मेरा जिला सबसे निराला

1 0
Read Time25 Minute, 30 Second

मैं सोनीपत जिले का निवासी हूं। मैं सबसे पहले बताना चाहता हूं कि मेरा जिला हरियाणा एक मध्यम स्तरीय जिला है यह न तो अधिक बड़ा है और न ही अधिक छोटा है। सोनीपत नई दिल्ली से उत्तर में 43 कि.मी. दूर स्थित है। इस नगर की स्थापना सम्भवत: लगभग 600 ई.पू्. में आरंभिक आर्यों ने की थी। यमुना नदी के तट पर यह शहर फूला-फला जो अब 15 कि.मी. पूर्व की और स्थानांतरित हो गया है। हिन्दू महाकाव्य महाभारत में इसका नाम (स्वर्णप्रस्थ) के रूप में था।

महाकाव्य के अनुसार पाण्डवों में सबे बड़े युधिष्ठिर ने इस स्थान को दुर्योधन से शांति के बदले मांगा था। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है लेकिन पाणिनी के अष्टाध्यायी में सोनीपत का उल्लेख मिलता है। इसका मतलब यह हुआ कि इस शहर का अस्तित्व लगभग 600 ई.पू. का है। यहां का मुख्य आकर्षण ख्वाजा खिज्र की कब्र है। यह कब्र इब्राहिम लोधी के शासन के अंत और उनके पुत्र के पनाह की अंतिम स्थान थी।

इस शहर में अब्दुल नसीरुद्दीन की मस्जिद है जो कि 1272 में बनी, ख्वाजा खिज्र का मकबरा 1522 से 1525 ईस्वी के बीच निर्मित हुआ और इन्हीं पुराने किलों के अवशेष हैं। यह उन चुनिंदा इमारतों में से है जिनमें लाल बलुये के पत्थर के साथ-साथ कंकड़ के टुकड़ों का प्रयोग किया गया है। कब्र या मकबरा भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। यहां पर हिन्दूओं का बाबा धाम मंदिर भी प्रसिद्ध है। सोनीपत दिल्ली से अमृतसर को जोडऩे वाले रेलमार्ग पर स्थित है। लोग काम के लिए रोजाना सोनीपत आते-जाते हैं।

ऐतिहासिक स्थलों के शहर के पुराने, अवशेषों के निकट मामा-भान्जा नामक मकबरा है। सन् 1971 में उत्खनन के दौरान यहां 1200 यूनानी वैक्ट्रीयाई आधे दिरहम और हर्षवद्र्धन की झीलें प्राप्त हुई। लगभग 1880 में रेल मार्ग चालू हुआ। यह स्थल लगभग 2200 वर्ग कि.मी. फैला हुआ है। यह हरियाणा के मध्यपूर्व में स्थित है। इसके पूर्व में उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में दिल्ली, दक्षिण में झज्जर व रोहतक पश्चिम में जीन्द उत्तर में पानीपत जिला स्थित है। इस जिले का जन्म 22 दिसंबर 1972 को हुआ। आज इसमें तीन उपमण्डल, चार तहसील व सात खण्ड तथा एक उप तहसील है। यहां प्रमुख यमुना नदी बहती है। सोनीपत के गांव में गेहूं, चावल, ज्वार, दालें, गन्ना, बाजरा आदि फसलें मुख्य रूप से होती हैं। इसके अन्दर साईकिल, मशीनी उपकरण, सूती वस्त्र, हौजरी, चीनी मील, सिलाई मशीन, हैण्डलूम वस्त्र, ताम्बे के बर्तन के व हस्तशिल्प उद्योग हैं। लेकिन दिल्ली से लेकर गन्नौर तक यह क्षेत्र उद्योगों से भरा पड़ा है। यहां पर काश्त 26.50, खेती करने वाले 71.07, उद्योगों में काम करने वाले लगभग 2 प्रतिशत हैं। यहां का पर्यटन स्थल चकौर है। यहां का साईकिल उद्योग विश्व विख्यात है। 2011 के आंकडों के अनुसार यहां की जनसंख्या 1480080 है।

