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जनमंचों पर अपनी साहित्य विधा के हर रंग का जादू बिखेरने वाले हास्य व्यंग्य कवि .प्रदीप नवीन यूँ तो जन -जन में लोकप्रिय है उतनी ही उनकी साहित्यिक कर्म में रूचि अम्बर को छू रही है । स्वयं को बड़ा कभी न महसूस समझने वाले प्रदीप नवीन की सहयोग की भावना का एक नया रूप और मंशा गजल संग्रह में स्पष्ट झलकती है । गजल संग्रह के शीर्षक से ही हमें इस बात का पता चलता है कि -“साथ नहीं देती परछाई “सच मुच आपने अपने आसपास के क्षेत्रो में नाम तो रोशन किया ही है साथ ही इंदौर नगरी के अलावा प्रदेशों में भी अपनी पहचान के झंडे गाड़े है । संग्रह की हर गजल गुनगुनाने पर स्वर कानों में मिश्री घोलते वही काव्य रसिकों को शब्दों के चुम्बकीय आकर्षणता में बांध कर एक नई उर्जा का संचार कर देती है । इस कला की जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी कम होगी।
वर्तमान हालातों पर गजल की सटीक पक्तियाँ कुछ यू बयां करती है -“जिंदगी में ये क्या मुकाम आया/अपना कोई न मेरे काम आया “। निराशा को दूर करने का मूलमंत्र भी दिया है- वर्षा ने मुँह फेर लिया /चिंताओं ने घेर लिया | हाथों ने करने को जादू/मिटटी का कुछ ढेर लिया “।प्रदीप नविन यूँ तो हास्य कवि है लेकिन उनकी सोच काफी गहराई वाली है – “मत खींच लकीरें पानी पर /सब हँसे तेरी नादानी पर “
जन जन में लोकप्रिय हास्य कवि “प्रदीप नवीन ” का नाम ही काफी है । लोगो से उन्हें असीम प्यार मिला है और यही बात गजल में हास्य रस लिए भी दिखलाई पड़ती है -नजरें थोड़ी भटक गई / एक जगह पर अटक गई | देखा पुलिस को आते तो /फ़ौरन ही वो सटक गई “वही प्रेम की तड़फ एक टीस मन में पैदा करती है ‘ राहों में अकेला छोड़ोगे,तुमसे ऐसी उम्मीद न थी /बाँहों को तड़पता छोड़ोगे,तुमसे ऐसी उम्मीद न थी ” | नेक इंसान बनाने हेतु पुनीत कार्य का सन्देश दिया है – “चलो एक अभियान चलाए /अच्छे कुछ इंसान बनाएं “।वृक्ष काटने की वेदना की कशिश को गजल में ढाला है – थोड़ी बहुत भी छाँव नहीं है /दूर दूर तक गाँव नहीं ” प्रदीप नवीन की हर गजल दमदार है और दिल को छू जाने वाली है यकीं न होतो इन पंक्तिओं पर तनिक गोर फरमाए -“भगवान सोचते है नारियल के बदले में /क्यों दर पे मेरे सर को पटकता है आदमी | करता है खुशामद सरे बाजार सभी की /होने पे काम कैसे सटकता है आदमी “। साथ नहीं देती परछाई १००% दिलों में जगह बनाएगी इसमें कोई शक नहीं है। हमारी यही शुभकामनाये है ।
गजलकार -प्रदीप नवीन
प्रकाशक – हरेराम वाजपेयी हिंदी परिवार
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।
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Wed Jan 30 , 2019
दिव्य जनों के,देव लोक से, कैसे,नाम भुलाएँगे। कैसे बन्धुः इन्द्रधनुष के प्यारे रंग चुराएँगे। सिंधु,पिण्ड,नभ,हरि,मानव भी उऋण कभी हो पाएँगें? माँ के प्रतिरूपों का बोलो, कैसे कर्ज चुकाएँगे। माँ को अर्पित और समर्पित, अक्षर,शब्द सहेजे है। उठी लेखनी मेरे कर से, भाव *मातु* ने भेजे है। पश्चिम की आँधी में […]