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दिल में अरमान था बहारों का
और तोहफा मिला है खारों का ।
तेरे बगैर बता मै अब क्या करूँ
इन बेजान दिलकश नजारों का ।
रौशनी जब मुझे खलने लगी है
क्या करें सूरज चाँद सितारों का ।
हसरतें हाथ नहीं मलती आज
इल्म जो होता हुस्न के इशारों का ।
खुबसूरती भी संगीन खंजर ही है
मासूम से चेह्रे है अब हत्यारों का ।
#अजय प्रसादनालंदा(बिहार )
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