  1. सोनीपत में बगावत :

सोनीपत का इलाका दिल्ली से लगा हुआ है दिल्ली को आजाद करा लेने के बाद भी उसके उत्तर में अंग्रेज सेना घेरा डाले पड़ी थी। पंजाब से उन्हें जी.टी. रोड तथा रोहतक-हिसार रोड के रास्ते कुमक पहुंच रहीं थी। इसे रोकने के लिए दिल्ली और सोनीपत जी.टी. रोड के साथ-साथ बसे गांव ने बड़ी भूमिका निभाई। लोक परंपरा के अनुसार इन बागी गांवों में लिबासपुर, कुण्डली, बहालगढ़, खामपुर, अलीपुर, हमीदपुर सराय आदि प्रमुख हैं। लिबासपुर गांव में उदमीराम नामक युवक ने अंग्रेजों के काफिलों को रोकने के लिए 22 युवकों का एक दल बना लिया था। विद्रोह के दौरान उन्होंने बड़ी वीरतापूर्वक अंग्रेज सैनिकों के दिल्ली-पानीपत के बीच आने-जाने के रास्ते को रोक दिया। इस प्रयास में कई अंग्रेज मारे गए। बागियों की मुखबिरी के परिणाम स्वरूप दिल्ली फतह कर लेने के बाद बागी गांव को दण्ड देने के लिए एक दिन अंग्रेज सेना ने लिबासपुर को आ घेरा। लड़ाई हुई और अनेक वीर मारे गए। गांव को जी भर कर लूटा गया। महिलाओं के जेवर तक छीन लिए गए। लोग गांव छोडक़र भाग गए। वीर उदमीराम को सडक़ पर पेड़ से बांध दिया गया। उसके हाथों में लोहे की कीलें गाड़ दी गई। वह देशभक्त 35 दिन तक भूखा-प्यासा तडफ़-तडफ़ कर शहीद हो गया। अंग्रेजो ने उसके शव तक को परिजनों को नहीं दिया। भाग गए लोग शांति स्थापित होने पर ही कई साल बाद वापिस लौट पाए परंतु उनकी सारी जमीन राठधाना निवासी मुखबीर सीताराम के नाम चढ़ा दी गई। गांव के असली बाशिंद भूमिहीन मुजारे बनकर रह गए।

लिबासपुर के पास ही मुरथल गांव है। 1857 के विद्रोह में इसकी भी अच्छी भूमिका रही। कुण्डली गांव ने भी स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जी.टी. रोड पर आते-जाते अंग्रेजों को खत्म करना और उन्हें लूट लेना इन लोगों का आम काम था। पुन: कब्जा कर लेने के बाद मुखबिरी के आधार पर अंग्रेज सेना ने उन्हें दण्ड देने की खातिर एक दिन गांव को घेर लिया और खूब लूटा। पकड़े हुए पशु अलीपुर ले जाकर अंग्रेजों ने नीलाम कर दिए। 11 लोगों को दण्ड दिया गया 8 को एक साल की कैद और 3 व्यक्तियों को आजन्म काले पानी की सजा। ये तीन सुरताराम, जवाहरा और बाजा थे जो फिर लौटकर गांव नहीं आ पाए। उधर गांव की सारी सरकारी जमीन तीन साल के लिए जब्त कर ली परन्तु यह जमीन कुण्डली के मूल निवासियों को कभी नहीं लौटाई गई। आज कुण्डली गांव के मालिक सोनीपत के रहने वाले पण्डित मामूल सिंह के वंशज बताए जाते हैं। ग्राम निवासी बेबिश्वेदार (बिना स्वामी) हो गए। अंग्रेजी शासन में किसी भी कुण्डली निवासी को सरकारी नौकरी पर रखे जाने को भी मनाही कर दी गई। खामपुर गांव भी विद्रोह के अपराध में जब्त कर लिया गया। गांव की सारी जमीन दिल्ली के निवासी पंडित लछमन सिंह के पूर्वज को दे दी गई।

