सतरंगी सपनों की दुनिया,
आज लगे बेमानी..
अपने ही जब गैर बने,
तो दुनिया लगे बेगानीll
रस्ते चलते साथी मिलते,
कितने जाने पहचाने..
वक्त पड़े इनका जब देखो,
बन जाते अंजानेll
हैं मतलब के यार सभी,
न इनको करना याद कभी..
जो पल में साथ बनाए कहीं,
पर साथी पर विश्वास नहींll
ये पीर-पराई न जाने,
अपनों को ही न पहचाने..
इनकी अपनी पहचान कठिन,
फिर क्यूं बनते हैं ये सयानेll
सुख में नदियों की लहरों-सी,
चंचल कर जाते हैं तन-मन..
दुःख में पतझड़ के पत्तों-सी,
क्यों दे जाते हैं सूनापनll
#तृप्ति रक्षा
परिचय: तृप्ति रक्षा का जन्म 1985 में हुआ हैl आप सिवान(बिहार) में रहती हैं और समाजशास्त्र तथा शिक्षा शास्त्र में एमए किया हैl साथ ही बीएड भी हैंl सम्प्रति के रूप में बालिका इण्टर काॅलेज(मैरवा) में समाजशास्त्र विषय की शिक्षिका हैंl लेखन आपका शौक हैl
All the best your poem… I very happy to you know..that you are my district…..Rupesh Kumar
Hats off to you
Sahi hai.
Magar is matlabi dunia me kuch apne aise bhi hai jo kabhi sath nahi chorte magar use pahchane ke liye jin ankho ki jarurat hai wo ankh log kholna hi nahi chahte