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उत्तरायण होकर सूर्य
पतंग संग करें मस्ती ।
तिल – गुमूंगफली
बिना बेगानी संक्रांति ।।
दूर करती खुशियों से
मन में फैली जो भ्रांति ।
देती रिश्तों में मिठास
मतभेद मिटाती संक्रांति ।।
ऊंची उड़ान भरें सद्भाव
प्रेम से रहना सिखलाती ।
पोंगल तो कही लोहडी
रुप में मनातें हैं संक्रांति ।।
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।
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