ज़द बनाम हद

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कोरोना ने
अनधिकार अधिकार
कर लिया हमारी साँसों पर
मिलना जुलना, हाथ मिलाना
गले लगना और लगाना
प्यार से अथवा तिरस्कार से
रोक दिया
रोक दिया घर से बाहर निकलना
बाजार में लार टपकाना
फिसलना, निरर्थक घूमना
अखाद्य और खाद्य को खाना
घर न आने के सौ सो बहाने बनाना
रोक दिया
रोक दिया रिश्तों का
नाजायज़ व्यापार
एक एक द्वारा छल से बसे
कई परिवार….. संसार।

किन्तु यह कोरोना
नॉवेल ही नहीं बल्कि नोबल भी है
धर्माचरण का पोषक भी है यह
सफाई से रहने वाले
स्पर्श न करने वाले
चेहरे को ढकने वाले
इधर उधर न थूकने वाले
संयम से जीने वाले
और जूठा न खाने पीने वाले
हैं जो लोग
उनको नहीं सताती
न छेड़े कोई तो
लाज से खुद ही मर जाती।

इसलिए
है प्रबुद्ध लोगों
मत रोको कोरोना को
बल्कि रोक लो अपने आप को
और अपनों को भी
न जाओ कोरोना की ज़द में
आओ रे आओ
सामाजिक दूरी बनाकर
रह लें हम सब अपनी हद में
अपनी ही हद में।

परिचय

नाम : अवधेश कुमार विक्रम शाहसाहित्यिक नाम : ‘अवध’पिता का नाम : स्व० शिवकुमार सिंहमाता का नाम : श्रीमती अतरवासी देवीस्थाई पता :  चन्दौली, उत्तर प्रदेश जन्मतिथि : पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तरशिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र), बी. एड., बी. टेक (सिविल), पत्रकारिता व इलेक्ट्रीकल डिप्लोमाव्यवसाय : सिविल इंजीनियर, मेघालय मेंप्रसारण – ऑल इंडिया रेडियो द्वारा काव्य पाठ व परिचर्चादूरदर्शन गुवाहाटी द्वारा काव्यपाठअध्यक्ष (वाट्सएप्प ग्रुप): नूतन साहित्य कुंज, अवध – मगध साहित्यप्रभारी : नारायणी साहि० अकादमी, मेघालयसदस्य : पूर्वासा हिन्दी अकादमीसंपादन : साहित्य धरोहर, पर्यावरण, सावन के झूले, कुंज निनाद आदिसमीक्षा – दो दर्जन से अधिक पुस्तकेंभूमिका लेखन – तकरीबन एक दर्जन पुस्तकों कीसाक्षात्कार – श्रीमती वाणी बरठाकुर विभा, श्रीमती पिंकी पारुथी, श्रीमती आभा दुबे एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वाराशोध परक लेख : पूर्वोत्तर में हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियताभारत की स्वाधीनता भ्रमजाल ही तो हैप्रकाशित साझा संग्रह : लुढ़कती लेखनी, कवियों की मधुशाला, नूर ए ग़ज़ल, सखी साहित्य, कुंज निनाद आदिप्रकाशनाधीन साझा संग्रह : आधा दर्जनसम्मान : विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा प्राप्तप्रकाशन : विविध पत्र – पत्रिकाओं में अनवरत जारीसृजन विधा : गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधायेंउद्देश्य : रामराज्य की स्थापना हेतु जन जागरण हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जन मानस में अनुराग व सम्मान जगानापूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जन भाषा बनाना तमस रात्रि को भेदकर, उगता है आदित्य |सहित भाव जो भर सके, वही सत्य साहित्य ||

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।