढ़ाने का दबाव बना है ताकि उन्हें अच्छा घर और वर मिल सके । आर्थिक सहारा मिले ये सोचकर कई परिवारों की शर्त नौकरी वाली बहू की भी होती है । बेटियों को इसलिए शिक्षित किया जा रहा है कि शादी के बाद खुदा न खास्ता कोई आपदा पड़ी तो बिना पति किसी पर आश्रित न रहना पड़े । पढ़ी लिखी लड़की होने पर माता पिता को दान दहेज भी कम देना होगा । लड़को को पढ़ी लिखी बीवी चाहिए ताकि होने वाले बच्चों को वो पढ़ा सके । लड़की की पढ़ाई का अंतिम उद्देश्य यही है कि विपरीत समय में शिक्षा हथियार बने , पिता का दहेज बोझ कम हो , पति के लिए अतिरिक्त वित्तीय सहारा और अनुकूल समय में बच्चों के होमवर्क करा सके ।

बेटियाँ अपने सर्टिफिकेट्स और नौकरी के बल पर ससुराल पहुँचती है । 8 से 9 घण्टे की नौकरी के बाद थक कर चूर लौटने पर क्या उसे भी पुरुषों की तरह डायनिंग टेबल पर परसी हुई थाली मिलती है ?? क्या कामकाजी औरतें डिनर खत्म करने के बाद जूठी थाली टेबल पर ही छोड़ गीले हाथ पोछते हुए टीवी के सामने बैठ जाती है ?? कामकाजी महिलाएँ निश्चित रूप से दोहरा बोझ झेलती है । आफिस में काम का दबाव और लौटने के बाद बिखरी गृहस्थी को समेटना । एक समय के बाद यदि पति की आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाए तो पत्नी का घर पर न रहना पति को असुविधाजनक लगने लगता है । तो उस पर दबाव बनाया जाता है कि “तुम्हे अब नौकरी करने की जरूरत नही है । मैं अच्छा खासा कमाता हूँ। तुम मजे से घर पर आराम करो । जब जरूरत थी तब तुमने कर लिया काम । ‘”
पत्नी को नौकरी की जरूरत है या नही इस निर्णय का अधिकार भी पति को होता है । लोग ये कैसे भूल जाते है कि एक इंसान रिश्तों में स्नेह रखने के बावजूद अपने निजी सफर में भी है ?? हो सकता है पत्नी को अपने कार्यक्षेत्र की चुनौतियाँ लुभाती हो , सर्वश्रेष्ठ करके दिखाने की लालसा उसे आकर्षित करती हो और खुद को साबित करने का प्रण उसमें ऊर्जा भरता हो ।

एक शिक्षित महिला अपनी रचनात्मकता , सम्भावनाओं , कौशल और रुचियों को समेट कर रसोई, त्यौहार और राशन तक ले आती है । ये हुनर वास्तव में औरत के पास है कि अपने शैक्षणिक सर्टिफिकेट्स , जॉब एक्सपिरेन्स सर्टिफिकेट जो उसके अतीत की गर्वीली जमापूंजी होते है को सलीके से फाइलिंग कर अलमारी में लॉक कर देती है । स्वयं को समझाती है कि बच्चों की सुविधा के लिए उसका घर पर रहना जरूरी है । अब उसके पति को वित्तीय मदद की जरूरत नही । गोया उसकी पूरी पढ़ाई , शिक्षा , सर्टिफिकेट सिर्फ एक पुरुष को “मदद चाहिए या मदद नही चाहिए” के लिए ही की गई थी ।

सोचिए अब उसके जीवन में क्या है ??? सुबह से रात तक घर सहेजना , रसोई के राशन की लिस्टिंग करना , वाशिंग मशीन लगाने से पहले पूरे घर में घूम घूम कर धोने के कपड़े ढूँढना , बाई के आने से पहले जूठे बर्तनों में पानी भरना ,चाय नाश्ता , टिफ़िन , फ्रिज व्यवस्थित करना । रोज घर से बाहर निकलने वालों को तैयारी करके देना , शाम काम से लौटने वालों को भीतर आते ही हाथों में चीजे थमाना । सबके काम करके देना का उसको संतोष भी होता है । अपने परिवार के लिए करने में भी एक प्रकार का सुकून है । अगर थोड़ा सम्पन्न परिवार है तो महिलाओं की महीने में दो चार किटी पार्टी हो जाती है । कितनी ही महिलाएँ है जो अपनी रुचियों और हुनर को घरेलू जिम्मेदारियों में भूला बैठी । ये सच है कि पुरुषों को भी नौकरी की जिम्मेदारी में बहुत कुछ त्यागना पड़ता है लेकिन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है । पुरुषों को अपनी मेहनत के अनुशंषा स्वरूप प्रमोशन, अप्रेजल , बोनस , सैलरी हाइक, बेस्ट परफॉर्मर अवार्ड मिलते है । मैं उनकी इन उपलब्धियों को पैसे के रूप में बिल्कुल नही तौल रही है लेकिन प्रोत्साहन के छोटे स्वरूप बताते है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे है , पिछली बार से और बेहतर हुए है । कार्यक्षेत्र की ये उपलब्धियाँ बेहतरी की स्वीकारोक्ति है , एक पायदान ऊपर का प्रमाण है । ऐसी पदोन्नत्तियाँ जीवन को हौसला और प्रेरणा देते है ।

