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(भारतीय सेना दिवस विशेष)
मरने का शौक नहीं मुझे भी,
जीवन से मुझको प्यार है।
पर डरता नहीं जरा भी मैं,
बस अपना भी एक परिवार है॥
गोलियां छूती हैं जब कानों को,
बच्चों का चेहरा नजर आ जाता है।
चुभती है जब गोली कहीं,
मां के आंसू का डर सताता है॥
पर देश बड़ा हर रिश्ते से,
मन में जब ख्याल आता है।
तब भारत मां का बेटा बन,
बन चट्टान सीमा पे अड़ जाता है॥
हिम की ठंडक में भी,
जब देशप्रेम का नशा चढ़ जाता है।
गोलियों की बौछारों में
हर मौसम कहीं खो जाता है॥
आग उगलती ताप जब,
इस धरा को झुलसाता है।
पारा जब सिर पे चढ़,
पंखों में आग लगाता है॥
ऐसी भीषण तपन से भी,
मैं न कभी घबराता हूं।
लहराते तिरंगे की शोभा से
मैं ज्वालामुखी बन जाता हूं॥
क्या वर्षा-क्या तूफान-ए-कहर,
हर संकट से टकरा जाऊंगा।
कर्तव्य पथ पे चलते हुए मैं,
भारत मां का गौरव बढ़ाऊंगा॥
बस बचा लेना तुम मुझे,
अन्दर छुपे हैवानों से।
पत्थरबाजी वाले बिके हुए बेईमानों से,
चंद बुद्धिजीवी-नेता और चालाक हुक्मरानों से॥
नहीं मुझे है भय,
अपना जीवन खोने का।
मन में डर बना हुआ है,
अपनों के छले जाने का॥
हिंद का सिपाही हूं मैं,
हर संकट से लड़ जाऊंगा।
साथ रहना तुम मेरे,
हर जन्म सिपाही बनकर आऊंगा॥
# मुकेश सिंह
परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl
शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl
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