अमेरिकी सेना ने ईरान के जनरल की हत्या कर दी। जोकि विश्व को एक बार फिर आग के गोले के ओर अमेरिका के द्वारा धकेल दिया गया। अमेरिका ने ईरान के जनरल की हत्या क्यों की इसके पीछे भी कई प्रकार के तर्क हैं। विश्व स्तर के राजनीति के जानकारों की माने तो इसमें अमेरिका की सोची समझी हुई बड़ी चाल है। जिसके कई एक मायने हैं। पहला यह कि अमेरिकी दूतावास पर हमला जो हुआ उसके पीछे की सच्चाई को समझना भी बहुत जरूरी है। कि क्या यह हमला आम नागरिकों ने किया अथवा यह हमला एक भूमिका के अंतर्गत करवाया गया। क्या यह अमेरिका की एक सोची समझी चाल है जिसके सहारे अमेरिका ने विश्व को यह संदेश देने का प्रयास किया कि उसके दूतावास पर हमला हुआ है इसलिए उसने यह सैन्य कार्यवाही की है। विश्व के राजनीति के जानाकारों का मानना यह है कि जनरल का कद इतना बड़ा था जिससे कि अमेरिकी नीति एशिया में सफल नहीं हो पाती थी। ईरानी जनरल अमेरिका और ईज़राईल के धुर विरोधी थे। जिससे कि अमेरिका अपना सबसे बड़ा दुश्मन जनरल सुलेमानी को मानता था। साथ ही इराक में जनरल सुलेमानी की जमीन बहुत ही अधिक मजबूत हो रही थी। जिससे कि अमेरिका की नीति प्रभावित हो रही थी। अमेरिका इराक के तेल भण्डार पर अपना पूरा नियंत्रण बनाए रखना चहता है लेकिन जनरल के कारण अमेरिका को यह आभास हो रहा था कि यह नियन्त्रण ज्यादा समय तक नहीं चल सकता। क्योंकि जिस प्रकार अमेरिका की राजनीति फूट डालो और राज करो की रूप रेखा पर चलती है जनरल कासिम सुलेमानी उसके धुर विरोधी थे। जनरल कासिम रूहानी सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। ज्ञात हो कि अभी हाल ही में अमेरिका ने अपनी सेना ईराक से हटा ली थी और तुर्की के राष्ट्रपति का अमेरिका दौरा हुआ था जिसके बाद ट्रम्प ने मीडिया से कहा था कि अमेरिका और तुर्की एक दूसरे के अच्छे दोस्त हो गए हैं। उसके बाद तुर्की के राष्ट्रपति जब तुर्की लौटकर आए तो अमेरिका के दोस्ती शब्द की परिभाषा आरम्भ हो गई। परिणाम जो हुआ वह सबके सामने है। तुर्की ने ईराक के कुर्दों पर आक्रमण आरम्भ कर दिया। जिसमें कुर्द अकेले पड़ गए थे। उस समय कुर्दों ने जनरल कासिम से आत्म रक्षा की गुहार लगाई और जनरल कासिम सुलेमानी कुर्दों की मदद के लिए आगे आए। कासिम सुलेमानी के सहयोग के कारण ही इराक की सरकार ने कुर्दों का साथ दिया और तुर्की के आक्रमण से उनकी रक्षा की। कहा जाता है कि कुर्दों और इराक सरकार के बीच की कड़ी जनरल ही थे जिन्होंने इराक सरकार यह समझाया कि आप अपने निवासियों की मदद करें। और अपने देश को गृह युद्ध में मत झोंके। जिसके कारण इराक बड़े गृह युद्ध से बच गया।
दूसरा सबसे बड़ा आधार यह है कि कुर्द लड़ाके जोकि आईएसआईएस के खिलाफ लड़ रहे थे वह अपना एक अलग कुर्दिश्तान बनाना चाहते थे। जिसके लिए इराक में गृह युद्ध आरम्भ हो गया था और इराक सरकार बहुत ही बड़े संकट में फंस गई थी। एक ओर देश का विभाजन तो दूसरी ओर गृह युद्ध इस असमंजस की स्थिति में इराक सरकार बुरी तरह फंसी हुई थी। क्योंकि कुर्द लड़ाके किसी तरह से नहीं मान रहे थे। क्योंकि उनको उकसाने का कार्य आईएसआईएस के कुछ भूमिगत सिपहसालार कर रहे थे। जोकि अपना एक अलग राष्ट्र बनाना चाहते थे। वह इराक की वर्तमान सरकार से अलग होने के लिए आंदोलन कर रहे थे। जिसमें आईएसआईएस को अपनी जगह मजबूत करने का मौका मिल गया था। इस संकट की घड़ी में अमेरिका ने ईराक का साथ छोड़ा और अपनी सेना को लेकर रवाना हो गया। अब ईराक सरकार बुरी तरह से फंस चुकी थी। इराक की सरकार के पास कोई रास्ता ही नहीं था। अपितु इसके कि वह एक अलग राष्ट्र बनाने के लिए कुर्दों के