ढूंढ रहा हूँ मुकाम अपना ।
जाति-धर्म पर कोई बांटे हमको,
अपने -अपने हद में धुसते ही डाँटें हमको,
किसी का नारा “मुम्बई हमची” ,
कोई कहे गुजरात अपना ।
कहाँ गया हिंदुस्तान अपना ?
ढूंढ रहा हूँ मुकाम अपना ।
कोई कहे यू पी हमारा ,
कोई कहे पंजाब हमारा,
कोई कहता असोम हमारा,
किसी का बंगाल है सारा ।
खोज रहा हूँ मकान अपना ।
कहाँ गया हिंदुस्तान अपना ?
ढूंढ रहा हूँ मुकाम अपना ।
सिसक रही अनेकता में एकता,
बिलुप्त हुई ‘सोने की चिड़िया’,
कराह रही ‘धर्मनिरपेक्षता ‘!
‘वसुधैव कुटुंबकम’ तो है सपना ,
हिल-मिल रहने का खोजो अब *समाधान* अपना।
कहाँ गया हिंदुस्तान अपना ?
ढूंढ रहा हूँ मुकाम अपना ।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।