लेखक संघ के प्रचारक रहे है, उन्होंने अपनी इस छोटी सी पुस्तक में भारत के संतों के आविष्कार, भारत के दर्शन, भारत की अतीत में विश्व गुरु की भूमिका को अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया। भारत पर हुए आक्रमण व आक्रमण के बाद जनता के दृष्टिकोण की भी विस्तृत व्याख्या की है। जिसमें यह दर्शाया गया कि हमने भृमित होकर भारतीय शोध, ग्रन्थ व वैज्ञानिकों के आविष्कारों को महत्व न देकर पश्चिमी वैज्ञानिकों की नकल पर भरोसा किया। भारत का दर्शन कला, साहित्य, भौतिकी, गणित, अर्थशास्त्र, जंतु विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, संगीत, भाषा, राजनीति, युद्ध कला, विमान शास्त्र, औषध विज्ञान आदि में सर्वश्रेष्ठ था। परन्तु अंग्रेजो द्वारा वेद, शास्त्र, उपनिषद, ग्रन्थों के विषय मे फैलाये गए भ्रम के कारण हमने आजतक उनका अध्ययन, शोध नही किया। जिनकी नकल करके पश्चिमी जगत आज इतनी आगे बढ़ गया। आज भी देश का युवा भारतीयता पर गर्व न करके विदेशी सामग्री, शोध को ही उच्च मानता है क्योंकि पश्चिमी शिक्षा पद्धति ने कभी भारत की व्यापकता, विराटता और दर्शन को युवाओं को समझने ही नही दिया। इस पुस्तक को पढ़कर आप अवश्य भारत को जानने के लिए उत्सुक होंगे।
मंगलेश सोनी
मनावर(मध्यप्रदेश)