नये अन्दाज से देखे

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तेरी यादों को अभी तक,
दिल से लगाये बैठा हूँ।
की तुम लौटकर आओगे।
अपने के साथ नहीं तो,
परायें के साथ ही सही।
तो आप की धरोहर,
आप को सौप देंगे।
और इस मतलबी दुनियाँ से,
कुछ कहे बिना निकल लेंगे।।

इसलिए कहता था तुमसे की,
दिलके इतने करीब मत आओ।
की लौटना मुश्किल हो जाए।
दिल मे यदि कोई होल हो तो,
यादे थोड़ी बाहर निकले दो।
क्योकिं हम तो अपना दिल ,
पहले ही तुम्हें दे चुके है।
बस अब तुम्हरी बारी है।।

दिल मेरी अब सुनता नही,
किसी ओर के लिए।
नाम तेरा रटता रहता है,
हर धड़क धड़कने में।
अब तुम्ही बताओ मुझे,
करे तो क्या करे।
या तो दिल की धड़कने मिटाए,
या फिर खुद ही …….।।

सोचता हूँ जाने से पहले,
कि कुछ ऐसा करके जाऊं।
और अपनी मेहबूबा की,
याद में कुछ तो बनबाऊं।
जिसे देखकर प्रेमी युगल,
ताजमहल को भूल जाये।
और पुराने इतिहास को,
नई मोहब्बत के साथ पढ़े।।

#संजय जैन 

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।00

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