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सुबह से शाम तक,
नदी किनारे
हँस हँस कर
एक औरत
दुनिया और दुनियादारी से परे
सिक्किम की खूबसूरत वादियों में
पेट की भूख मिटाने के लिए
उम्र की भी सीमा लांघती
तोड़ती रहती है,
पत्थर,
सामने ही
पहाड़ों का
खूबसूरत नज़ारा ऐसा
कि पलकें भी नहीं झपकती हमारी,
मगर वो औरत
अपनी नजर झुकाए
बस तोड़ती रहती है
पत्थर
और सोंचती रहती है शायद
जितना ज्यादा वह तोड़ेगी
पत्थर
उतना ही ज्यादा
टूटेगें
उसके जीवन
के पथरीले हादसे
और सुगम होगी
उतनी ही ज्यादा
उसके बच्चों की
भूख मिटाने के
पथरीले रास्ते।
#के. स्मृति
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