रक्तरंजित मस्तक हुआ

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geeta diwedi
रक्तरंजित मस्तक हुआ ,
तिलक कहाँ लगाऊँ मैं ,
अब बोल दो माँ भारती ,
कैसे तुम्हें सजाऊँ मैं ।
रोम – रोम सिहर उठे ,
मन व्याकुल है मेरा ,
नैन अश्रु बरसाते हैं ,
कैसे इन्हें बहलाऊँ मैं ।
क्रूर आत्मघातियों का ,
धर्म समझ न आता माँ ,
देश के वीर  जवानों का,
शव कैसे देख पाऊँ मैं ।
 है हाहाकार मचा हुआ
 हर हृदय रो रहा दुख से ,
धिक्कार ऐसे मानवों पर ,
उनकी बलि चढ़ाऊँ मैं ।
निर्दोष प्राणियों पर माता
वार तो है कायरता-चिन्ह
क्यों न समझें नरपिशाच ,
कैसे उन्हें समझाऊँ मैं ।
रिक्त नहीं तन शक्ति से ,
न मन तेरी भक्ति से खालीै ,
बस मुझे तू राह दिखा  ,
उनका अंत कर जाऊँ मैं ।
मार दूँ या मर जाऊँ ,
देशहित कुछ कर जाऊँ ,
अब सहा नहीं जाता माँ ,
अचूक जतन कर जाऊँ मैं ।
श्रीमती गीता द्विवेदी 
सिंगचौरा(छत्तीसगढ़)
मैं गीता द्विवेदी प्रथमिक शाला की शिक्षिका हूँ । स्व अनुभूति से अंतःकरण में अंकुरित साहित्यिक भाव पल्वित और पुष्पीत होकर कविता के रुप में आपके समक्ष प्रस्तुत है । मैं इस विषय में अज्ञानी हूँ रचना लेखक हिन्दी साहित्यिक के माध्यम से राष्ट्र  सेवा का काम करना मेरा पसंदीदा कार्य है । मै तीन सौ से अधिक रचना कविता , लगभग 20 कहानियां , 100 मुक्तक ,हाईकु आदि लिख चुकी हूं । स्थानीय समाचार पत्र और कुछ ई-पत्रिका में भी रचना प्रकाशित हुआ है ।

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