सुना था और हमेशा देखा भी था कि, नाम का असर व्यक्ति के चरित्र पर पड़ता है। आज भी वही सच देखा। ‘प्रीति’,परिवार की छोटी ही नहीं, बल्कि चार बहनों और एक भाई में दूसरे नम्बर की है। माँ,भाई के जन्म के दो माह बाद स्वर्गवासी हो गई। सभी भाई-बहनों में समझदार होने के कारण छोटे भाई की जिम्मेदारी इसी को दी गई। छोटी बहनों का भी ध्यान रखती थी। जिम्मेदारी ज्यादा होने से कभी-कभी चिढ़चिढ़ाती भी थी,पर समय बीतता गया। सभी भाई-बहन बड़े हो गए,प्रीति भी प्रीत में बांध गई। घरवालों की रज़ामंदी से प्रीति का विवाह करा दिया गया,पर कहते हैं किस्मत का लिखा पीछा नहीं छोड़ता है। ससुराल में चार बहनों की इकलौती भाभी होने का और सास ससुर का बोझ-जिम्मेदारी इस कदर कि,देह आधी हो गई और गांव का माहौल होने से प्रीति को एडजस्ट करना मुश्किल हो रहा था। पति भी पढ़ा-लिखा पर परिवार की जिम्मेदारी अकेले होने पर वो भी मौन रहता है।
जब ये सुनती हूँ,तो लगता है कि,माँ-बाप को नाम रखते समय थोड़ा तो विचार करना चाहिए। क्यों हर बार इसका असर औरत के चरित्र पर होता है, या फिर औरत को ही हर बार प्रीति,प्रेरणा,ममता आदि नामों की बलि चढ़ना पड़ता है। क्या कसूर है उसका..कि औरत है..। कुछ महिलाओं को क्यों दोनों जगह त्याग करना पड़ता है। उसका अपना वजूद,अपने सपने,सबकुछ भुलाकर उसे दूसरों के सपनों को पूरा करना पड़ता है। क्या उसका कोई नहीं,जो उसके सपने पूरे कर सके। शायद वो पति होना चाहिए,जिसके लिए वो अपना घर,अपने सपने लेकर आती कि वो पूरे हों,पर जब पति के साथ चलकर भी सपने रौंद दिए जाते हों तो..। हर पति को अपनी पत्नी और माँ को बराबर का दर्जा देने की समझ होनी चाहिए। यदि वो ऐसा नहीं कर सकता,तो उसे ब्याह करने का कोई अधिकार नहीं है।मेरे मत अनुसार ब्याह की उम्र नहीं, बल्कि वो समझ है जहाँ परिवार का तालमेल बैठाना होता है,ताकि फिर कोई ‘प्रीति’ इस प्रीत के बंधन में अपनी सांसों से विराम न ले ले।
#प्रेरणा सेंद्रे
परिचय: प्रेरणा सेंद्रे इन्दौर में रहती हैं। आपकी शिक्षा एमएससी और बीएड(उ.प्र.) है। साथ ही योग का कोर्स(म.प्र.) भी किया है। आप शौकियाना लेखन करती हैं। लेखन के लिए भोपाल में सम्मानित हो चुकी हैं। वर्तमान में योग शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं।
बहुत सुंदर