गांव अलीपुर भी जी.टी. रोड पर बसा है 1857 में अंग्रेजों को यहां के वीर सडक़ पर आने-जाने नहीं देते थे ताकि वे दिल्ली पर दबाव न बना सकें। लोगों ने सभी सरकारी कागजात जला दिए। बाजार को भी लूट लिया। यहां युद्ध में अनेक अंग्रेजों के मारे जाने की कथा प्रचलित है। दिल्ली पर कब्जे के बाद गांव को सजा देने के लिए एक दिन मैटाकाफ जिसे काना साहब कहकर पुकारा जाता था, सेना लेकर पहुंच गया। गांव को चारों तरफ से घेर लिया और 70-75 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लाल किले ले जाया गया। उन सबको फांसी दे दी गई। मुहम्मद और बुरड़ नाम के दो व्यक्ति बचकर भागने में कामयाब हो गए। फांसी चढ़ाए जाने वालों में तुलसीराम और हंसराज के नाम आज भी सोनीपत के लोगों की जबान पर हैं। इसी गांव के तोताराम ने अंगे्रजी पिट्ठू सिक्ख सेना के हाथ में बादली समयपुर के आसपास के इलाकों व बारह गांव के पशुओं को छुड़ाने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई थी। वे इस लड़ाई में शहीद हो गए। अलीपुर के इस एहसान को बादली, समयपुर वासी आज भी सम्मान के साथ याद करते हैं। हमीदपुर को भी गांव की जमीन जब्त कर व्रिदेाह करने की सजा दी गई। पीपलथला सराय को बगावत की सजा के तौर पर लूटा गया और जला दिया गया। बाबर खान राघड़ ने अपनी अलग सेना बनाकर अंगेे्रजों को मार भगाया। उस वक्त बाबर खान रोहतक का मुख्य था क्योंकि उस समय सोनीपत का इलाका सारा रोहतक के अंतर्गत आता था। राई गांव के सरकारी पड़ाव में ले जाकर सडक़ पर लिटाकर भारी पत्थर के कोल्हुओं के नीचे डालकर पीस दिया गया। उन कोल्हुओं में से एक कोल्हू पत्थर अब भी 20वें मील दूसरे फर्लांग पर पड़ा हुआ है।

गोहाना में स्थित पीर जमाल का मकबरा है। जो हिन्दू मुसलमान एकता का प्रतीक है। 1861 ई. में इस स्थान पर राजपूत सरदार तेज सिंह और बुटाना गांव के एक व्यापारी फेरनमल को क्रमश: सन् 1238 और 1239 में बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया। उस समय इसे ‘गोऊध्वना’ कहा जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर गोहाना रख दिया गया। प्राचीन समय में गोहाना को ‘गवम भावना’ कहते थे फिर इसका नाम गोऊकरण भी रखा। यह एक तीर्थ स्थान माना जाता था। पृथ्वीराज चौहान ने यहां पर एक किला बनवाया था जिसका नाम उनके सेनापति दरिया सिंह के नाम पर दरियापुर रखा गया। यह किला सन 1192 ई. में मो. गौरी ने नष्ट करवा दिया था। यह कस्बा अब सोनीपत जिले का उपमण्डल है और रोहतक-पानीपत हाइवे तथा सोनीपत-जीन्द के मध्य स्थित है। गोहाना तहसील में 85 गांव आते हैं और गोहाना शहर की 65हजार से अधिक आबादी है। गोहाना को ब्रिटिश हुकूमत के समय वर्ष 1826 में तहसील का दर्जा दिया था। यह पूरे 190 साल पुरानी तहसील है। इस तहसील को नौ शहरों की सीमा लगती है। सोनीपत, रोहतक, खरखौदा, जीन्द, पानीपत, महम, गन्नौर, जुलाना, सफीदो है।

सोनीपत की ऐतिहासिक भूमिका :

