#ओजस्वी
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मैं विहर्ष हूँ, मैं प्रकर्ष हूँ,
संघर्षों में विजय हर्ष हूँ ||
आसमान छूने की हिम्मत,
*आशाओं का नया वर्ष हूँ ||*
दिग्-दिगन्त में फैल रहे हैं,
भीषणता के परमाणु,
काल खड़ा है मुँह फैलाये,
खाने जग के बीजाणु ||
विध्वंसों के पैर उखाड़े,
उल्लासों का नव विहर्ष हूँ |
*आशाओं…….*
वातायन से गन्ध पवन ने,
आकर आलस जीत लिया है,
निर्माणों की गाथाओं ने
मन को नव परिवेश दिया है ||
उत्साही उस युवा जोश को,
चिन्तन का मैं नव-विमर्श हूँ ||
*आशाओं….*
विश्वास, धैर्य, साहस का संबल
उत्थान-पतन का निर्धारक |
पाखण्डों के चक्रव्यूह को,
तोड़ सके अर्जुन – बालक ||
दुःशासन भी काँपे थर-थर,
अभिमन्यु का प्रतिदर्श हूँ ||
*आशाओं……*
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