जिन योग्य महिलाओं ने जिम्मेदारियों को देखते हुए घर पर रहने का फैसला लिया उनके जीवन का प्रेरक तत्व , प्रोत्साहना , जीवन ऊर्जा या सांत्वना पुरस्कार क्या है ??? कभी कभी उसके बनाए खाने की तारीफ , सलीके से सजाए घर पर प्रशंसा की एक नजर ही उसके जीवन के अप्रेजल है जिसे एक कम्प्लीमेंट के रूप में परिवार को समय समय पर देते रहना चाहिए । कई बार तो उसके त्याग को एक समय के बाद ” जॉब छोड़ना तुम्हारा निजी फैसला था” कह पल्ला झाड़ लिया जाता है या बरसों बाद जब वो इस दुनियादारी प्रतियोगिता में पिछड़ चुकी होती है तो सुनने मिलता है “तुम लाइफ में कुछ करती क्यो नही ?? घर से कुछ करो । ” ऐसा सुनकर महिलाएँ खुद को ठगा हुआ पाती है । कितनी ही बार बच्चे हीनताबोध में ला देते है “मम्मी आपको कुछ नही आता । मेरे दोस्त की मम्मी जॉब करती है इसलिए स्मार्टली चीजे हैंडल कर पाती है । ”

अधिकांश घरों में महिलाओं की रुचियों को अहमियत नही मिलती है क्योकि उनकी रुचियाँ आर्थिक दृष्टि से अनुत्पादक है । पुरुष बड़े अहंकार से अपने शौक बताते है । मुझे फोटोग्राफी का शौक है , मैं हर शाम चार घण्टे चेस खेलता हूँ , मुझे किताबें पढ़ने का जुनून है । किताब कितनी भी मोटी हो मैं पूरा किये बिना नही उठता । क्या उन्हें एक बार भी ख्याल आता है कि उनके घर में भी एक महिला है और उसकी भी कई रुचियाँ हो सकती है लेकिन अपनी रुचियों के हिस्से का वक्त वो कपड़े धोने , रसोई के इंतजाम , बच्चे को पढ़ाने , गृहस्थी की व्यवस्था , मेहमानों के आव भगत और डस्टिंग के लिए करती है । मध्यमवर्गी परिवारों में जहाँ हर काम के लिए बाई रखना सम्भव नही है वहाँ बच्चों की परीक्षा की वजह से वो अकेली ही पारिवारिक समारोह अटैंड नही पाती क्योकि फिर खाना कौन बनाएगा ?? सबके कपड़े कौन धोएगा ?? ये कड़वा सच है कि महिलाओं के लिए अवसर कम है , कार्यक्षेत्र सीमित है और योग्यताओं को कम आंका जाता है ।
लेखन में भी महिलाओं के प्रति कमतरी का भाव या उनके प्रति दोयम दर्जा आमतौर पर देखने मिलता है । पुरूषों को लेखिकाओं से हमेशा शिकायत होती है कि इनकी लेखनी की परिक्रमा रोमांस, परिवार और सामाजिकता के घेरे से बाहर जा ही नही पाती । क्या भारतीय समाज एक महिला को यात्रा संस्मरण के लिए वो सुरक्षित यायावरी दे सकता है कि वो दो महीनों तक अकेली राहुल सांकृत्यायन की तर्ज पर निकल पड़े । अच्छा संस्मरण लिखना इतना आसान नही है कि एक होटल की खिड़की से दिखते पहाड़ की सुंदरता को पन्ने पर उतार दो । अच्छा लिखने के लिए उस पहाड़ के कण कण को जीना होता है । अच्छा लिखने प्रकृति के स्पंदन को अपने भीतर धड़कते महसूस करना होता है । साहित्य उठाकर देख लीजिए कि घुम्मककड साहित्य रचने वालों ने महीनों पैदल पग- पग नापा , रज रज निचोड़ स्याही बनाई है । यात्रा संस्मरण लिखना मतलब उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति , सभ्यता , खान पान को करीब से जानना और स्थानीयता को लम्बे समय तक जीना होता है । क्या हमारे पुरुषों ने औरतों को ऐसा सुरक्षित समाज नही दिया है कि वो लम्बी यात्राओं पर लेखन के उद्देश्य से जाए । लेखन के उद्देश्य से की गई यात्रा और पर्यटन के आनंद के लिए घूमना दो अलग चीजे है । क्या महिलाए देर रात तक अंजान स्थानीय लोगों के पास बैठ उनके किस्से कहानियाँ डायरियों में इकठ्ठी करके ला सकती है ?? अव्वल लेखिकाओं के अनुकूल परिवेश नही है दूसरा पूरे परिवार के सहयोग की महती आवश्यकता है ।
पुरुष कहते है कि महिलाएँ राजनीति पर पकड़ नही रखती है । ये भारतीय परिवार की डिजाइन है कि पुरुष टीवी पर समाचार सुनते हुए या राजनैतिक कॉलम पढ़ते हुए घर की महिला के हाथों बनाई चाय पीता है । किसी भी परिवार में महिलाओं से राजनैतिक चर्चा की ही नही जाती क्योकि पुरुष के दिमाग में भरा है कि वे सिर्फ टीवी पर “ये रिश्ता क्या कहलाता है ?” सीरियल के मानसिक स्तर की है । महिलाओं में राजनैतिक समझ नही होती उनके पढ़ने के लिए गृह शोभा , मनोरमा के स्तर का साहित्य ही काफी है । इसमें अलग अलग रैसिपी और आधुनकि फैशन व मेकअप टिप्स दिए होते है ।मैंने कितने ही परिवारों में सुना है “सुनो देवी जी तुम तो अपनी किटी खेलों या मॉल की 50% डिस्काउंट वाली सेल देख आओ।”
पुरुष बुद्धिमान स्त्री का सम्मान करते है बशर्ते वो उनके परिवार की न हो । क्या घर गृहस्थी सम्हालने के बाद पुरुष अपने परिवार की महिलाओं के किताबे या एडिटोरियल पढ़ने , राजनैतिक बहस को सुनने के वक्त का सम्मान करते है ?? अगर आप इस सत्य को मानने से इनकार कर रहे है तो याद करिए सिर्फ महिलाओं या पत्नियों के सामान्य ज्ञान को लेकर इतने चुटकुले नही बनाए जाते ।

अमृता प्रीतम के विषय में पढ़ा था कि जब वो देर रात तक लेखन करती थी तो इमरोज़ चुपचाप एक कप चाय का उनके लिए लेकर आ जाते थे । ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि अमृता उनसे किसी रिश्ते में नही बंधी थी। अन्यथा इमरोज़ उनके जीवन को निश्चित रूप से नियंत्रित करते। क्या इसलिए ही महान लेखिका महादेवी वर्मा , अमृता प्रीतम , तस्लीमा नसरीन , कृष्णा सोबती जैसी लेखिकाओं ने अपनी कलम पर पुरुष दम्भ के बोझ को रखने से इनकार कर एकाकी जीवन जीने का निर्णय लिया ??
मैं पूरे भरोसे से कह सकती हूँ कि पुरुष यदि इतिहास , पुरात्तव, राजनीति , यात्रा संस्मरणों पर सागर जितनी स्याही खाली कर सकता है तो एक महिला अमूर्त कोमल भावनाओं को अक्षरों में जिस तरह ढाल सकती है वैसी जादूगरी पुरुष शायद ही दिखा पाए । घर , परिवार के भीतर की ढँकी कहानियाँ , रिश्तों की कारीगरी , अबोले को लिपिबद्ध करने का जादू तो एक लेखिका ही कर सकती है । प्रकृति ने यदि पुरुष को शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाया है तो क्षतिपूर्ति के रूप में महिलाओं को मन पढ़ने की विलक्षण दक्षता दी है ।