शहर की प्राचीन धरोहर को बचाने का प्रयास रंग लाता नजर आ रहा है। इसी कड़ी में शहर के कोट मोहल्ला स्थित ब्रिटिश सरकार में बनाई गई प्राचीन धरोहर का जीर्णोद्धार करने का प्रयास शुरू हो गया है जिसका 20 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। ब्रिटिश काल में यातना का प्रतीक बना सोनीपत के कोट मोहल्ला स्थित पुराना किला आज भी अपनी विरासत को संजोए हुए है। ब्रिटिश शासन में अदायगी न देने वालों पर यातना का प्रतीक बन चुका यह किला अपने नए स्वरूप में तैयार हो रहा है। इस किले का इतिहास सालों पुराना है।

ब्रिटिश काल में इस किले में तहसील और जेल होती थी। सजा पाने वाले अपराधियों को किले में बनी जेल में बंद रखा जाता था। पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग बैरग थे। किले के अन्दर मालखाना, बन्दीगृह, अधिकारियों के कमरे, कोर्ट रूम आदि की जर्जर हालत इतिहास को दर्शाते हैं। किले में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया मालखाना आज भी मौजूद है। सोनीपत वासियों ने पर्यटन स्थल में रखने की मांग की है। गोहाना के मूलचन्द जैन प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। इन्होंने जैन ग्रन्थों को पढ़ा व छुआछूत से नफरत ही नहीं थी बल्कि छुआछूत करने वाले व्यक्तियों से दूर ही रहना पसंद करते थे। ये दलितों के साथ अन्याय सहन नहीं करते हैं।

संबंधित जिले में हर्षकालीन ताम्र मुद्राएं भी मिली हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के क्षेत्र भावड़, घड़वाल, छपरा, मदीना, रीठाला, नूरन खेड़ा आदि मुख्यत: हैं। वैदिक कालीन क्षेत्र समन और गुमद हैं। खरखौदा में यौधेयगण के प्राचीन सिक्के 1834 ई. कैप्टन कोटल से प्राप्त हुए। कनिंघम को सोनीपत से प्राप्त हुए। गोहाना में हिन्दुओं द्वारा बनवाए गए मंदिर को सुल्तान ने तुड़वा दिया तथा मूर्ति, पुस्तकें व अन्य सामग्री जलाकर वहां पूजा करने वालों को बंदी बनाया अनेक व्यक्तियों को मार दिया और फिरोज तुगलक के इस कार्य के कारण गोहाना के अतिरिक्त अन्य जगह पर भी विरोध हुआ जिन्हें सुल्तान ने सेना भेजकर दबाया। नजीबुदौला के साथ संघर्ष में 1974 ई. सूरजमल की मृत्यु के पश्चात नजीबुदौला ने सोनीपत क्षेत्र पर भी आक्रमण व नरसंहार करके कब्जा कर लिया।

सोनीपत का सांस्कृतिक परिदृश्य

खरखौदा क्षेत्र का सबसे ऐतिहासिक गांव बरोणा जो पहले बरोणा खेड़ा के नाम से वर्ष 1276 में अस्तित्व में आया था। सबसे पहले यहां दहिया गोत्र का सूत्रपात हुआ था जो राजस्थान से आए थे। हरियाणा में दहिया गोत्र की निकासी इसी गांव की देन है जो करीब 1576 में तहसील के गांव बरोणा खेड़ा गांव से हुई थी। दहिया गोत्र के जाट सबसे पहले बरोणा गांव के पास स्थित बरोणा खेड़ा में राजस्थान से आकर रहे थे। वर्ष 1276 के करीब यहां पर राजस्थान के गांव ददरेड़ा कस्बे से कुछेक व्यक्तियों का समूह आया था। हरियाणा के मशहूर लेखक फौजी मेहर सिंह भी इसी गांव के थे। मेहर सिंह का जन्म साधारण किसान परिवार में हुआ। इनका जन्म कुछ इतिहासकार 1916 तो कुछ 1918 मानते हैं। वे बहुत अच्छे गायक थे। गायन के लिए उन्हें अपने परिवार की प्रताडऩा सहन करनी पड़ी। 1936 में फौज में भर्ती हुए फौजी जीवन व फौजियों की पत्नियों की पीड़ा को विशेष तौर पर अभिव्यक्त किया। मुक्तक, रागनी के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। सन् 1944 को इनका देहांत हो गया। इसी गांव के रणबीर ङ्क्षसह दहिया थे जो जनवादी कविता लिखते हैं इनका जन्म 11 मार्च 1950 को हुआ। 1971 में एम.बी.बी.एस. की तथा 1977 में एम.एस. की। उन्होंने सामाजिक बदलाव का कार्य हमेशा किया। इन्होंने हरियाणवी में उपन्यास व कहानी भी लिखी समसामयिकी घटनाओं को अपनी रचनाओं में बखूबी प्रयोग किया। आज यह भगवत दयाल शर्मा चिकित्सा विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हो गए हैं और मुफ्त में चिकित्सा का काम करते हैं।