प्रस्ताव को मान ले। क्योंकि आईएसआईएस मौका मिल गया था और वह अपना बदला लेना चाहता था। कुर्दों और इराकी सरकार के बीच आन्दोलन का लाभ सीधे-सीधे आतंकी संगठन उठाना चाहता था। ऐसे गम्भीर संकट में इराक की सरकार फंसी कि एक ओर आतंकी संगठन तो दूसरे ओर सहयोगी गुट कुर्द लड़ाके। इस गम्भीर संकट के समय जनरल कासिम सुलेमानी ने इराक की सरकार का साथ दिय़ा और इराक को दो हिस्सों में टूटने से बचा लिया। कुर्दों और इराक सरकार के बीच जनरल कासिम सुलेमानी खुद कड़ी बने और इराक को दो हिस्सों में टूटने से बचा लिया। इसी कारण अमेरिका की नजरों में कासिम सुलेमानी और खटक गए। कासिम सुलेमानी के कारण ही अमेरिका की चाल कामयाब नहीं हो पाई। अपनी नीति में सफल न हो पाने के कारण अमेरिका बौखलाया हुआ था। क्योंकि अमेरिका की चाल है फूट डालो और राज करो। अमेरिका अपनी इस नीति में फेल हो गया। यदि दुर्भाग्यवश इराक दो हिस्सों में विभाजित हो जाता तो भारत और पाकिस्तान वाली ही स्थिति होती। एक ही देश आपस में दो भागों बटवारा करके आपस में ही लड़ता रहता और दिन प्रतिदिन हालात और बदतर होते चले जाते। जो साजिश भारत के साथ सन 1947 में अंग्रेजो ने रची वही साजिश इराक के साथ रची गई। परन्तु जनरल कासिम सुलेमानी की सूझबूझ और वर्चस्व के कारण ईराक इस गम्भीर आग से बच गया।
अमेरिका की यह चाल जगजाहिर है कि अमेरिका यह चाहता है कि पूरी दुनिया आपस में लड़ती रहे और अमेरिका पूरे विश्व पर आसानी के साथ राज करता रहा। और अपनी हथियार की दुकान चलाता रहे। अमेरिका की यह नीति इसलिए और है कि जब पूरा विश्व आपस में टकराता रहेगा तो सभी अलग-अलग रहेंगे और अमेरिका के विरूद्ध किसी प्रकार की गोलबंदी नहीं हो पाएगी। और जब गोलबंदी नहीं हो पाएगी तो अमेरिका पूरे विश्व पर आसानी के साथ राज करता रहेगा। अमेरिका की इस नीति के विरूद्ध जनरल कासिम सुलेमानी चट्टान की तरह सामने आ जाते थे और अमेरिका की फूट करो और राज करो की नीति को असफल करते हुए सभी को एक साथ लेकर चलने की मुहिम में लग जाते थे। और सभी को एक करके ही दम लेते थे।
ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की सेना के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी को इराक में बगदाद हवाई अड्डे पर अमेरिकी हवाई हमले के दौरान मार दिया गया अमेरिका के रक्षा विभाग द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है राष्ट्रपति के निर्देश पर अमेरिकी सेना ने कासिम सुलेमानी की हत्या करके निर्णायक रक्षात्मक कार्रवाई की है। जबकि सत्य यह है कि लंबे समय से अमेरिका ईरान पर अपना प्रभाव बनाने के लिए लगातार दबाव बना रहा है। जोकि जगजाहिर है। अमेरिका के विरूद्ध सुलेमानी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने ईरान के मध्य पूर्वी क्षेत्र को स्थापित किया। और ईरान को अधिक मजबूत किया।
जनरल सुलेमानी एक बहुत ही निम्न परिवार में जन्में थे उनका जन्म 1957 में करमन प्रांत में एक किसान परिवार में हुआ था 1979 की क्रांति के बाद ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स में शामिल होने से पहले वह एक कंस्ट्रक्शन से सम्बन्धित मेहनत का कार्य करते थे। 1988 में आठ वर्षीय ईरान-इराक युद्ध समाप्त होने के बाद तेहरान ने पूरे क्षेत्र में प्रभाव स्थापित करने के लिए नए दोस्त की खोज शुरू की सुलेमानी तेहरान मध्य पूर्वी विदेश और सुरक्षा नीति के प्रमुख नीतिकार थे। सुलेमानी अमेरिका की चाटुकारी से बहुत नफरत करते थे इसी कारण सुलेमानी की सऊदी अरब से नहीं बनती थी क्योंकि सउदी अरब अमेरिका की चाटुकारी में लगा रहता है जिसके सुलेमानी घोर आलोचक थे। सुलेमानी का मानना था कि चाटुकारी से उचित है कि स्वयं के पैरो पर खड़े होना। सुलेमानी का यह मानना था कि आत्मनिर्भर बनो और दूसरों को भी सहयोग करके आत्म निर्भर बनाओ। तब विश्व में भुखमरी समाप्त होगी और सम्पन्नता आएगी। चाटुकारी के विरोध के कारण ही सउदी से सुलेमानी की नहीं बनती थी। सउदी शासक सुलेमानी को अपना दुश्मन मानते थे।
