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जो मेरे पास रहे
बहुत ख़ास रहे
कभी तो ज़मीन
या आकाश रहे
बिखेरते रहे बू
जो मधुमास रहे
छोड़े न छूटती
वो अहसास रहे
छिपाके बुराइयाँ
मेरा कपास रहे
पिला दी ज़िंदगी
क्या आभास रहे
#सलिल सरोज
परिचय : सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।पंजाब केसरी ई अखबार ,वेब दुनिया ई अखबार, नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स, दैनिक भास्कर ब्लॉग्स,दैनिक जागरण ब्लॉग्स, जय विजय पत्रिका, हिंदुस्तान पटनानामा,सरिता पत्रिका,अमर उजाला काव्य डेस्क समेत 30 से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में मेरी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। भोपाल स्थित आरुषि फॉउंडेशन के द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम 20 में स्थान। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित।
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Sat May 25 , 2019
धरा रही बंगाल की, सब हिंसात्मक होय। शासन देखे टुकुर टुकुर,लोकतंत्र की हत्या होय।। लोकतंत्र की लाज अब, बचना है मुश्किल। सब अपनी मनमानी करे,जन मन को भूल।। लोकतंत्र में सभी का, संम्पूर्ण योगदान। सब मिल रक्षा करें,तभी रहेगा मान।। लोकतंत्र का आया पर्व, मनाओ हर्षोउल्लास। भाईचारे बचाये राखीयो, उलझियो […]