सोनीपत जिले के सिसाना गांव से कृष्णचंद, बाजे भगत व ओमप्रकाश सांगी रहे। कृष्ण चंद फौज में भर्ती थे व बाद में दिल्ली पुलिस में अपनी सेवाएं दी। इनका जन्म 22 जुलाई 1922 को हुआ था। इसी के साथ बाजे भगत का जन्म 16 जुलाई 1838 को हुआ। ये सांगी हरदेवा के शिष्य रहे इन्होंने करीब 15 सांगों की रचना की। दीपचन्द का जन्म सोनीपत के गांव सेहरी खाण्डा में हुआ। ये छज्जूराम के शिष्य थे। ये ढोलक, सारंगी व नगाड़ा का प्रयोग करते थे।

आधुनिक युग में सूर्य कवि कहे जाने वाले पं. लख्मीचन्द भी जिला सोनीपत के गांव सिरसा जाटी के थे। इनके पिता का नाम उदमी राम था। कला के क्षेत्र में आने के लिए परिवारजनों का विरोध सहना पड़ा। अपनी गायन कला के दम पर न केवल हरियाणा बल्कि आस-पास के राज्यों में भी अपना नाम कमाया। इनकी पत्नी का नाम बर्फी देवी था। इनके गुरु पंडित मान सिंह थे। इन्होंने पं. रामचन्द्र खटकड़, पं. रतीराम हीरापुर, पं. माईचंद बबैल, सुल्तान रोहद, चन्दन लाल बजाना, मांगेराम पान्ची, फौजी मेहर सिंह, रामस्वरूप सिटावली, ब्रह्म शाहपुर बड़ौली, धारा सिंह बड़ौत, धर्म जोगी डिकाणा, जहूरमीर बाकनेर, सरूप बहादुरगढ़, तुंगल बहादुरगढ़, हरबंस पथरपुर आदि इसके शिष्य रहे हैं। लख्मीचन्द के लडक़े पदम् श्री पण्डित तुलेराम कौशिक इन्होंने सांस्कृतिक उत्थान के लिए मात्र एक कलाकार 2008 में निधन होने से सांग प्रस्तुति बंद हो गई। इनके पुत्र विष्णु कोशिक आज इस परंपरा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इनके अलावा बलवान सिंह, गांव बुटाना व वेदप्रकाश उर्फ बेदू-गन्नौर भी मशहूर सांगी रहे हैं। राणा गन्नौरी गजल कलाकार हैं। गन्नौर के लगते गांव अगवानपुर में हरियणा के मोहम्मद रफी राजकिशन अगवानुरिया रहे और पं. जगन्नाथ समचाना के शिष्य रहे। पं. मांगेराम सांगी भी पांजी गांव में रहे जो कि जन्म का गांव सिसाना है। बाद में ये अपने मामा ने गोद लिए थे।

सोनीपत का शिक्षा स्तर :