सुलेमानी ने ईरान की विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बड़ा काम किया था। 2003 में सद्दाम हुसैन के शासन के गिर जाने के बाद इराक ने तेहरान पर पुर्नविचार आरम्भ कर दिया था। इराक के अधिकांश राजनीतिक वर्ग अनिवार्य रूप से ईरानी सत्ता के पक्ष में थे। जिसमें पूरी भूमिका का केन्द्र कासिम सुलेमानी ही थे। जिनसे प्रभावित होकर ईराक ने ईरान के बीच मतभेदों को मिटाकर एक साथ आने की दिशा में कार्य आरम्भ कर दिया था।
ईराक में आईएसआईएस के खिलाफ सुलेमानी मुख्य भूमिका में थे जिनके सहयोग से ही ईराक का शिया वर्ग इस्लामिक स्टेट को हटाने में पूर्ण रूप से जुट गया था। अगर आज असद सीरिया में जीत का दावा कर सकते हैं, तो यह मुख्य रूप से सुलेमानी की रणनीति के कारण ही था। आतंकवाद के धुर विरोधी के रूप में जानेजाने वाले सुलेमानी ईरान की ज्यादातर क्षेत्रीय नीतियों को भी तय करते थे लेकिन पिछले कुछ सालों में वह ईरान के सार्वजनिक परिदृश्य से बाहर हो गए थे हालांकि वह अभी भी परोक्ष रूप से काम कर रहे थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कासिम सुलेमानी अक्सर सैनिकों के साथ युद्ध क्षेत्र की तस्वीरों में देखे जाते थे, ईरान और इराक में सैनिकों के अंतिम संस्कार में शामिल होते थे। सुलेमानी एक प्रमुख पद पर विराजमान होने के साथ-साथ एक समान्य व्यक्ति थे जोकि अपनी सेना के जवानों के साथ सदैव प्रत्येक स्थानो पर देखे जाते थे।
एक फौजी अफसर के साथ-साथ सुलेमानी आर्थिक नीति के बहुत बड़े जानकार माने जाते थे। तमाम प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है और लोगों की आमदनी पर भी बहुत भारी असर पड़ा है। निर्यात पर प्रतिबंध होने के कारण ईरान आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। जिसमें सुलेमानी की क्षेत्रीय नीति वाली तरकीबें ही ईरान की सभ्यतायी गर्व के तौर पर देखी जाती थीं। जोकि ईरान के इस कठिन दौर में ईरान को आर्थिक तंगी का सामना करने के लिए बल प्रदान करती थीं। सुलेमानी की दूर दृष्टि तथा नीति के कारण ही ईरान तमाम तरीकों के अमेरिकी प्रतिबंधों का सामने करने में टिका हुआ था। यह सुलेमानी की ही देन थी जिन्होंने आर्थिक तंगी एवं अमेरिका की पाबंदी के समय में ईरान को नई नीति के साथ मजबूती के साथ अपने पैर जमाए हुए खड़े रखा। ईरान के विदेश मंत्री जावद जारिफ ने उनकी हत्या को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद जैसा कदम बताया और कहा कि यूएस को अपने दुष्साहस के परिणामों की भी जिम्मेदारी लेनी होगी। सत्य यह है कि सुलेमानी न केवल ईरान के सबसे ताकतवर व्यक्ति थे बल्कि वह अपने उदारवादी एवं सरल स्वाभाव के कारण विश्व स्तर पर एक बड़ा चेहरा थे। जनरल सुलेमानी सादगी के लिए दुनिया में जाने जाते थे। जनरल सुलेमानी का मानना था कि मैं एक गरीब किसान परिवार से आया हूँ। इसलिए मुझे सदैव गरीबों और पीड़ितों की मदद करते रहना चाहिए। और सभी शोषितों के हित के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए। इसी कारण जनरल सुलेमानी पूरे विश्व में बहुत ही तेजी के साथ मजबूत होकर उभरे।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीति विश्लेषक।
(सज्जाद हैदर)