दिया जिन्होंने छोड़,
अपने लोगो को।
तभी लड़खड़ाई हमारी देश की व्यवस्था।
मुझे लग रहा है कि,
कही लुप्त न हो जाये।
हमारे देश की वो प्यारी
संस्कृति,
तभी पढ़े लिखे लोग जा रहे विदेशों को।।
पढ़े लिखे लोग बेच रहे है,
देश में लाटरी के टिकेट।
अनपढ़ लोग पढ़ा रहे है,
बच्चो को स्कूलों में ।
लगा सकते हो तुम,
अंदाजा हमारी व्यवस्था का।
तभी विध्दामान लोग,
चले जा रहे विदेशों को।।
सुधारना होगा हमे अपनी,
देश की व्यवस्था को।
वरना अकाल पड़ जाएगा,
पढ़े लिखे लोगो का।
क्योंकि सब कुछ बदल रहा है,
लोगो की सोच से।
इसलिए तो हम रो रहे है,
अपनी व्यवस्था पर।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।