सुनाकर मुझे अपना राग,
मेरा मन बहलाते हो।
थकान मेरी अपने गीतों से,
तुम मिटाते हो।
तभी तो संगीत को,
महफ़िल की शान मनाते है।
और हर राज दरबारों में,
इन्हें स्थापित करते है।।
समय ने फिर करवट ली,
बदल गया सबका नजरिया।
संगीत को मनोरंजन का,
साधन माने जाने लगा।
अब गांव और शहरों में,
इसका आयोजन होने लगे।
जिस से इंसानों की,
थकान मिट ने लगी।
और समाज में हर्ष उल्लास का,
वातावरण बनने लगा।।
काम के साथ साथ,
लोग गीतों को सुनते है।
और काम को,
बड़े आनदं से करते है।
मनोरंजन करके भी,
वो कार्य क्षमता बढ़ाते है।
तभी तो संगीत को,
विशेष दर्जा दिलवा रहे है।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।