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जो बूढ़ी काकी की भूख समझाएं, जो गोदान की चिंता जताएं, जो ईदगाह का महत्व भी बता जाएँ, जो अलगू और जुम्मन का प्रेम दर्शाएँ, जो अग्नि समाधि और अनाथ लड़की की बात करें, जो अमावस्या की रात्रि को आखरी तोहफा कह दे, जो आत्माराम की आप बीती सुनाएं ,जो नमक के दरोगा की जबानी कहें , जो लिखें तो शब्द खुद उसे गले लगाने को लालायित हो जाए, जो कलम उठाए तो लमही बन जाएं, ऐसे हिंदी कथा संसार के अजेय नायक का नाम मुंशी प्रेमचंद हुआ करता है।
हिन्दी स्वयं को तब गौरवान्वित महसूस करती है जब उसकी कोख से प्रेमचंद जैसे लाल जन्मा करते है। हिंदी तब आल्हादित होती धनपत रॉय श्रीवास्तव नाम का लाड़ला बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा उपन्यास सम्राट की पहचान पाता है।
निश्चित तौर पर तत्कालीन साहित्यिक जमात ने कहें या फिर आज भी जो सत्य नहीं जानते, बल्कि खोखले तर्कों में खोए रहने वाले लोगों की आलोचनाओं का शिखर कलश बने उस अलौकिक व्यक्तिव का या कहें किरदार का नाम प्रेमचंद है।
सदियों और शताब्दियों में ऐसे किसी नायक का जन्म होता है वो किरदार में खुद को ढालकर , जी कर और लिखकर उस किरदार को भी अमरत्व का पैना तमगा प्रदान करने का सामर्थ्य रखता है।
सैकड़ों कहानियों को खुद में जी कर उन कहानियों को सदा-सदा के लिए जनमत के मस्तिष्क केंद्र में अंकित कर देना, फिर चिर काल तक स्मृतियों का दस्तावेज बना जाना यदि कहानियों में कोई बखूबी कर पाया तो वह शख्स प्रेमचंद के सिवा दूसरा अब तक कोई नज़रों के सामने भी नहीं आया।
भारत के लमही गाँव में माँ आनंदी देवी की कुक्षी से व पिता मुंशी अजायबराय के कुलदीपक के रूप में जन्म लेने वाले कथा दृष्टि के महापात्र मुंशी प्रेमचंद पर जितना लिखों सब सूर्य को दीपक दिखाना ही माना जाएगा।
प्रसंग भी सेवासदन के महानायक की जन्म जयंती के निमित्त अद्भुत बना हुआ है ,जो हम सबके लिए गर्वानुभूति का कारक है।
*जन्म जयंती प्रसंग विशेष–* मुंशी प्रेमचंद जी के जन्मदिवस की सभी को बधाई….
धन्यवाद…
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।
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