बीत गए दिन जवानी के,
मेहनत और क़ुरबानी के..
जब तक था स्वार्थ,
तब तक रहे साथ..
अब बेटा नहीं कहता पापा,
जब से आया है बुढ़ापा।
दिल में एक अरमान था,
बेटे पर अभिमान था..
सोचा था बुढ़ापे में,
बनेगा मेरा सहारा..
पर मेरी किस्मत ने,
ये नहीं स्वीकारा..
बेटे ने साथ छोड़ा,
सभी ने मुझसे मुँह मोड़ा..
क्या है मेरी गलती,
कोई मुझे बताए..
बूढ़े माँ-बाप को,
बेटा क्यों सताए।
तू भी एक दिन बूढ़ा होगा,
ये क्यों भूल जाता है..
जो जैसा करता है,
वह वैसा ही फल पाता है..
अजीब हो गई है दुनिया,
अब प्यार से कोई नहीं खिलाता,
अब बेटा नहीं कहता पापा,
जब से आया है बुढ़ापा।
#पीयूष राज
परिचय : पीयूष राज की उम्र मात्र १७ साल है, पर लेखन में खासे सक्रिय हैं। कविता और कहानी लिखना इनको पसंद है। २०१५ से कविता लिखते हुए अब तक ५७ लिख चुके हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में यह प्रकाशित हो चुकी हैं। आप जिला दुमका (झारखण्ड)में बसे हुए हैं। वर्तमान में दुमका में द्वितीय वर्ष (डिप्लोमा अभियंत्रण छात्र) में अध्ययनरत हैं।