कविता चली गाँव की ओर

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babulal sharma

देख समय ने पलटी खायी,
मोबाइल के दर्शन भोर।
साहुकार बंदिश में रहते,
खुले डोलते डाकू चोर।
पहले शहरों में बसती अब,
कविता चली गाँव की ओर।

अखबारों का युग बीता है,
टीवी धुँधले होते आज।
कथा कहानी पुस्तक पढ़ना,
रीत बीत कर बिगड़े काज।
वाट्स एप हर जन हर घर मे,
सन्ध्या बाती जागत भोर।
बची गाँव की कवि चौपालें,
कविता चली गाँव की ओर।

तितली भँवरे जुगनू तारे,
दिखते नहीं शहर में राम।
कोयल मैना गौरैया का
कहो शहर में अब क्या धाम।
कागा दादुर चातक तोते
शहर बसेे ना तीतर मोर।
सूरज चन्द विटप लता संग
कविता चली गाँव की ओर।

पनघट रीते बतिया बीती
घर में घुटती बहुएँ सास।
खातिर मे बस चाय बची है,
मेहमानों में बढ़े निराश।
भैंस बकरिया नहीं शहर में
कविता,गाय बची ना गोर।
रीत प्रीत की संस्कृतियों संग
..कविता चली गाँव की ओर….

नाम– बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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