होली

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aashutosh kumar
होली का रंग चढ़ी पीकर भंग
मेरी हार्दिक शुभकामना आप के संग।।

रंग भरी पिचकारियाँ, खिले चेहरे संग,
रंग गिरे शरीर पर, मन मे उठे उमंग।

कौन रंग में होली रंगे, कैसे बहे वसंत?
भाईचारे रंग होली रंगे,प्रेम संग बहे वसंत।
🏵
गद गद सारे हो गए, लगा के अंग में रंग,
अंग-अंग होली बसा, साँसें हुई  वेर्शम।
🏵
धूप खिली बदली घिरी, हसी हो गई शाम,
पहन नया कपडा, बन गया सुल्तान।

चहु ओर इत्र फैला,किसीका न मनविषैला
भाभी बरज़ोरी करे, करे चिरौरी हाल।

पीली सरसों फूली, सुन गेहूँ की बात,
बूढ़ी आम टिकूला,चटनी और भात।

बरसाने को रंग, टोली झाल मृदंग,
टोली संग आ गया, मच गया हुरदंग।
🏵
सब आग प्रेम की, न माने घमंड,
भीगकर रंग से, होली भयी प्रचंड।

बाग बगीचे पशु पझी और धूप🏵में अंग
सभी पर डोरे डाल गई होली के रंग।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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