देहरी

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hemant bordiya
देहरी  करती  प्रतीक्षा
राह   तकते  द्वार  भी
मन  है  व्याकुल  देखना
चाहे  नयन  के  पार  भी
जाने   कितनी   दूर  जा
पहुंचे  नगर  से  दूर  तुम
हर  दिशा  यादें   तुम्हारी
दृश्य  दूजे  सारे  गुम
सूख  कर  सहरा  हुए  हैं
ये  नयन  के  धार  भी…
अर्थ   का   तब   अर्थ   क्या
जब  दिन  गुजरते  क्षोभ  में
आज  सूली  पर  चढ़ा  हर
पल,  सुखद   के  लोभ  में..
सुख  तुम्हारे  साथ  मेरा
और   जीवन   सार  भी…
घर  हमारा  ये  महल  सा,
गाँव   का   अभिमान   है
ये   अदालत   गाँव   की
पुरखों  का  ये  स्थान  है..
क्या  महल  से  बढ़  के  है
कोठी  तुम्हे   स्वीकार  भी..
अब   कबूतर   द्वार   पर
करते   गुटर  गु  देख  लो..
यह  युगल  मुझको  चिढ़ाते
मन    जलाते     देख    लो..
क्या  तुम्हें   देती   सुनाई
यह   मेरी   चीत्कार   भी…
भाव  मन  में  उठ   रहे  हैं
कैसे ,  क्या   बतलाऊँ  मैं
है    मुझे    सन्देह    कितने
तुम  पे,  क्या  समझाऊँ  मैं
क्या  लुभाता   है  वहाँ
कोई  तुम्हें  श्रृंगार  भी…
क्या  हुआ  खाई  थी  सौगंध
सात     फेरों      के     समय
साथ  हर  क्षण   दोगे  मेरा
कर   रहे   थे   तुम   विनय..
आज  क्यूँ  वंछित  रहूँ  जो
है    मेरा    अधिकार    भी…
देहरी    करती   प्रतीक्षा
राह   तकते   द्वार   भी..!!
#हेमंत बोर्डिया
परिचय –
 
नाम  –  हेमंत बोर्डिया
पिता –  श्री कुंजीलाल बोर्डिया
माता –  श्रीमती द्वारकी बोर्डिया
भार्या –  श्रीमती दीपाली बोर्डिया
पुत्र    –  सार्थक बोर्डिया
 
जन्म          –    २८ जून १९७६
जन्मस्थान  –     खरगोन (म.प्र.)
कर्मस्थल    –     इंदौर (मध्यप्रदेश)
शिक्षा।       –     स्नातक विज्ञान (गणित)
रोजगार।    –     प्रबंधक विपणन 
 विधा         –     ग़ज़ल, गीत, मुक्त कविता
             
उपलब्धि एवं सम्मान-
पहला साझा ग़ज़ल संकलन ‘गूँजन’ का प्रकाशन ।
अंतरा शब्द शक्ति सम्मान 2017 ।
 
ज़िन्दगी के सफ़र में हासिल कुछ अनुभवों को गीत, ग़ज़ल और नज़्मों में ढालने का हुनर आप जैसे पाठकों की नवाज़िशों से परवान चढ़ रहा है । ऑफीस के लिये रोज़ाना 80 कि.मी. का सफ़र यूँ तो आम व्यक्ति के लिए बड़ा हैरान करने वाला होता लेकिन मेरे लिये यही सफ़र खास बन गया है । पिछले तीन वर्षों से कलम और एहसासों की जुगलबंदी ने मुझे एक छोटे से कलमकार का रूप दिया है ।  मेरी रचनाओं में से 80 प्रतिशत रचनाएँ इसी सफ़र में पृष्ठांकित हुई है ।
लेखन का उद्देश्य – आत्मभिव्यक्ति, आत्मसंतुष्टि और इस अभिव्यक्ति के माध्यम से पाठक के हृदय से जुड़ना ।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।