नेताओं का क्या…
इस दल न सही तो उस दल
बस कुर्सी मिल जाये |
और तुम (जनता)
क्यों आपस में लड़ मर रहे हो
तुम्हें तो वही करना है जो कर रहे हो /
वहीं रहना है जहाँ रह रहे हो |
तुम्हें (जनता) आज ऐसा एहसास हो रहा है
जैसे तुम्हीं प्रत्याशी हो
एहसास तो होगा ही
नेताजी ने दोनों हाथ जोड़कर तुम्हारे नाम के पीछे ‘जी’ जो लगा दिया |
पर तुम (जनता) भी कितने भुल्लकड़ हो
ऐसा तो 1947 से ही चलता आ रहा है
तुम्हारी औकात एक फुटबॉल से अधिक नहीं…
ये चुनावी मौसम तो बीतने दो
फिर पता चलेगा तुम्हें (जनता) तुम्हारी असली औकात का
आज तुम भूल गये अपने पिछले पाँच साल
और भूलोगे क्यों न
भारत के पानी में भुलाने की बीमारी जो है |
जब कुछ सही करने का मौका मिलता है तो
बहक जाते हो नेताओं के मीठे बोलों में
और फिर एक बार मौका निकाल देते हो…
गुलाम के गुलाम बने रह जाते हो |
#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl