धरा रही बंगाल की, सब हिंसात्मक होय।
शासन देखे टुकुर टुकुर,लोकतंत्र की हत्या होय।।
लोकतंत्र की लाज अब, बचना है मुश्किल।
सब अपनी मनमानी करे,जन मन को भूल।।
लोकतंत्र में सभी का, संम्पूर्ण योगदान।
सब मिल रक्षा करें,तभी रहेगा मान।।
लोकतंत्र का आया पर्व, मनाओ हर्षोउल्लास।
भाईचारे बचाये राखीयो, उलझियो न चौक चौबाट।।
लोकतंत्र की व्यवस्था से ,नेता कराए परिचय।
खुद ही न देखरेख करे, नीति नित होते विलय।।
संविधान सविधान सब करे,कोई न बाँटे ज्ञान।
जो ज्ञान का वखान करे, उसे दंड दे विधान।।
संविधान संशोधन में,उलझा है लोकतंत्र।
फायदे की बात पर,पीटे टेबुल जनतंत्र।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति