मां पूर्णागिरी उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक

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      हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार कुल इक्यावन शक्तिपीठ हैं।जिनमें से माता सती की नाभि गिरने के कारण यह स्थान मां पूर्णागिरी के नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ। हिमालयी राज्य उत्तराखंड के चम्पावत जिले में स्थित यह अपार स्नेह का केन्द्र निकटवर्ती शहर टनकपुर से इक्कीस किलोमीटर की दूरी पर है। टनकपुर रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। इसके आगे की यात्रा निजी वाहनों या राज्य सरकार के द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले वाहनों से करनी पड़ती है। सत्रह किलोमीटर की दूरी वाहनों से तय करने के बाद चढ़ाई आरम्भ होती है जो लगभग चार किलोमीटर है जिसमें चार सौ अटठावन सीढ़ियों पर चढ़ना भी होता है समुद्रतल से तीन हजार पचपन मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान आस्था का केंद्र है भक्त पैदल नंगे पैर तो कोई घिसटते हुए चले आते हैं।

 

प्रकृति की गोद में स्थित यह स्थान कहीं हरे भरे पेड़-पौधों से तो कहीं बहते झरनों सुन्दर पहाड़ों की सम्पदा से समृद्ध है मुख्य मन्दिर के बिल्कुल नीचे शारदा नदी मानो मां पूर्णागिरी के पैर पखार रही है। यह नदी भारत नेपाल के मध्य सीमा का निर्धारण भी करती है। यहां पर मुख्य मन्दिर से पहले मां काली भैरोनाथ और झूठा मन्दिर  हैं जिनकी अपनी मान्यता है और श्रृद्धालुओं द्वारा दर्शन कर पुण्य अर्जित किया जाता है।

निकटवर्ती रेलवे स्टेशन टनकपुर में सीताराम मन्दिर पंचमुखी महादेव मंदिर पंचमुखी हनुमान मंदिर बालाजी मंदिर वैष्णो देवी मंदिर आदि श्रृद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। निकटवर्ती दर्शनीय स्थलों में मायावती आश्रम रीठा साहिब बाणासुर का किला श्यामलाताल जैसे स्थान हैं जो आने  वालों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां से पिथौरागढ़ एक सौ पचास किलोमीटर चम्पावत पिचहत्तर किलोमीटर बरेली एक सौ पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर है।यूँ तो पूर्णागिरी का सरकारी मेला हर साल होली के अगले दिन से आरम्भ हो जाता है और बीस जून तक चलता है। पर आजकल मन्दिर तक रास्ते सही होने सुविधाएं विकसित हो जाने से बारहों महीने दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है।

प्रकृति की दृष्टि से सुरम्य धर्म स्थान हरियाली से भरा हुआ मां पूर्णागिरी के दर्शन के साथ साथ यहां के प्राकृतिक दृश्यों के आनंद  पड़ोसी देश नेपाल की ब्रह्मदेव मण्डी का भ्रमण किया जा सकता है। जहां पर सिद्धबाबा का स्थान है। मान्यता है बिना सिद्धबाबा के दर्शन किए मां पूर्णागिरी की यात्रा सफल नहीं होती है।टनकपुर से लगभग तीन किलोमीटर दूरी तय कर नेपाल पहुंचा जा सकता है।बिल्कुल नेपाल सीमा तक ई रिक्शा उपलब्ध हैं पर्यटक अपने निजी वाहनों से भी सीमा तक जाते हैं सीमा पार करते ही ब्रह्म देव का बाजार आरम्भ हो जाता है।अनके जरुरत के सामान यहां पर भारत से लगभग चालीस प्रतिशत सस्ते में मिल जाते हैं।

मां पूर्णागिरी का निकटवर्ती शहर टनकपुर सड़क मार्ग व रेलमार्ग से लगभग हर जगह से जुड़ा हुआ है यहां से दिल्ली लखनऊ देहरादून जयपुर ग्वालियर चण्डीगढ़ शिमला आगरा बरेली अल्मोड़ा पिथौरागढ़ नैनीताल के लिये नियमित रूप से निगम की बसों का संचालन होता है।निजी वाहन भी पर्याप्त संख्या में हैं। रेलवे स्टेशन पर प्रयाग दिल्ली के लिए गाड़ियों का संचालन शुरू हो गया है। बरेली के लिये नियमित रेल सेवा है जहां से देश के किसी भी कोने में पहुंचा जा सकता है। निकटवर्ती हवाई अड्डा पंतनगर है जहां से दिल्ली देहरादून के लिये नियमित रूप से सेवा है।

टनकपुर में रहने और खाने की कोई समस्या नहीं है। बड़ी मात्रा में धर्मशालाएं होटल हैं।सरकार की भी आवासीय व्यवस्था है। टनकपुर से मां पूर्णागिरी मन्दिर तक अनेक उदार जनों के सहयोग से सालों भर निशुल्क आवास और भोजन की व्यवस्था रहती है।मौसम की दृष्टि से टनकपुर बहुत अच्छा है।अधिक बरसात को छोड़कर सदैव मौसम सुहाना रहता है पहाड़ों की तलहटी में बसा होने से यहां पर आने और घूमने का अपना अलग ही आनंद है। दैनिक जीवन में जरूरत का हर सामान यहां पर उचित मूल्य पर मिल जाता है।

अतः मेरा यह मानना है कि घूमने फिरने का शौक रखने व धार्मिक स्थलों पर आस्था रखने वालों को एक बार यहां अवश्य आना चाहिए।

#शशांक मिश्र

परिचय:शशांक मिश्र का साहित्यिक नाम `भारती` और जन्मतिथि १४ मई १९७३ है। इनका जन्मस्थान मुरछा-शहर शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) है। वर्तमान में बड़ागांव के हिन्दी सदन (शाहजहांपुर)में रहते हैं। भारती की शिक्ष-एम.ए. (हिन्दी,संस्कृत व भूगोल) सहित विद्यावाचस्पति-द्वय,विद्यासागर,बी.एड.एवं सी.आई.जी. भी है। आप कार्यक्षेत्र के तौर पर संस्कृत राजकीय महाविद्यालय (उत्तराखण्ड) में प्रवक्ता हैं। सामाजिक क्षेत्र-में पर्यावरण,पल्स पोलियो उन्मूलन के लिए कार्य करने के अलावा हिन्दी में सर्वाधिक अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं को नकद सहित अन्य सम्मान भी दिया है। १९९१ से लगभग सभी विधाओं में लिखना जारी है। श्री मिश्र की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। इसमें उल्लेखनीय नाम-हम बच्चे(बाल गीत संग्रह २००१),पर्यावरण की कविताएं(२००४),बिना बिचारे का फल (२००६),मुखिया का चुनाव(बालकथा संग्रह-२०१०) और माध्यमिक शिक्षा और मैं(निबन्ध २०१५) आदि हैं। आपके खाते में संपादित कृतियाँ भी हैं,जिसमें बाल साहित्यांक,काव्य संकलन,कविता संचयन-२००७ और अभा कविता संचयन २०१० आदि हैं। सम्मान के रूप में आपको करीब ३० संस्थाओं ने सम्मानित किया है तो नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार-१९९६ भी मिला है। ऐसे ही हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अ.भा.हाइकु प्रतियोगिता २००३ में प्रथम स्थान,लघुकथा प्रतियोगिता २००८ में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान, अ.भा.लघुकथा प्रति.में सराहनीय पुरस्कार के साथ ही विद्यालयी शिक्षा विभाग(उत्तराखण्ड)द्वारा दीनदयाल शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार-२०१० और अ.भा.लघुकथा प्रतियोगिता २०११ में सांत्वना पुरस्कार भी दिया गया है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। आप अपनी उपलब्धि पुस्तकालयों व जरूरतमन्दों को उपयोगी पुस्तकें निःशुल्क उपलब्ध करानाही मानते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-समाज तथा देशहित में कुछ करना है।

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