गरीबी और साथ में दर्द,फिर भी लोग बनते हैं हमदर्द..जी हाँ,भारत के जीवन में आज हमें जब आजादी मिले हुए सत्तर वर्ष हो गए हैं तो भी,आज गरीब लोग अंग्रेजों वाले समय जैसा जीने को मजबूर हैं। मैं बहुत-से पिछड़े इलाको की बात कर रहा हूँ,
जहां लोग एक रोटी के लिए किसी के घर गुलामी कर रहे हैं। यह इलाके उत्तरप्रदेश से लेकर बिहार, बंगाल, आसाम और नक्सलवादी श्रेत्र भी हो सकते हैं। आज भी साहूकारों के कर्ज तले लोग दबे एवं गुलाम भी बने हुए हैं। आज गरीब कहीं सरकार के कर्ज में डूब चुका है,तो आत्महत्या कर लेता है या कुछ दंबगों द्वारा अपने परिवार की इज्जत को बचाने में जान दिए जा रहा है। आज भी गरीबों का वही हाल है। पहले हम राजाओं को जो कर(लगान)दिया करते थे,आज वही सरकार और माफियाओं को देना पड़ता है,बस फर्क इतना-सा ही है कि वह अनाज लेते थे और आज गरीब को अनाज के बदले पैसा,इज्जत और जान भी देनी पड़ती है। सोचिएगा, जरा इन गरीबों ने क्या खोया और क्या पाया है? बात कड़वी जरुर लग सकती है,लेकिन झूठ नहीं हो सकती है। समाज हित की बात आसानी से पचती भी कहाँ है। यह गरीब लोग लूटे जाते थे और आज भी लूटे जाते हैं। पहले अंग्रेजों और राजाओं दारा लूटे जाते थे,तो अब साहूकार आ गए हैं। जो लोग पहले भी दलाली के बल पर अमीर थे,गरीबों को लूटकर ही अमीर हैं। जो कुछ लोग अमीर नहीं थे,और !राजाओं के साथ थे,वह उनकी दलाली कर आज अमीर बने बैठे हैं। आज गरीब की कौन सुनता है,पहले इनको राजाओं के खेत में रोजगार हेतु मजदूर समझा जाता था,पर आज सरकार के वोट(मत)का बैंक हेतु बेहतरीन उपयोग किया जाता है सोचिएगा जरूर, कड़वी है पर सच्चाई है
#गिरजा शंकर सिंह ‘रिंटू’
परिचय : दिल्ली में १९९२में जन्मे गिरजा शंकर सिंह ‘रिंटू’ मूलतः किसान हैं। आपकी शिक्षा पॉलिटेक्निक(सिविल इंजीनियर)है। आप दिल्ली में रहकर ही एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल की युवा इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। समाजसेवा के साथ ही विविध विषयों पर लिखते रहते हैं।