सोनीपत में राजीव गांधी एजुकेशन सिटी के रूप में राई में स्थापित किया गया तथा इस गांव के अंदर मोतीलाल नेहरू खेल विद्यालय तथा अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। तकनीकी शिक्षा के सोनीपत में बहुतकनीकी संस्थान तथा राजीव गांधी विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विश्विद्यालय की रचना हुई। सोनीपत के अन्दर खानपुर गांव में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। एक केवल महिला विश्वविद्यालय इसके अलावा दो निजी विश्वविद्यालय है जिनमें से एक ओ.पी. जिन्दल ग्लोबल विश्वविद्यालय है। यहां शिक्षा की प्रतिशतता 79.12 है।

सोनीपत के मेले व उत्सव :

डेरा नग्र बालक नाथ का मेला : यह मेला सोनीपत के गोहाना उपमण्डल के गांव रभड़ा में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी को लगता है। यहां बाबा बालक नाथ की पूजा की जाती है।

नवरात्रि देवी मेला : यह मेला भी रभड़ा गांव में चैत्र पक्ष की अष्टमी तथा आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के पर्व पर लगता है।

सतकुम्भा का मेला : यह मेला सोनीपत जिले के गांव खेड़ी गुज्जर में श्रावण मास के अंतिम रविवार को लगता है।

बाबा रामकशाह मेला : यह मेला गोहाना तहसील के खुबडू़ गांव में फाल्गुन की पूर्णमासी को लगता है। बाबा रामकशाह सैयद सम्प्रदाय के सन्त थे। वे लोगों का इलाज जड़ी-बूंटियों से करते थे। उनकी मृत्यु के बाद हिन्दू और मुसलमान भक्तों ने उनकी कब्र बनवाई। उनकी याद में इस मेले का आयोजन किया जाता है।

रक्षाबन्धन का मेला : यह मेला सोनीपत में श्रावण मास की पूर्णमासी पर लगता है। इसमें निशानेबाजी, नाच-गाना, कुश्तियां आदि पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है।

दादा मंदार का मेला : यह मेला सोनीपत की गोहाना तहसील के गांव भावड़ में ज्येष्ठ के महीने में वीरवार को लगता है। गांव भावड़ सन् 1250 ई. के आस-पास अस्तित्व में आया था। बताया जाता है कि यहां सन् 1500ई. के आस-पास पीर दादा मंदार यहां आए थे। भक्ति की थी फिर यहीं पर उनकी मृत्यु हो गई। उस समय गांव में मुसलमान पठान रहते थे उस वक्त मुगल शासक था लेकिन गांव में 1857 के आस-पास जब स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति हुई थी तो भावड़ गांव में कालीरामण गांव सिसाय हिसार व बूरा गुराना (हिसार) से आकर यहां बसे थे फिर कौशिक ब्राह्मण गांव रधाणा से आकर बसे थे फिर यहां के पठान चले गए और आज भी यह दादा मंदार पीर की मजार हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक है। दोनों धर्म के लोग यहां आते हैं। गांव की औरत गीतों पर नाचती हैं झूमती हैं।

उपरोक्त के अलावा यमुना स्नान का मेला गांव बैगा व मेहंदीपुर में लगता है। मेला सांझाी शाम चुलकाना, देवी मेला चटाना, बाबा जिन्दा मेला मोई आदि गांव में लगता है।

लेखक

खान मनजीत भावडिय़ा मीद

शैक्षणिक नाम – मनजीत सिंह

पिता का नाम – श्री भूप सिंह

माता का नाम – श्रीमती किताबो देवी

प्रकाशित पुस्तक : हरियाणवी झलक (काव्य संग्रह)

संप्रति शैक्षिक योग्यता – एम.ए. (समाशास्त्र, जनसंचार) बी.एड.

गांव भावड तह गोहाना जिला सोनीपत

matruadmin

Next Post

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एकजुट आंदोलन की आवश्यकता : प्रो आशा शुक्ला

Sun Apr 4 , 2021
भारत के सभी हिंदी सवियों, हिंदी सेवी संस्थाओं विश्वविद्यालयों को एकजुट होकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता है। यह बात डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की माननीय कुलपति प्रो आशा शुक्ला ने रविवार 4 अप्रैल को मॉरीशस स्थित विश्व हिंदी सचिवालय, महू, इंदौर स्थिति […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।