ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे

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ज़िन्दगी में कहाँँ किनारे हैं।हम सरीख़े भी बेसहारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,
है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।
*
न आब है तलाश दाने की,ये आदमी तो बेसहारा है।
ज़ख्म सिले न ख़रोंच देता जो,
कहें भी कैसे वो हमारा है।
ज़ुनून ले कर चला है,नज़र फ़लक
पे,तोड़ना भी जाे सितारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।-01
*
चले डगर पे शहर की गलियों में,
कहाँँ हो सब कहाँ सहर नहीं ठिकाना है।
मिले भी दरिया बहुत दिलों से दूर बहुत,खुदी पता है नहीं कहाँ पे जाना है।
सबक मिला है जमाने से,खोजना भरोसे क़ाबिल जो भी किनारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।-02
*
न भूल करना उन्हें समझने में,
निग़ाह ज़िनकी है बद हमें डुबायेंगे।
वो खारे दरिया की तरह तो दूरियाँ ही भली हैं,मरें खुदी पे न अपने काम आयेंगे।
हमारी धुन है लगी हम बनें सहारे भी,सदी तलक से जहाँ में जो बेसहारे हैं।
मिले मुक़म्मल जहाँ तलाश ये,है आरज़ू कि फिरते मारे हैं।

#प्रदीपमणि तिवारी ‘ध्रुवभोपाली’परिचय: भोपाल निवासी प्रदीपमणि तिवारी लेखन क्षेत्र में ‘ध्रुवभोपाली’ के नाम से पहचाने जाते हैं। वैसे आप मूल निवासी-चुरहट(जिला सीधी,म.प्र.) के हैं,पर वर्तमान में कोलार सिंचाई कालोनी,लिंक रोड क्र.3 पर बसे हुए हैं।आपकी शिक्षा कला स्नातक है तथा आजीविका के तौर पर मध्यप्रदेश राज्य मंत्रालय(सचिवालय) में कार्यरत हैं। गद्य व पद्य में समान अधिकार से लेखन दक्षता है तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होते हैं। साथ ही आकाशवाणी/दूरदर्शन के अनुबंधित कलाकार हैं,तथा रचनाओं का नियमित प्रसारण होता है। अब तक चार पुस्तकें जयपुर से प्रकाशित(आदिवासी सभ्यता पर एक,बाल साहित्य/(अध्ययन व परीक्षा पर तीन) हो गई है।  यात्रा एवं सम्मान देखें तो,अनेक साहित्यिक यात्रा देश भर में की हैं।विभिन्न अंतरराज्यीय संस्थाओं ने आपको सम्मानित किया है। इसके अतिरिक्त इंडो नेपाल साहित्यकार सम्मेलन खटीमा में भागीदारी,दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी भागीदारी की है। आप मध्यप्रदेश में कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं।साहित्य-कला के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा अभिनंदन किया गया है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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