पढ़ती जा रही जिंदगी
झटपट, फटाफट
पृष्ठ -दर -पृष्ठ बस,
पलटती जा रही हैं.
किसी पृष्ठ पर;
कभी जाती ठहर,
क्षणभर के लिए,
सुस्ताती-सोचती.
हिलोरें लेता भाव,
होते गड्डमड विचार.
सहमत-असहमत,
कई असमंजस.
रुकने नहीं देती,
उत्सुकता-ललक,
क्या होगा?कैसा होगा?
करती रहती आकर्षित,
अदम्य लालसा,
‘अंत’ जानने की.
ज्ञात है जबकि,
‘अंत’ का अर्थ…
सबकुछ खत्म,
साया तक नहीं!
अद्भुत-शांति,सन्नाटा!!
केवल शेष रहेंगी,
स्मृतियां..भली-बुरी.. सभी
सिर्फ और सिर्फ, स्मृतियां.
फिर भी पढ़ने की चाहत में
पलटती जा रही हैं जिंदगी
पृष्ठ दर पृष्ठ….और
पढ़ती जा रही
गतांक से आगे,
और आगे…और
अचानक…पटाक्षेप.
#पूनम (कतरियार)
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