गाँवों की संस्कृति का,
कहना है क्या यारों।
लोगों के दिलों में,
बसता है जहां प्यार।
इंसानियत वहां पर,
जिंदा है अभी यारों।
कैसे भूल जाएं,
अपनी संस्कृति को।
मिल बैठकर बाटते हैं,
गम एक दूसरे के।
जब भी कोई विपत्ति,
आती है सामने से।
सब मिलकर उसका,
हल निकालते हैं।
ऐसे हमारे मुल्क के,
गाँव वाले ही होते हैं।।
इतिहास को उठाकर,
देखो जरा लोगों।
गाँवों से ही निकले हैं,
वीर महान योध्दा।
अभी हाल में कितने,
खिलाड़ी निकल रहे हैं।
अपने देश का वो,
नाम रोशन कर रहे हैं।
गाँवों की संस्कृति का,
आज भी जवाब नहीं हैं।।
तभी तो कहते है कि,
मेरा भारत महान।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।