यकीन करिए समाज यदि उसे सार्थक संवाद की सहभागिता से बाहर करेगा तो वो दिमाग पढ़ना सीख लेगी , नीयत सूंघने खुद को प्रशिक्षित कर लेगी , खामोशी के श्रवण का कौशल विकसित कर लेगी । लेखिका अपनी अलग दुनिया एक औरत की नजर से रचेगी । आप उसके लिए घर की दहलीज़ का सीमा निर्धारण करोगे वो आँगन में गिल्लू , नीलकंठ ढूंढ लेगी । पारिवारिक सम्बन्धों की गीली मिट्टी से “आपका बंटी” , “मित्रो मरजानी” गढ़ लेगी । अभी हाल ही में मैंने अरुंधति जी के उपन्यास “गॉड ऑफ स्माल थिंग्स” को पढ़ा इस उपन्यास को पढ़ने के बाद अरुन्धती के नारीत्व पर गर्व हुआ । लम्बे समय बाद दिमाग को सही खुराक मिली । यह उपन्यास जवाब है महिलाओं की बौद्धिकता पर संदेह करने वालो को । कहने वाले ने बहुत सोच समझ कर कहा है कि “हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है ।” सफल पुरुष के पीछे खड़ी वो महिला ही है जो अपने परों को खुद काट कर उस पुरुष के सपनों पर से जिम्मदारियों का बोझ हल्का कर उन्मुक्त परवाज़ देती है… ।

रीमा मिश्रा “नव्या”

आसनसोल(पश्चिम बंगाल)

परिचय-

1- नाम-रीमा मिश्रा नव्या
2- पिता का नाम-श्री देवदत्त मिश्रा
3- स्थाई पता-जिला-(पश्चिम बर्धमान)
थाना-जामुड़िया
पिन-713342
3- जन्म तिथि-15/05/1993
4- शिक्षा–एम.ए(हिंदी)
पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन ट्रांसलेशन
5- व्यवसाय-शिक्षिका

—प्रकाशित रचनाएँ—

1)नर्मदा प्रकाशन द्वारा अभिति साझा काव्य संकलन में चार कविताएँ प्रकाशित
2)लघुकथा-प्रखर गूंज साहित्यनामा मासिक पत्रिका द्वारा एक लघुकथा प्रकाशित

3)विचार सहचर मासिक पत्रिका में चार कविताएँ प्रकाशित

5)महिला अधिकार अभियान पत्रिका में चर्चित लेखिका के भाषण का लिप्यंतरण,एवं दो आलेख

6)अभिश्री मासिक पत्रिका में बुकर पुरुस्कार 2019 पर लेख

7)इंक़लाब मासिक पत्रिका द्वारा तीन कविताएँ प्रकाशित

8)सर्वभाषा ट्रस्ट त्रैमासिक पत्रिका द्वारा एक कविता प्रकाशित

9)नारी शक्ति सागर पत्रिका द्वार एक कविता प्रकाशित

10हम हिंदुस्तानीसाप्ताहिक U.S.A अमेरिकाद्वारा छः कविताएँ प्रकाशित
11)**कनाडा के *हिंदी अब्रॉड* साप्ताहिक पत्रिका में कई आलेख और कविताएँ प्रकाशित
12)भोजपुरी पत्रिका साहित्य सरिता द्वारा एक भोजपुरी कविता प्रकाशित

13)कई दैनिक अखबारों –आसनसोल कोल्फील्ड मिरर
दिल्ली वोमेन्स एक्सप्रेस
दिल्ली मयूर संवाद
राजस्थान स्वर्ण आभा*
उत्तरप्रदेश हाथरस अमर तनाव
मेरठ विजय दर्पण टाइम्स
**निर्झर टाइम्स *,* कंट्री ऑफ इंडिया (लखनऊ)** में कई आलेख प्रकाशित
अन्य कई पत्र पत्रिकाओं में लेख एवं कविताओं का प्रकाशन
14–** अनुभव पत्रिका ** में प्रकाशित आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित
15–एक लघुकथा संकलन प्रकाशित।
16–तीन काव्य संग्रह अप्रकाशित
17) सम्पर्क क्रांति, श्री राम एक्सप्रेस, विभोर सन्देश देवपथ इत्यादि दैनिक एवं साप्ताहिक पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख एवं कवितायें
प्राप्त सम्मान
*विश्व हिंदी लेखिका मंच * द्वारा

  • नारी शक्ति सागर सम्मान*
    कोल्फील्ड मिरर द्वारा साहित्यिक सम्मान पत्र
    नवीन कदम छत्तीसगढ़ द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान
    कृतिमान साहित्य संस्था द्वारा सरस्वती पुत्री सम्मान
    काव्य कलश पत्रिका द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान
    साहित्य द्वार संस्था द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान

सहीतय संगम संस्थान नई दिल्ली द्वारा प्राप्त उपनाम प्रमाण पत्र,एवं प्राप्त उपनाम-
नव्या

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।