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मैं मूल्यहीन
उपेक्षित
था पत्थर का एक टुकड़ा
समाज ने
कर बार-बार प्रहार
दे देकर उपहार
दिया एक आकार
मूर्ति की तरह
आज मैं चमक रहा हूँ
सितारों की तरह
महक रहा हूँ
फूलों की तरह
आज मैं जो कुछ भी हूँ
समाज की बदौलत
यह चमक
यह खुशबू
समाज से की है अर्जित
समाज को है समर्पित
सुनील चौरसिया ‘सावन’
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)
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